“अमेरिका समेत पश्चिमी देश अपनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए अब भारत पर निर्भर हैं”, बाइडन की चौधराहट धरी की धरी रह गई

इसके पीछे की क्रोनोलॉजी समझ लीजिए।

Modi and Biden

Source- Google

India US oil trade: तेल का खेल पश्चिमी देशों ने ख़ूब खेला, जब तक खेल पाए तब तक खेला लेकिन अब खेल के नियम बदल गए हैं। अब चालें भारत चलता है और दुनिया उन चालों का या तो काट ढूंढ़ती है या फिर उन्हें स्वीकार करके उसी राह पर चलती है। वो भी दिन थे, जब अमेरिका समेत पश्चिमी देश भारत को हड़का रहे थे, डरा रहे थे, धमका रहे थे कि रूस से तेल मत खरीदो नहीं तो हम तुम पर प्रतिबंध लगा देंगे। भारत ने उनकी एक ना सुनी और वही किया जो उसके हित में था। आज वही अमेरिका और वही पश्चिमी देश अपनी ऊर्जा आपूर्ति भी भारत से तेल खरीदकर कर रहे हैं।

अब भारत वैश्विक राजनीति को अपने अनुसार चलाता है, अपनी शर्तों पर चलाता है। आज का समय ऐसा है कि खिलौनों से लेकर वैक्सीन तक और शस्त्रों से लेकर तेल आपूर्ति तक, हर क्षेत्र में भारत का बोलबाला है। स्थिति तो यह है कि भारत अब पश्चिम की ऊर्जा आपूर्ति को भी पूरा कर रहा है। इस बात पर विश्वास करना थोड़ा कठिन है लेकिन ऐसा ही हो रहा है।

रूस एवं यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद वैश्विक समीकरण काफी हद तक बदल चुके हैं और इससे तेल जगत भी अछूता नहीं रहा है। कहने को वैश्विक तेल आपूर्ति पर अमेरिका एवं खाड़ी देशों का ही वर्चस्व है और केवल रूस ही ऐसा देश था, जो प्रत्यक्ष तौर पर उन्हें चुनौती दे सकता था। परंतु रूस-यूक्रेन युद्ध शुरु होने के बाद अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस के ऊपर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें रूस से तेल क्रय करने पर भी प्रतिबंध था। अमेरिका और पश्चिमी देशों के दवाब में कई देशों ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया लेकिन इससे रुस को विशेष फ़र्क नहीं पड़ा, उल्टे पश्चिमी देशों को अपनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए इधर-उधर भागना पड़ गया। तो प्रश्न ये उठता है कि इन सभी समीकरणों से भारत कैसे पश्चिमी देशों की और अमेरिका की ऊर्जा आपूर्ति कर रहा है?

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India US oil trade: भारत से सबसे अधिक तेल खरीद रहा अमेरिका

वाशिंगटन थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के बेन काहिल का कहना है कि अमेरिकी ट्रेजरी अधिकारियों के दो मुख्य लक्ष्य हैं- बाजार को अच्छी तरह से आपूर्ति मिलती रहे और रूस का तेल राजस्व कम हो जाए। वे जानते हैं कि भारतीय और चीनी रिफाइनर सस्ता रूसी क्रूड ऑयल खरीदकर और बाजार की कीमतों पर उत्पादों का निर्यात (India US oil trade) करके बड़ा मार्जिन कमा सकते हैं। हालांकि, उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं है।

सच पूछें तो वाशिंगटन इस स्थिति में है ही नहीं कि कोई आपत्ति प्रकट कर सके। जब भारत ने रूस से सस्ते दामों पर क्रूड ऑयल खरीदना प्रारंभ किया था तो अमेरिका ने पहले आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी और जब बात नहीं बनी, तो वह प्राइस कैप लगाने की बात करने लगा। परंतु भारत को दोनों बातों से रत्ती भर भी अंतर नहीं पड़ा और जब अमेरिका के यूरोपीय चम्मचों ने आपत्ति जताई, तो विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उन्हें दर्पण दिखाते हुए स्पष्ट कहा कि जितना तेल भारत रुस से तीन महीनों में खरीदता है, उतना तेल यूरोप रुस से एक दिन में खरीद लेता है।

हाल ही में जयशंकर से जब दोबारा इसको लेकर प्रश्न किया गया तो उन्होंने कहा, “हम अपने हितों के बारे में बहुत ईमानदार रहे हैं। मेरे पास 2,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाला देश है। ये वे लोग नहीं हैं जो उच्च ऊर्जा की कीमतें वहन कर सकते हैं। यह मेरा दायित्व है, मेरा नैतिक कर्तव्य है कि मैं यह सुनिश्चित करूं कि मैं सबसे अच्छा सौदा कर सकूं जो उनके हित में हो।”

इसी का परिणाम है कि भारत केवल अपने हितों की ही नहीं, अपितु वैश्विक हितों का भी निवारण करने हेतु काम कर रहा है परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। चर्चित डेटा इंटेलिजेंस फर्म केप्लर के मुताबिक, भारत ने पिछले महीने न्यूयॉर्क में लगभग 89,000 बैरल प्रति दिन गैसोलीन और डीजल का निर्यात किया, जो लगभग चार वर्षों में सबसे अधिक है। यूरोप में कम सल्फर वाले डीजल का निर्यात जनवरी में 1,72,000 बैरल था, जो अक्टूबर 2021 के बाद सबसे अधिक है। अर्थात भारत, रुस से तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा आपूर्ति तो सुनिश्चित कर ही रहा है साथ ही साथ वो पश्चिमी देशों को तेल भी बेच रहा है- अर्थात उनकी ऊर्जा आपूर्ति को भी पूरा कर रहा है।

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ऊर्जा कंपनियों के अधिकारियों के साथ पीएम की बैठक

ध्यान देने योग्य है कि पीएम नरेन्द्र मोदी जल्द ही दुनिया की दिग्गज ऊर्जा कंपनियों (जिसमें मुख्य तौर पर तेल व गैस सेक्टर की कंपनियां) के प्रमुखों के साथ एक अहम बैठक करने वाले हैं, जहां उनका ध्येय इन कंपनियों को भारत की ओर आकृष्ट करना रहेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में अभी भी अगले दो दशकों तक तेल व गैस की मांग में लगातार वृद्धि होने की संभावना है। पीएम मोदी इन कंपनियों के अधिकारियों से बेंगलुरू में इंडिया इनर्जी वीक (आइईडब्लू) के दौरान मुलाकात करेंगे। पीएम मोदी की इस मुलाकात को पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से तेल व गैस खोज के लिए कंपनियों को दी जाने वाली जमीन दोगुनी करने की योजना से जोड़ कर भी देखा जा रहा है।

इतना ही नहीं, भारत पेट्रोलियम संसाधनों से निर्मित उत्पादों का विशुद्ध निर्यातक है और कई देश पेट्रोकेमिकल्स एवं उससे संबंधित उत्पादों के लिए भारत पर ही निर्भर हैं। इस विषय पर सिंगापुर स्थित आईएनजी ग्रोप एनवी में कमोडिटी स्ट्रैटेजी के प्रमुख वारेन ने बताया कि कैसे भारत द्वारा रूसी तेल एवं पेट्रोकेमिकल्स से संबंधित उत्पाद का निर्यात मूल रूप से पश्चिम में मौजूदा तंगी को कम करने में मदद करेगा। उनका कहना है, “यह बहुत स्पष्ट है कि इस उत्पाद के लिए उपयोग किए जाने वाले फीडस्टॉक का बढ़ता हिस्सा रूस से पैदा होता है।”

अमेरिका के गले में पट्टा पड़ गया है!

अब यहाँ पर यूरोपीय संघ के दिशानिर्देशों के तहत भारत संभवतः नियमों के भीतर काम कर रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भारत जैसे ब्लॉक के बाहर किसी देश में रूसी कच्चे तेल को ईंधन में संसाधित किया जाता है, तो परिष्कृत उत्पादों को यूरोपीय संघ में वितरित किया जा सकता है क्योंकि उन्हें रूसी मूल का नहीं माना जाता है। तो अगर यूरोप चाहे भी तो भी वह भारत पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं कर सकता और करेगा भी तो सबसे अधिक हानि यूरोप को ही होगी।

आपको बताते चलें कि पश्चिम के तमाम तिकड़म के बावजूद भारत इस क्षेत्र में अब सबकी जरूरत बन गया है। अमेरिका और यूरोपीय देश स्पष्ट तौर पर रूस से तेल खरीद नहीं सकते, कारण कुछ नहीं उनका दोमुंहापन है। ऐसे में अब वो ‘कान सीधा छूने’ के बजाय दुनिया की नजर में धूल झोंकने के लिए ‘हाथ घूमा कर कान छू रहे हैं’। दुनिया में यही चर्चा है कि यूरोप और अमेरिका ने पूरी तरह से रूस को बॉयकॉट कर दिया है, रूस का सामान नहीं खरीद रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी बिल्कुल भी नहीं है। भारत लगातार रूस से सस्ती कीमत पर तेल खरीद रहा है और अपनी आवश्यकता के अनुसार उसे इन देशों को सप्लाई (India US oil trade) कर रहा है और भारत से तेल लेने के मामले में अमेरिका सबसे आगे है।

ओवरऑल बात यही है कि दूसरे देशों के गले में घंटी बांधने वाले अमेरिका के गले में पट्टा पड़ गया है। वह चाह कर भी उससे निकल नहीं सकता और चाह कर भी अपनी निर्भरता खत्म नहीं कर सकता। दूसरी ओर भारत मौके का पूरा लाभ हटा रहा है, पश्चिमी देशों को ठेंगा दिखाते हुए अपने हिसाब से चीजों को कर रहा है और स्थिति ऐसी हो गई है कि मौजूदा समय में ऊर्जा आपूर्ति के क्षेत्र में भारत, विश्व का केंद्र भी बन गया है।

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