भारत और यूएई का करीब आना, भविष्य में चीन के लिए है घातक

भारत की जबरदस्त और आक्रामक विदेश नीति को चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के लिए खतरा माना है।

भारत और यूएई

आज विश्व भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरते हुए देख रहा है,आर्थिक हो या कूटनीतिक हर स्तर पर भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत की इस गति से बढते वर्चस्व को देखकर दुनिया के कई देश भारत से हाथ मिलाना चाहते हैं। जिन देशों के साथ भारत के रिश्ते बेहद मजबूत हैं वो देश इन रिश्तों को और ज्यादा मजबूती देना चाहते हैं। जिससे कोई अन्य देश आकर उनकी जगह ना ले ले। उन्हीं में से एक देश है यूएई, जिसके साथ पिछले काफी समय से भारत के रिश्ते काफी मैत्रीपूर्ण होते जा रहे हैं। जिससे दोनों देशों के संबंध काफी मजबूत हो रहे हैं।

भारत और यूएई के बीच कई समझौते हुए हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में काफी वृद्धि आई है। जहां अब इन रिश्तों को ओर भी ज्यादा मजबूती प्रदान करने के लिए दुबई में भारत और यूएई द्वारा यूएई इंडिया बिजनेस काउंसिल-यूएई चैप्टर (यूआईबीयूसीयूसी) लॉन्च किया गया है।

यूएई के विदेश व्यापार राज्य मंत्री डॉ. थानी बिन अहमद अल जायौदी ने इसका शुभारंभ किया। जहां अब भारत और यूएई ने अपने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही यूएई से भारत में 75 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित करने का भी टारगेट रखा गया है। यूएई इंडिया बिजनेस काउंसिल-यूएई चैप्टर के लॉंच होने से इन लक्ष्यों को पाने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही दोनों देशों के संबंध और भी मजबूत होंगे।

यूएई के विदेश व्यापार राज्य मंत्री डॉ. थानी बिन अहमद ने कहा कि यूएई इंडिया बिजनेस काउंसिल के यूएई चैप्टर के लॉन्च होने से संयुक्त अरब अमीरात और भारत के संबंध और मजबूत होंगे। इससे द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा। मुझे विश्वास है कि यह दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए काम करेगा। वहीं यूएई में भारत के राजदूत सुंजय सुधीर ने कहा, “आज का लॉन्च संयुक्त अरब अमीरात और भारत के बीच संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा । मैं यूएई इंडिया बिजनेस काउंसिल के सभी संस्थापक सदस्यों को बधाई देता हूं।”

आपको बता दें कि यूआईबीसी इंडिया चैप्टर का 03 सितंबर 2015 को नई दिल्ली में गठन हुआ था। यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान और भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज द्वारा ने इसका शुभारंभ किया था।

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बता दें कि पिछले वर्ष फरवरी में ही भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अबु धाबी के शहजादा शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान की ऑनलाइन शिखर वार्ता के दौरान व्यापार समझौते पर  दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर किये गये थे।

इस दौरान वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल  ने कहा था कि भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने से द्विपक्षीय व्यापार को अगले पांच साल में 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।इसके साथ ही लाखों की संख्या में रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा। इस मुक्त व्यापार समझौते में भारत और संयुक्त अरब अमीरात की कंपनियों को महत्वपूर्ण लाभ और कम शुल्क दरें मिलना शामिल था।

संयुक्त अरब अमीरात के विदेश व्यापार राज्य मंत्री थानी बिन अहमद अल जेयोदी ने कहा था कि यह समझौता 2030 तक संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 1.7 फीसदी या 8.9 डॉलर का इजाफा करेगा और निर्यात में 1.5 फीसदी की वृद्धि करेगा।

आंकड़ों के अनुसार, एफटीए के बाद, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के द्विपक्षीय व्यापार में 27.5 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। मौजूदा 8 महीनों के दौरान यह व्यापार 57.8 अरब डॉलर पर पहुंच गया है भारतीय राजदूत, संजय सुधीर के अनुसार, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के व्यवसाय सीईपीए के शुल्क छूट और अन्य लाभों का लाभ उठा रहे हैं।

भारत और यूएई के बीच हुए भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने एक मुक्त व्यापार समझौते के एक साल बाद भारत और यूएई द्वारा यूएई इंडिया बिजनेस काउंसिल-यूएई चैप्टर (यूआईबीयूसीयूसी) लॉन्च किया गया है जो दोनों देशों के आपसी रिश्तों नई ऊर्जा प्रदान करेगा।

आपको बता दें कि भारत लगतार यूएई के साथ अपने संबधों को मजबूत  कर रहा है। हाल ही में भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने एक त्रिपक्षीय मंच बनाने का ऐलान किया है। इसके तहत तीनों देश मिलकर रक्षा सहयोग, सौर और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में मिलकर काम करेंगे। भारत, फ्रांस और यूएई के इस संगठन से  चीन चिंतित हो उठा था। अब चीन के चिंतित होने कारण भी है। दरअसल, भारत यूएई का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है।पहले नंबर पर चीन है। वित्त वर्ष 2021 में चीन-यूएई व्यापार 60.06 अरब डॉलर रहा।

वहीं दूसरी ओर, भारत के साथ संयुक्त अरब अमीरात का व्यापार 43 अरब डॉलर था और संयुक्त राज्य अमेरिका 24.47 अरब डॉलर के साथ था। ऐसे में अगर 5 साल के भीतर 100 अरब डॉलर के लक्ष्य की कल्पना की जाती है तो यह चीन के लिए एक बड़ा झटका होगा। अनुमान है कि संयुक्त अरब अमीरात जल्द ही 90 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रवेश द्वार बन जाएगा। इसका सीधा सा मतलब है कि यह एक व्यापार केंद्र होगा और उत्तरी अफ्रीका का प्रवेश द्वार भी होगा। अफ्रीका के पश्चिमी तट पर व्यापार करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

गौरतलब है कि पीएम मोदी ने साल 2015 में यूएई का दौरा किया था। भारत के प्रधानमंत्री का ये दौरा 34 साल के लंबे अंतराल के बाद हुआ था। उसके बाद से प्रत्येक वर्ष बीतने से साथ साथ भारत और संयुक्त अरब अमीरात के संबंधों में एक नई वृद्धि देखी गई। 2018 में, दोनों देशों ने गैर-तेल व्यापार के लिए डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने का निर्णय लिया। जिससे पता चलता है कि भारत और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्ते नई नई ऊचाईयां छू रहे हैं।

संयुक्त अरब अमीरात ने दिवंगत पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को अबू धाबी में हुए OIC की विदेश मंत्रियों की बैठक में विशेष मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया था। इसके साथ साथ जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दे पर भी संयुक्त अरब अमीरात मज़बूती से भारत के साथ खड़ा रहा।

वित्त वर्ष 2021-22 में भारत और यूएई के बीच व्यापार 73 अरब डॉलर का रहा। वहीं  2019-20 में दोनों देशों के बीच 59 अरब डॉलर का ट्रेड हुआ । भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जुलाई) में, सऊदी से भारत का आयात 93 प्रतिशत बढ़कर 15.5 अरब डॉलर हो गया और निर्यात लगभग 22 प्रतिशत बढ़कर 3.5 अरब डॉलर हो गया।

पिछले साल नवंबर में भारत-यूएई रिश्तों को  बढ़ावा देते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने संयुक्त अरब अमीरात के समकक्ष शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान से मुलाकात की थी। बैठक के दौरान, दोनों मंत्रियों ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी के ढांचे के तहत दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की थी। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने की संभावनाओं पर भी चर्चा हुई थी। साफ़ है कि दोनों देशों के संबंध अब कूटनीतिक प्रोटोकॉल के दायरों से कहीं आगे बढ़ चुके हैं।

एक दशक पहले तक, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप दुनिया के बड़े व्यापारिक खिलाड़ी थे। लगभग हर विकासशील देश उनके साथ व्यापार करना पसंद करता था। लेकिन अब ये पारंपरिक बाजार धीमा हो रहे हैं। इसके अलावा विकासशील देशों को वैश्विक व्यापार में अपार संभावनाएं दिख रही हैं। भारत भी इस प्रवृत्ति को देख रहा है और इसलिए ऐसा लगता है कि भारत की विदेश नीति का विश्व के प्रति यह व्यापक दृष्टिकोण है। लेकिन जब मध्य पूर्व की बात आती है तो चीन के भी गहरे संबंध हैं, जो अपनी गलत नीतियों से भारत के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने की कोशिश करता है।

वर्तमान विश्व व्यवस्था में भारत का सबसे बड़ा प्रतियोगी निस्संदेह चीन है। भारत की वृद्धि चीन की आंखों में चुभ रही है। जहां चीन का प्रभाव  है  वहां भारत अपने पैर पसार रहा है।  लैटिन अमेरिका से लेकर अफ्रीका तक और पश्चिम एशिया से लेकर पूर्वी एशिया तक, भारत की जबरदस्त और आक्रामक विदेश नीति को चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के लिए खतरा माना है। ऐसे में भारत लगातार चीन के प्रभाव वाले इलाकों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने में लगा है। जिससे चालबाज ड्रैगन को सबक सिखाया जा सके।

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