जब कोई चलचित्र प्रदर्शित होता है तो भांति भांति की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं। इसी भांति उस फिल्म के भाग्य से लोगों में भांति भांति के भाव भी प्रकट होते हैं। कोई गुरु दत्त की भांति दीन दुनिया से नाता तोड़ लेता है तो कोई शाहरुख खान की भांति ओपनिंग वीकेंड के कलेक्शन का ढिंढोरा पीटने लगता है, भले ही वास्तविक कलेक्शन बजट को रिकवर करने के लिए भी पर्याप्त भी न हो। पर कुछ ऐसे भी होते हैं, जो अपनी ही फिल्मों के सफल होने पर माथा पीट लेते हैं कि ये कैसे हुआ और क्यों हुआ? जी हां, ऐसा हुआ है और बॉलीवुड में ही हुआ है। इस लेख में हम आपको उस कहानी से अवगत कराएंगे, जब किशोर कुमार इस बात से गुस्सा थे कि उनकी फिल्म सफल क्यों हुई, जबकि वह उसके फ्लॉप होने की कामना कर रहे थे।
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फिल्म चलती का नाम गाड़ी और कहानी
किशोर कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, ये लगभग सभी को ज्ञात है। वो गायक होने के साथ-साथ एक कुशल अभिनेता भी थे और हास्य कला में पारंगत भी थे। अब 1957 से 1958 का समय किशोर कुमार के लिए मानो उनके करियर का टर्निंग पॉइंट था, जहां उन्हें जमकर सफलता मिल रही थी। परंतु उनमें से एक फिल्म ऐसी भी थी, जिसके सफल होने से किशोर कुमार ही रुष्ट थे। आप विश्वास नहीं मानेंगे लेकिन यह फिल्म थी “चलती का नाम गाड़ी”, जिसमें शायद प्रथमत्या तीनों भाई- अशोक कुमार, किशोर कुमार एवं अनूप कुमार, एक साथ सिल्वर स्क्रीन पर काम कर रहे थे।
इसके पीछे एक बड़ा रोचक किस्सा है। किशोर कुमार का अतरंगी स्वभाव ऐसा था कि वो कर यानी टैक्स देने में भी तीन पांच करते थे। ऐसा नहीं था कि वो टैक्स चोरी के तरीके ढूंढ रहे थे, बस वो अपनी बचत को लेकर कुछ ज्यादा ही कड़क थे। वो चाहते थे कि कोई ऐसी फिल्म बने, जो बुरी तरह फ्लॉप हो और उसके कारण किशोर कुमार को आवश्यकता से कम टैक्स देना पड़े। इसी पसोपेश में बनी फिल्म चलती का नाम गाड़ी, जिसमें गीत एसडी बर्मन ने दिए और मुख्य भूमिकाओं में “कुमार तिकड़ी” के साथ उस समय की सबसे लोकप्रिय अभिनेत्रियों में से एक मधुबाला और तब की फिल्मों में नकारात्मक भूमिकाएं निभाने के लिए चर्चित के एन सिंह भी सम्मिलित थे। किशोर कुमार चाहते थे कि यह फिल्म न चले।
ब्लॉकबस्टर हुई यह फिल्म
परंतु आज जब कोई यह फिल्म देखता है तो सबसे मन में यही प्रश्न होता है कि आखिर किशोर कुमार ऐसी फिल्म को भला फ्लॉप क्यों कराना चाहते थे? आज के फिल्मों में जहां आपको सुई में घास की भांति कॉमेडी ढूंढ़नी पड़ती है तो वहीं दूसरी ओर फिल्म चलती का नाम गाड़ी को देखकर आपको लगेगा ही नहीं कि यह फिल्म लगभग 3 घंटे की है। ऊपर से इस फिल्म के गीत तो ऐसे हैं कि अभी भी लोग इसे काफी पसंद करते हैं। इस फिल्म के सदाबहार गाने “बाबू समझो इशारे”, “हम थे वो थी” या फिर “एक लड़की भीगी भागी सी” सभी को पसंद हैं।
अब होना क्या था, फिल्म केवल सफल ही नहीं बल्कि ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुई और किशोर कुमार की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। फिल्म चलती का नाम गाड़ी 1958 की दूसरी सबसे सफल हिन्दी फिल्म थी और ऐसे में किशोर कुमार ने इस फिल्म के अधिकतम अधिकार अपने सेक्रेटरी अनूप शर्मा को स्थानांतरित कर दिए, जो इस फिल्म में प्रोड्यूसर के रूप में क्रेडिट भी किये गए। वहीं, किशोर कुमार के लिए बस एक बात अच्छी यह रही कि इस फिल्म के बाद मधुबाला से उनकी निकटता बढ़ी और आगे उनका प्रेम कितना परवान चढ़ा, इसके लिए विशेष शोध की आवश्यकता नहीं है।
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