अघोरी और नागा साधु अलग हैं: दोनों के रास्ते भिन्न हैं परंतु लक्ष्य एक ही हैं

इस भ्रम को आज दूर कर लीजिए

Aghoris and Naga Sadhus are not the same, both have different paths but have the same goal

SOURCE TFI

क्या आपने कभी कुम्भ के मेले में नागा साधुओं को देखा है? देखा होगा। अब थोड़ा और ध्यान दीजिए, आपने उसी कुम्भ के मेले में अघोरी बाबाओं को भी देखा होगा? देखा होगा। अब आप सोच रहे होंगे ये कैसा प्रश्न है- अघोरी बाबा और नागा साधु तो एक ही होता है न? लेकिन ऐसा नहीं है, बीते कई वर्षों से लोगों के बीच ये भ्रम फैला हुआ है कि अघोरी और नागा साधु एक ही होते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। आज हम आपको नागा साधुओं और अघोरी बाबाओं के बीच का अंतर बताते हुए उनके खान-पान, उनकी तपस्या आदि के विषय में पूर्ण रूप से जानकारी देंगे ताकि दोनों के बीच का अंतर स्पष्ट हो सके।

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भिन्न-भिन्न प्रकार के साधु

सनातन धर्म में भिन्न-भिन्न प्रकार के साधुओं का वर्णन होता है। इन्हीं साधुओं के प्रकार हैं नागा साधु और अघोरी बाबा। कुंभ के मेले में आपने नागा साधुओं को अक्सर देखा होगा, वास्तव में कुंभ के मेले में स्नान करने वाला सबसे पहला व्यक्ति नागा साधु होते हैं। इतना ही नहीं कई लोग तो नागा साधु से उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके आखाड़े में भी जाते हैं।

वहीं अगर नागा साधुओं की उत्पति की बात करें तो आदिगुरु शंकराचार्य ने 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में उस समय के दौरान समाज में फैली अशांति की स्थिति को ध्यान में रखकर साधुओं के एक ऐसे वर्ग का गठन किया जो शस्त्र धारण करके धर्म की रक्षा कर सके और जिसे शास्त्रों का भी ज्ञान हो। इसी आधार पर साधुओं को अखाड़ों में बांट दिया गया था।

नागाओं ने कई युद्धों में भी भाग लिया था। वस्त्र धारण न करने के कारण ये दिगंबर कहलाते हैं। इनकी पहचान, त्रिशूल, तलवार, शंख आदि से होती है, ये अपने शरीर पर धूनी लपेटे रहते हैं। नागा संप्रदाय में दीक्षित होने की प्रक्रिया बहुत कठिन मानी जाती है।

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अघोरपंथ के साधक

वहीं अगर अघोरी बाबा की बात करें तो ये अघोरपंथ के साधक कहलाते हैं। नागा साधुओं की तरह ये भी शिव की उपासना करते हैं, अघोरी भगवान शिव के जैसे ही श्मशान की नीरवता में रहते है। जहां सामान्य मनुष्यों के लिए मृत्यु और श्मशान सबसे बड़ा डर माना जाता है, वहीं अघोरी श्मशान में ही रहते हैं। इसीलिए इन्हें अघोरी कहा जाता है यानी जिनके लिए कुछ भी घोर (भयानक) नहीं होता है। अघोरी अपनी चेतना से ऊपर उठकर परमचेतना में विलीन करने के लिए तंत्र का भी सहारा लेते हैं, इसलिए ये समाज में जिज्ञासा और भय का कारण बन जाते हैं।

नागा साधु और अघोरी बनने की प्रक्रिया से लेकर इनका रहन-सहन, खान-पान आदि सभी में भिन्नता पाई जाती है। भले ही देखने में ये एक-दूसरे के जैसे हों, लेकिन इनमें समानता नहीं होती है। इनके अलग-अलग रास्ते, विविध यात्राएं होती हैं लेकिन इनका लक्ष्य एक ही होता है।

नागा साधु और अघोरी बाबा दोनों को ही कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। नागा साधु बनने में लगभग 12 वर्षों का समय लगता है। जहां इनको अखाड़ों या आश्रम में रहना पड़ता है परन्तु इसके विपरीत अघोरी बनने के लिए श्मशान घाट में कठिनता से तपस्या करनी पड़ती है। इसमें कितने सालों का भी समय लग सकता है।

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गुरु का निर्धारण करना अनिवार्य

नागा साधु बनने के लिए एक गुरु का निर्धारण करना अनिवार्य माना जाता है। गुरु अखाड़े का प्रमुख या कोई भी बड़ा विद्वान भी हो सकता है। गुरु की दी गई दीक्षा और शिक्षा से नागा साधु बनने की प्रक्रिया संपन्न होती है। वहीं दूसरी ओर अघोरी बनने के लिए किसी भी गुरु का निर्धारण नहीं किया जाता है। उनके गुरु स्वयं शिव भगवान ही होते हैं, अघोरियों को उनकी तपस्या से दैवीय शक्तियों की प्राप्ति होती है।

जब भी कोई किशोर या युवक नागा अखाड़े से जुड़ना चाहता है तो सबसे पहले उसे अपना श्राद्ध, मुंडन और पिंडदान करना होता हैं। फिर उसे गुरु मंत्र लेकर संन्यास धर्म में दीक्षा लेनी होती है। इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों, संत परम्पराओं और समाज के लिए हो जाता है। स्वयं का श्राद्ध कर देने का अर्थ होता है। सांसारिक जीवन से पूरी तरह दूर हो जाना, इंद्रियों पर नियंत्रण रखना और हर प्रकार की कामना को समाप्त कर देना। वहीं दूसरी ओर अघोरियों का ऐसा मानना होता है कि हर व्यक्ति अघोरी के रूप में ही जन्म लेता है। उनका कहना है कि जैसे एक छोटे से बच्चे को अपनी गंदगी, भोजन में कोई भी अंतर समझ नहीं आता, वैसे ही अघोरी भी हर गंदगी और अच्छाई को एक ही दृष्टि से देखते हैं।

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भोजन कैसा होता है

इनके भोजन की बात करें तो नागा साधु और अघोरी बाबा दोनों ही मांसाहारी होते हैं। हालांकि कुछ नागा साधु शाकाहारी भी होते हैं। ऐसी मानयता होती है कि अघोरी न केवल जानवरों का मांस खाते हैं बल्कि ये इंसानों का भी मांस खाते हैं।

नागा साधु जहां बिना कपड़ों के रहते हैं, वहीं अघोरी साधु निचले हिस्से में जानवरों की खाल पहनते हैं। नागा साधुओं के दर्शन कुंभ मेले में या फिर उनके आश्रमों या हिमालय में हो जाते हैं लेकिन अघोरी बाबा जल्दी नहीं दिखाई देते हैं। ये केवल श्मशान में ही मिलते हैं। अघोरी श्मशान में तीन तरीके से साधना करते पाए जाते हैं – श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना। इस पंथ को साधारणत: ‘औघड़पंथ’ के नाम से जाना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि नागा साधुओं के पास कई रहस्यमयी ताकतें होती हैं और ये ताकत उनको कठोर तपस्या करके हासिल होती है। इन ताकतों का उपयोग ये साधु सामान्य लोगों की समस्याओं के निवारण के लिए करते हैं। वहीं, अघोरी साधु तांत्रिक साधनाओं में लीन रहते हैं। उनके पास भी कई रहस्यमयी शक्तियां होती हैं। अघोरी साधु तंत्र-मंत्र के माध्यम से लोगों की परेशानियों को हल करने का भी कार्य करते हैं।

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नागा साधु और अघोरी बाबा दोनों ही अपने-अपने परिवार से दूर रहकर पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करते हैं। साधु बनने की कठिन प्रक्रिया में इन्हें जीवित होते हुए भी अपने परिवार वालों को छोड़ना पड़ता है। यह दोनों ही सनातन धर्म के अभिन्न अंग होते हैं लेकिन फिर भी इनमें सैकड़ों अंतर पाए जाते है।

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