रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत ने जो स्टैंड लिया उसके विरोध में पश्चिम देशों ने खूब बवाल मचाया लेकिन कभी आपने विचार किया है कि क्यों यूक्रेन भारत को लेकर आलोचनात्मक नहीं हुआ? क्यों यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की निरंतर प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करते रहे? क्यों यूक्रेन इस बात को दोहराता रहा कि भारत युद्ध को रुकवा सकता है? क्या आप इस प्रश्न का उत्तर जानते हैं कि जिस देश के प्रधानमंत्री ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यह युद्ध का दौर नहीं है जैसी बात उनके सामने कही हो, उस रूस ने भी क्यों एक शब्द भारत के विरुद्ध नहीं बोला? इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों रूस और यूक्रेन दोनों देशों ने भारत के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला?
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यूक्रेन ने क्यों नहीं की भारत की आलोचना?
सबसे पहले बात यूक्रेन की करते हैं कि क्यों उसने भारत के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोला। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद तमाम पश्चिमी देश यूक्रेन के समर्थन में आकर खड़े हो गए थे और उसका समर्थन करने का दिखावा करते रहे। जबकि भारत ढोल बजाने की जगह पर्दे के पीछे से अपना काम करता रहा। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे, जिनकी वजह से परमाणु युद्ध टल गया। बीते दिनों ही अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी CIA चीफ ने खुलासा किया था कि पीएम मोदी की बात मानकर ही पुतिन ने यूक्रेन पर परमाणु हमले का प्लान छोड़ा था। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नहीं रोका होता, तो शायद आज दुनिया एक भयंकर तबाही का मंजर देख रही होती।
इसी तरह भारत ने रूस-यूक्रेन के कारण दुनिया पर मंडराए भुखमरी के संकट को कम करने में भी भारत की भूमिका अहम रही। दरअसल, अनाज संकट को देखते हुए रूस-यूक्रेन के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत काले सागर के रास्ते लाखों टन अनाज पोत के माध्यम से यूक्रेन से बाहर भेजने की अनुमति दी गई। भारत ने समझौते का समर्थन किया। वहीं नवंबर में रूस इस समझौते से पीछे हटने लगा था, जिसके बाद इसके लिए रूस को फिर से तैयार करने में भारत की भूमिका अहम रही थीं। भारत की इसी भूमिका का जिक्र हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने ऑस्ट्रिया दौरे के दौरान की थीं। उन्होंने कहा कि हमने मॉस्को व कीव के बीच अनाज सौदे पर चुपचाप सहायता की थीं।
इसके अलावा देखा जाये तो यूक्रेन भी यह बात अच्छे से जानता है कि भारत ही वो देश है जो दोनों देशों के बीच समझौता करा सकता है। यही कारण है कि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से कई बार बातचीत की। बीते दिनों ही जेलेंस्की ने ‘शांति फार्मूले’ को लागू करने के लिए भारत का समर्थन मांगा।
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रूस ने भी नहीं बोला भारत के विरुद्ध एक शब्द
अब बात करते हैं रूस की कि आखिर भारत ने स्पष्ट तौर पर कह दिया था कि यह युद्ध का दौर नहीं है, फिर भी क्यों पुतिन भारत के विरुद्ध कुछ नहीं बोले? ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने भी देखा कि युद्ध को लेकर भारत किस तरह से अपने स्टैंड पर कायम रहा और पश्चिमी देशों का पिछलग्गू नहीं बना। पश्चिमी देशों ने भारत के तटस्थ रूख की काफी आलोचना की और दबाव बनाने की कोशिश की, परंतु भारत के आगे उनकी एक नहीं चली।
इसके अलावा भारत ने सबसे ऊपर रूस के साथ अपने संबंधों को रखा। भारत और रूस के बीच मित्रता काफी पुरानी है। हाल ही में एस जयशंकर ने भी भारत-रूस के संबंधों का जिक्र करते हुए कहा था कि हमारा रूस के साथ एक लंबा रिश्ता है। इस रिश्ते के इतिहास को देखना बहुत आवश्यक है। उन्होंने पश्चिमी देशों को निशाने पर लेते हुए कहा था कि ये रिश्ता तब बना जब पश्चिमी लोकतांत्रिक देश पाकिस्तान को हथियारों दे रहे थे और भारत को अपनी सुरक्षा के लिए भी हथियार नहीं मिल रहे थे।
रूस के यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के बाद से ही पश्चिमी देश उस पर टूट पड़े और तमाम प्रतिबंधों लगाकर रूस को रोकने का प्रयास करते रहे। परंतु इससे इतर रूस के साथ अपने संबंधों और अपने हितों को ध्यान में रखकर रूस से कच्चा तेल समेत तमाम चीजें खरीदता रहा।
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कुछ इस तरह रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति बनाए रखने के लिए भारत का योगदान काफी अहम रहा, परंतु अन्य देशों की ढिंढोरा नहीं पिटा और पर्दे के पीछे से अपना काम जारी रखता रहा। यही कारण है कि रूस और यूक्रेन दोनों ही भारत के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला।
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