भारत के सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकारों में से एक ब्रह्मानन्दम की अद्वितीय कथा

ब्रह्मानन्दम का पूरे देश में सम्मान से नाम लिया जाता है!

Celebrating the comedic talents of Brahmanandam: One of the greatest comedians loved throughout India

Source: India Post English

ब्रह्मानन्दम: आपकी दृष्टि में भारत का सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन कौन है? किसी के लिए महमूद होंगे तो किसी के लिए केष्टो मुखर्जी, किसी के लिए जॉनी लीवर, तो किसी के लिए राजपाल यादव। किसी-किसी के लिए तो किशोर कुमार, विजय राज और परेश रावल जैसे लोग भी उत्कृष्ट कॉमेडियन होंगे। परंतु एक ऐसे हास्य कलाकार भी हैं, जिनका नाम पूरे देश में सम्मान के साथ लिया जाता है।

इस लेख में उस कॉमेडियन की कहानी पढ़िए, जिनका नाम पूरे देश में सम्मान के साथ लिया जाता है।

लेक्चरर थे ब्रह्मानन्दम

जैसे गुलाब जामुन चाशनी के बिना एवं भोजन उचित मसालों एवं नमक के बिना बेस्वाद, अधूरा है, वैसे ही क्षेत्रीय फिल्में, विशेषकर तेलुगु फिल्म उद्योग बिना ब्रह्मानन्दम के अधूरा है। आज के युग में बिना छल प्रपंच के, विशुद्ध कॉमेडी करना एक दुर्लभ कला है, जिसमें ब्रह्मानन्दम मानो स्वर्ण पदक सहित पीएचडी करके बैठे हैं। अगर आपने 2000 के प्रारम्भिक दशक में विभिन्न चैनलों पर डब करके आने वाली हिन्दी फिल्मों को देखा हो, तो आपने इनकी हास्य कला को पक्का मिस नहीं किया होगा।

परंतु इन्हें ये सफलता इतनी सरलता से नहीं मिली थी। कान्यकान्ति ब्रह्मानन्दम 1 फरवरी 1956 को आंध्र प्रदेश के पालनाडु जिले के सतनापल्ली कस्बे में जन्मे थे। इनके पिता बढ़ई थे, ब्रह्मानन्दम अपने पिता की 8 संतानों में से एक थे।

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परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी। इसके बावजूद उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की। तेलुगु भाषा में परास्नातक पूर्ण करने के पश्चात इन्होंने अपने करियर का प्रारंभ बतौर कॉलेज लेक्चरर पश्चिमी गोदावरी जिले के अट्टिली ग्राम से किया। अपने उद्योग के सबसे शिक्षित कलाकारों में से एक हैं ब्रह्मानन्दम।

विपत्तियाँ सिर पर थी, परिवार को संभालने का दायित्व भी था, परंतु ब्रह्मानन्दम ने कभी भी अपने संस्कृति एवं आदर्शों से समझौता नहीं किया। आज भी उन्हे सनातन धर्म का निस्स्वार्थ भाव से पालन करने के लिए जाना जाता है, वो भी ऐसे उद्योग में जहां सनातन धर्म का उपहास उड़ाया जाता है। ऐसा नहीं है कि हिन्दू विरोध केवल बॉलीवुड तक ही सीमित है। परंतु इस बारे में फिर कभी।

कैसे बने कलाकार?

तो ब्रह्मानन्दम इतने बहुचर्चित हास्य कलाकार कैसे बने? अपने कक्षाओं के समय उन्हे छात्रों का मनोरंजन करने हेतु मिमिक्री करके हँसाने की बहुत आदत थी। इसी आदत के चलते इनके विद्यार्थियों और कुछ सहकर्मियों ने थियेटर में भाग लेने का सुझाव भी दिया। ब्रह्मानन्दम को यह सुझाव पसंद आया, और शीघ्र ही इनके कदम अभिनय की ओर बढ़ चले।

थियेटर में इनका काम कई लोगों को भाया, जिसमें से एक थे लेखक एवं नाटककार आदि विष्णु। अपने नाम के अनुरूप इस व्यक्ति ने ब्रह्मानन्दम का परिचय दूरदर्शन के एक उच्चाधिकारी NCV शशीधर से कराया। फिर क्या था, 1985 में इन्हे प्रथम ब्रेक मिला दूरदर्शन तेलुगु के टीवी सीरियल “पकापकलू” [Pakapaklu] से, जहां से इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

ब्रह्मानंदम के करियर का प्रारंभ अगले ही वर्ष ‘चन्ताबाबाई’ नाम की फिल्म से हुआ, फिल्म में उनका बेहद छोटा रोल था. लेकिन लोगों ने उनकी एक्टिंग की खूब सराहना की। फिर 1987 में आई फिल्म “अहा ना पेलन्ता [मेरा ब्याह होने वाला है!]”, जिसमें इनकी भूमिका की जमकर प्रशंसा हुई और यहीं से ब्रह्मानन्दम तेलुगु उद्योग का अभिन्न अंग बन गए।

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ब्रह्मानन्दम को धीरे धीरे बहुत प्रोजेक्ट्स मिलने लगे, परंतु उन्हे यश और समृद्धि उतनी नहीं मिली। 1993 में फिर एक तेलुगु फिल्म आई “मनी”, जहां पर उन्होंने खान दादा का रोल निभाया, और जिसके लिए उन्हे सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार का नंदी पुरस्कार [तेलुगु उद्योग में फिल्मफेयर के समकालीन] प्राप्त हुआ।

बहुत कम लोगों को इस बारे में जानकारी है कि इसी फिल्म पर इसके निर्माता एवं बहुचर्चित निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने 2001 में “लव के लिए कुछ भी करेगा” नामक फिल्म का निर्माण किया, जिसमें ब्रह्मानन्दम का रोल जॉनी लीवर ने निभाया, वो अलग बात है कि उनके किरदार के नाम के गीत “असलम भाई” को छोड़कर उनके रोल में कुछ भी अनोखा नहीं था।

ठीक इसी प्रकार इनकी सुपरहिट फिल्म “यमलीला” को हिन्दी में “तकदीरवाला” के रूप में रीमेक किया गया, जहां चित्रगुप्त की जो भूमिका ब्रह्मानंदम ने आत्मसात की, वही भूमिका उसके हिन्दी संस्करण में असरानी ने निभाई। अंतर बस इतना था कि “लव के लिए कुछ भी करेगा” से पूर्व आई इस फिल्म में असरानी ने अपने रोल पर मेहनत भी की थी।

बॉलीवुड से बनाई दूरी

ब्रह्मानन्दम उन चंद कलाकारों में से एक है, जिनके लिए उनकी कला ही उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए पर्याप्त है। इनके जितनी फीस तो हिन्दी फिल्मों के कई स्टार भी नहीं ले पाते हैं, और कई बार तो तेलुगु फिल्मों में मुख्य अभिनेता से अधिक फीस ब्रह्मानन्दम को ही मिल जाती थी।

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तो क्या ऐसे उत्कृष्ट कलाकार पर बॉलीवुड की दृष्टि नहीं पड़ी? पड़ी थी, परंतु अपने रोल का परिणाम देखकर और बॉलीवुड के बड़े बड़े स्टारों का स्वभाव देखकर ब्रह्मानन्दम ने इस उद्योग से दूरी बनाना ही उचित समझा। वह फिल्म कोई और नहीं, 1999 में प्रदर्शित अमिताभ बच्चन की द्विभाषीय “सूर्यवंशम” थी, जिसमें ब्रह्मानंदम को एक डॉक्टर की छोटी सी भूमिका में देखा गया था।

परंतु इसके बाद भी ब्रह्मानन्दम भारत के सबसे उत्कृष्ट हास्य कलाकारों में से एक है। इन्होंने लगभग 1100 फिल्मों में काम किया है, और इनके नाम गिनीज़ बुक ऑफ विश्व रिकॉर्ड्स में एक ही भाषा के लिए सबसे अधिक फिल्में करने [900 से ज्यादा] का विश्व रिकॉर्ड दर्ज है। ब्रहमानन्दम को लेकर आपका क्या कहना है, हमें कमेंट सेक्शन में अवश्य बताएं।

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