Dasha Mata ki Katha : दशा माता की कथा पूजन एवं विधि
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Dasha Mata ki Katha साथ ही इससे जुड़े विधि के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
दशा माता की कथा-
दशा माता का व्रत चेत्र कृष्ण दशमी को किया जाता है । यह व्रत घर की दशा के लिए किया जाता है। सुहागन औरतें इस दिन डोरा लेती हैं।सफेद कच्चे सूत की कोकड़ी को रंग लेती हैं। 10 तार का डोरा लेकर उसमें 10 गाठें लगा देते हैं। डोरी को जलती हुई होली दिखाकर पहन लेते हैं। दस गेंहू के आखे लेकर कहानी सुनते हैं। एक कहानी सुनकर एक आखा नीचे रख देती हैं।इस प्रकार कुल दस कहानियां सुनती हैं।एक राजा रानी थे। उनका नाम नल और दमयंती था।रानी ने दशा माता का व्रत कर डोरा गले में बांध लिया। शाम को राजा जी आए तो राजा जी की नजर रानी के गले की में पीने डोरे पर पड़ी तो राजा जी ने कहा रानी जी आपके गले में इतने माणक मोती सोने के हार पहने हुए हैं। इनके बीच में डोरा अच्छा नहीं लगता। यह डोरा राजा ने खींचकर तोड़ दिया। कुछ दिन बाद राजा के महल के पत्थर उतर उतर कर गिरने लगे। अब वह महल महल नहीं रहा और राजा का मुकुट उड़कर न जाने कहां चला गया,अब तो राजा रानी विश मत हो गए कि अचानक कि क्या हो गया उन्होंने वह राज्य छोड़कर दूसरी जगह जाने का निश्चय किया ।राज्य के बाहर थोड़ी दूर की रास्ते में अंधेरा हो गया राजा रानी ने वही रात बिताने का निश्चय किया। उन्होंने वहां एक माली का बगीचा देखा माली बाहर आया तो राजा ने पूछा “हम रात यहां बसेरा कर ले क्या” ?माली ने कहा “हां कर लो”,जब राजा रानी वहां रात रूके सुबह उठने पर देखा ,बगीचा तो हरा भरा था एकदम से बंजर कैसे हो गया वहां घास का तो नामोनिशान नहीं था। जब किसान उठा और उसने भी यह हाल देखा तो राजा रानी को बहुत बुरा भला कहा और वहां से निकाल दिया।राजा रानी आगे गये तो वहां एक तेलन का घर देखा तो तेलन से दोपहर रुकने का आश्रय मांगा, तेलन ने भी उसे आश्रय दे दिया । तेलन के तेल की कोटिए और डिब्बे तेल से भरे हुए थे। जब राजा रानी वहां से चले गए तो देखा तेल के डिब्बे और कोटि अपने आप खाली हो गए ,तब तेलन ने कहा “क्या मालूम कैसे नर अभागों को मैंने आश्रय दिया जो मेरे तो नुकसान ही नुकसान हो गया”।वहां से राजा रानी गालियां खाते हुए आगे बड़े।थोड़ी देर बाद राजा की बहन का गांव आया। राजा ने किसी से कहलवाया कि उसके भाई भोजाई आए हैं और तालाब के किनारे रुके हुये हैं।
बहन ने यह समाचार सुना तो भाई भोजाई के लिए दो-चार ठंडी रोटी ऊपर दो प्याज डालकर नौकर के साथ भिजवा दिए और वापस समाचार कहलवाया कि अभी मेरे को समय नहीं है और यह कलेवा कर ले। भाई भोजाई ने आपस में कहा बहन का कोई कसूर नहीं ।सब अपनी दशा का चक्कर है। अपनी दशा खराब हैं इसलिए सभी बेरी हो गए हैं। और दोनों ने रोटी और प्याज वहां पर खड्डा खोदकर गाड़ दिया। थोड़े और आगे गए तो राजा का दोस्त मिल गया और कहा कि मेरे घर चलो और घर ले जाकर उनकी खूब खातिरदारी करी। चाय पानी पिलाया। और भाई दोस्त की घर की एक दीवार पर खूंटी पर एक हार लटका हुआ था। वहीं पर एक मोर बैठा हुआ था उसने वह हार निगल लिया। राजा रानी वहां से रवाना हो गए दोस्त की पत्नी ने देखा कि जो हार खूंटी पर टिका हुआ था वह वहां पर नहीं है। दोस्त की पत्नी ने कहा कि जिन्हें आपने घर पर बुलाया था उन्होंने मेरा हार चुरा लिया है। पति ने कहा कि मेरा दोस्त चोर नहीं है गरीबी के कारण ले गया होगा।राजा रानी ने सोचा कि अब हम दोनों को एक ही जगह पर जाकर रहना चाहिए जहां हमें कोई नहीं जानते हो और कोई नहीं रहे। राजा रानी एक जंगल में चले गए वहां पर राजा दिन में लकड़ियां की भारी भेज कर उन पैसों से आटा ,नमक ,मिर्ची आदि लाकर अपना गुजारा करते। एक दिन रानी ने राजा से कहा कि मै दशा माता का व्रत करूंगी। मुझे कच्चा सूत का डोरा और कोकड़ी लाकर देना दूसरे दिन राजा ने ज्यादा लकड़ियां इकट्ठी की और रानी के लिए कच्चा सूत और डोरी की गट्ठी भी ले आए।
रानी ने कहा कि मुझे यह डोरा बनाना है और होली की झाल देखनी है उसके बाद पूजा करनी है और कथा सुननी है। दूसरे दिन राजा पूजा-पाठ की सामग्री ले आया । और खुद ने भी पूजा की और कथा सुनी और होली को देखने के लिए वह गांव से थोड़ी दूर आ गए जहां कुछ लोग रहते थे। वहां पर कुछ औरतें पूजा कथा कर रही थी। रानी ने कहा कि मुझे भी पूजा कथा करनी है। और मेरा यह डोरा सफेद है इसे रंगना भी है। औरतों ने कहा कि यहां पर बहुत रंग पड़ा है और रानी ने दशा माता के डोरे को दस तार का किया और दस गांठ लगाई और रंग से रंगा और होली की जाल दिखा कर अपने गले में पहन लिया। डोरे को गले में पहनते ही राजा की लकड़ियां चंदन की हो गई जो बहुत महंगी बिकी। लकड़ियों का पैसा लेकर आ जा खुशी-खुशी घर आए रानी भी पीपल की पूजा कथा करके दशा माता की कहानी सुन के घर के लिए रवाना हो गई।वहां दशा माता की समेत दस कहानियां सुनी दस गेहूं के आखे लेकर कहानियां सुनी और एक एक कहानी सुनते हुए एक एक आखा नीचे रखती गई। उनमें शिव पार्वती जी की, लोबिया तोभीया की ,गजानंद जी की ,आरी बारी कान कंवारी, और भी छोटी मोटी मिलाकर दस कहानी सुनी। घर आई तो राजा ने कहा है कि मैं आज बहुत सारा पूजापा लेकर आया हूं तू खूब आनंद से पूजा करना। हमारी सारी लकड़ी चंदन की हो गई जो खूब महंगी बिकी है।रानी ने राजा से कहा कि “आज दशा माता का व्रत करके डोरा पहना है अब हमारे आनंद ही आनंद हो जाएगा”। राजा ने कहा कि “अब हम हमारे राज्य में वापस चलते हैं”।
राजा रानी वापस अपने राज्य की ओर चलते हैं तो रास्ते में पहले दोस्त के घर जाते हैं। दोस्त ने कहा आओ आराम कर लो राजा ने कहा कि तुम्हारी पत्नी ने पहले भी हम पर चोरी का इल्जाम लगाया था अब रुक कर क्या करें ?दोस्त ने फिर भी उन्हें रोका और पहले वाले कमरे में ही बैठा दिया चाय पानी और कलेवा करवाया। राजा रानी ने देखा कि जो खूंटी पर मोर बैठा हुआ था उसने वह हार वापस उगलना शुरू किया तो दोस्त को आवाज लगाई की देख तुम्हारा हार मोर वापस उगल रहा है दोस्त ने देखा तो उसे विश्वास हो गया कि मेरा दोस्त की दशा खराब होने की वजह से उन्हें ऐसा दिन देखना पड़ा। राजा फिर अपनी बहन की गांव से गया तो उसकी बहन ने बहुत बढ़िया भोजन करवाया पर राजा रानी ने नहीं किया। जब पहले की जगह जहां पर उन्होंने गड्ढा खोदकर रोटी और प्याज को डाला था देखा तो रोटी और प्याज सोने चांदी के हो गए।जिनको बहन को देकर वहां से चले गए। और तेलन के घर पहुंचे तेलन ने उनके रुकने पर मना कर दिया और कहा कि पहले भी कौन अभागे आए थे जिनकी वजह से मेरे तेल के डिब्बे और कोठियां खाली हो गई। राजा रानी ने कहा कि वह हम ही थे हमारी दशा खराब चल रही थी जिसकी वजह से यह दिन देखने पड़े। और तेलन के घर रुक गए तो तेलन ने देखा कि उसके सारे डिब्बे और कोठियां वापस से तेल की भर गई थी। आगे आकर उन्होंने माली के बाग में विश्राम किया तो वापस खेत व बाग बगीचा हरा भरा हो गया। प्रजा को पता चला कि राजा रानी आ रहे हैं तो प्रजा बहुत खुश हो गई। राज्य में जाते ही महल दशा माता का डोरा वापस पहना तो वापस खड़ा हो गया। और राजा रानी ने दशा माता की जय जय कार की। हे! दशामाता जैसा राजा रानी को टूटा वैसा दशा माता की कथा कहने वाले को, दशा माता की कथा सुनने वाले को व हुंकार भरने वाले सभी को टूटना।
दशा माता व्रत पूजन विधि सामग्री – (Dasha Mata ki Katha in hindi and worship method)
- चैत्र महीने की दशमी तिथि को हिन्दू महिलाओं द्वारा इस व्रत को रखा जाता हैं।
- घर की सुहागन स्त्री मंगल कामना के लिए दशामाता व्रत रखती हैं।
- दशा माता पूजा में कच्चे सूत का 10 तार का डोरा, जिसमें 10 गठानें लगाते हैं, लेकर पीपल की पूजा करती हैं।
- व्रत की पूजा के समय कथा का वाचन अवश्य करना चाहिए.।
- एक ही प्रकार का अन्न एक समय खाती है।
- दशामाता बेल के पूजन के बाद इसे गले में पूजा जाता हैं।
- यह व्रत आजीवन किया जाता है जिसका उद्यापन नहीं होता हैं।
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