350 साल पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार, गोवा अपनी समृद्ध सनातन संस्कृति से फिर से जुड़ रहा है

मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत अपने वचन के अनुरूप ही कार्य कर रहे हैं।

Shree Saptakoteshwar Temple renovation

Source- TFI

Shree Saptakoteshwar Temple renovation: सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। गोवा की पहचान उसके उत्सव से परिपूर्ण वातावरण, मदिरा एवं बीच इत्यादि से होती है। परंतु गोवा की अपनी सनातन संस्कृति भी है, जिसे बलपूर्वक पुर्तगालियों ने मिटाने के भरसक प्रयास किए परंतु सफल नहीं हो पाए। अब इसी संस्कृति के पुनरुत्थान का बीड़ा गोवा सरकार और केंद्र सरकार ने संयुक्त रूप से उठाया है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे अपने वचन के अनुरूप गोवा सरकार सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान हेतु जी तोड़ प्रयास कर रही है और अप्रत्यक्ष रूप से ही सही परंतु केंद्र सरकार भी उसका साथ दे रही है।

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350 साल पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार

गोवा की प्रमोद सावंत सरकार प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों के जीर्णोद्धार को लेकर विशेष रूप से सक्रिय है। सरकार ऐसे प्राचीन मंदिरों की जांच और सर्वे करा रही है, जिन्हें पुर्तगालियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। ऐसे ही एक 350 साल पुराने सप्तकोटेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद सावंत सरकार ने बीते दिनों पुनर्निमित मंदिर (Shree Saptakoteshwar Temple renovation) का उद्घाटन किया। इस मंदिर को पुर्तगालियों ने काफी आघात पहुंचाया, परंतु सोमनाथ जी की भांंति इसका जीर्णोद्धार जोर शोर से किया गया।

सप्तकोटेश्वर मंदिर का इतिहास 350 साल पुराना है। ये मंदिर राजधानी पणजी से 35 किलोमीटर दूर उत्तर गोवा जिले के नरवे गांव में स्थित है। महाराजा छत्रपति शिवाजी महाराज ने तीन शताब्दी पहले इस मंदिर को पुनर्निर्मित कराया था। बाद नें जब भारत में पुर्तगाली आए तो उन्होंने इस मंदिर को क्षति पहुंचाई थी। प्रमोद सावंत सरकार ने वर्ष 2019 में Shree Saptakoteshwar Temple के renovation का काम शुरू कराया था। गोवा राज्य अभिलेखागार और पुरातत्व विभाग ने मंदिर का नवीनीकरण किया है।

इतना ही नहीं, उक्त मंदिर में मुगलों की वास्तुकला, यूरोपीयन तरीके से डिजाइन किए गए हॉल और एक ऊंचा लैंप टॉवर है। इस मंदिर में काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और यहां पर गोकुलाष्टमी नाम का एक उत्सव भी मनाया जाता है, जिसका हिस्सा बनने के लिए दूर-दराज से लोग पहुंचते हैं।

इसी अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐतिहासिक श्री सप्तकोटेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार (Shree Saptakoteshwar Temple renovation) पर गोवा सरकार को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि इससे युवाओं का आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ाव मजबूत होगा और राज्य में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने  एक ट्वीट करके कहा, ‘पुनर्निर्मित श्री सप्तकोटेश्वर देवस्थान, नरवे, बिचोलिम हमारे युवाओं को हमारी आध्यात्मिक परंपराओं से जोड़ेगा। इससे गोवा में पर्यटन को और बढ़ावा मिलेगा।’

इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी गोवा सरकार को जीर्णोद्धार (Shree Saptakoteshwar Temple renovation) के बाद ऐतिहासिक मंदिर को फिर से खोलने पर बधाई दी। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा ‘कई आक्रमणकारियों द्वारा हमला किए जाने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया था। अब एक प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में, यह पूरे भारत से पर्यटकों को आकर्षित करेगा।’

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गोवा का इतिहास

परंतु गोवा की इतनी अद्भुत संस्कृति को हमसे छुपाया क्यों गया? वो क्या है, ये इंडिया है, यहां कार्रवाई होती है अंग्रेज़ी BBC पर और रोते हैं उनके भारतीय खैरख्वाह, जो आज भी उन्हें अपना माई बाप मानने से नहीं चूकते। ऐसे लोगों ने दशकों तक हमारी संस्कृति की भव्यता से हमको अनभिज्ञ रखा और आज भी इन्हें लगता है कि अपनी संस्कृति को नमन करना हिंदू राष्ट्रवाद है, फ़ासीवाद है।

तो फिर गोवा की सनातन संस्कृति कैसी थी, और इसका उद्धार कैसे प्रारंभ हुआ?

दरअसल, गोवा के इतिहास को समझने के लिए पहले वहां के प्राचीन इतिहास को समझना आवश्यक है क्योंकि प्राचीन काल का गोवा आज के गोवा से बिल्कुल भिन्न हुआ करता था। गोवा एक प्राचीन हिंदू शहर था, जिसका अब बहुत कम भाग ही बचा है। इसका उल्लेख पुराणों और कई शिलालेखों में गोव, गोवापुरी और गोमंत के नाम से मिलता है। एक समय था जब यहां पर सामाजिक और सांस्कृतिक बैठकों का आयोजन किया जाता था।

परंतु ये सब तब बदल गया, जब पुर्तगालियों ने इसे अपने आधीन कर लिया। 1510 ईस्वी में पुर्तगाली ‘अफोंसो डी अल्बुर्क’ ने गोवा पर आक्रमण कर इसे अपने अधीन कर लिया। इसके बाद गोवा में अंधाधुंध धर्मांतरण करवाया गया और वहां के हिंदू मंदिरों पर कब्जाकर उनकी मूर्तियों को बाहर निकाल दिया गया। यही नहीं गोवा में लोगों को धर्मांतरण करने के लिए बहुत प्रताड़ित किया गया। बीच में मराठा योद्धाओं ने इसे स्वतंत्र कराने का भी प्रयास किया, परंतु वे आंशिक रूप से ही सफल रहे।

भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी सन् 1961 तक गोवा पुर्तगालियों के ही अधीन रहा और बिना युद्ध के ये स्वतंत्र नहीं हो पाया। वहां पर आज हिंदू मंदिरों से अधिक ईसाईयों के चर्च और ईसाइयत ही देखने के लिए मिलती है। हालांकि आज भी गोवा की 60 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की है। इसके अलावा गोवा के ईसाईयों में आज भी हिंदू संस्कृति की छवि देखने को मिलती है। परन्तु लोगों के मन में गोवा की छवि ऐसी बना दी गई है जैसे वहां पर ईसाई धर्म के अलावा और कुछ है ही नहीं।

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मंदिरों के पुनर्निर्माण की पहल

परंतु अब और नहीं। 19 दिसम्बर 2021 को गोवा मुक्ति दिवस मनाया गया। उस समय कार्यवाहक मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मंगलवार को गोवा की मुक्ति के 60वें वर्ष में कहा कि वह पुर्तगालियों द्वारा नष्ट किए गए मंदिरों के पुनर्निर्माण की पहल करना चाहते हैं।

सावंत ने पोंडा के मंगेशी में ऐतिहासिक श्री मंगुशी मंदिर में पुनर्निर्मित पर्यटन सुविधाओं का उद्घाटन करने के बाद कहा, “मैं अपनी हिंदू संस्कृति और मंदिर संस्कृति को संरक्षित करने और सुरक्षित करने की मांग को पूरा करने के लिए आपसे ताकत मांग रहा हूं। उस हिंदू संस्कृति और मंदिर संस्कृति को बहाल करने में आपकी मदद की आवश्यकता है। श्री मंगुशी मंदिर का उद्गम कुशस्थली या आधुनिक समय के कोरटालिम में हुआ था, जो 1543 में हमलावर पुर्तगालियों के हाथों में आ गया था। हमारे पूर्वजों ने मंगेश लिंग को कुशास्थली के मूल स्थान से वर्तमान स्थान मंगेशी में स्थानांतरित कर दिया था। पुर्तगालियों ने गोवा में कई मंदिरों को तोड़ा था, लेकिन हमारे पूर्वजों ने उन मंदिरों को फिर से बनवाया था।”

अब अपने वचन के अनुरूप प्रमोद सावंत की सरकार गोवा के सनातन संस्कृति का पुनरुद्धार करने को उद्यत है, जिसका शुभारंभ श्री सप्तकोटेश्वर् देवस्थान के जीर्णोद्धार के माध्यम से सफलतापूर्वक किया गया है।

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