आज से कुछ वर्षों पूर्व एक बात काफी प्रचलित थी- “लड़का हुआ तो इंजीनियर लड़की हुई तो डॉक्टर…”। कुछ इसी तरह से माता पिता अपने बच्चों का भविष्य बनाने की योजना भी करते थे। इंजीनियरिंग को ऐसे पेश किया जाता था मानों इसके माध्यम से किसी भी छात्र का भविष्य एक झटके में संवर जाएगा। इंजीनियरिंग को लेकर उस दौरान ही वैश्विक स्तर पर आईटी सेक्टर की शुरुआत हो रही थी। इसके चलते इंजीनियरों को काफी महत्व दिया जाता था। किंतु अब पूरा पासा पलट चुका है। अब इंजीनियरिंग को लेकर छात्रों का रुझान धीरे-धीरे कम हो रहा है और वे अन्य क्षेत्रों में अधिक संभावनाएं देख रहे हैं, लेकिन इसके पीछे क्या कारण है? आइए इस पर चर्चा करते हैं।
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इंजीनियरिंग से मुंह फेर रहे छात्र
दरअसल, हाल में रिपोर्ट सामने आई हैं जिसमें यह बताया गया है कि इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन करने वाले छात्रों की संख्या तेजी से कम हो रही है। ऑल इंडिया हायर एजुकेशन सर्वे की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 के मुकाबले 2020-21 में इंजीनियरिंग में प्रवेश में 10 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली है। छात्रों के प्रवेश की संख्या 40.85 लाख से घटकर 36.63 लाख रह गई। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) में इसको लेकर लंबे समय से चर्चाएं चल रही थी। अहम बात यह है कि स्नातक स्तर पर अन्य सभी कार्यक्रमों में समग्र प्रवेश संख्या में वृद्धि हुई है लेकिन इंजीनियरिंग के दाखिले में गिरावट आई है। ये आंकड़ा साल 2019-20 और 2020-21 के बीच इंजीनियरिंग कार्यक्रमों में दाखिला लेने वालों की संख्या में 20 हजार की मामूली बढ़ोतरी दिखाता है लेकिन पिछले पांच वर्षों के हिसाब से यह वृद्धि सबसे कम है।
इस रिपोर्ट के अनुसार कुछ साल पहले तक भारत में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए छात्रों के बीच काफी रुझान रहता था और देश में इंजीनियरिंग के कॉलेज भी खूब खुल रहे थे। पांच साल तक इंजीनियरिंग कार्यक्रम अन्य कार्यक्रमों के मुकाबले तीसरे नंबर पर था। उस समय बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) पहले स्थान और बैचलर ऑफ साइंस (बीएससी) दूसरे स्थान पर था। बीते पांच सालों में नामांकन में गिरावट के साथ बीटेक और बीई कार्यक्रम चौथे स्थान पर पहुंच गया। इसकी जगह बीकॉम ने तीसरे स्थान पर ले ली हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
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इसके पीछे कई कारण हैं
देखा जाये तो मध्यम वर्ग परिवारों के बच्चे इंजीनियरिंग इसलिए चुनते थे कि उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित करना होता था और यदि आईआईटी और एनआईटी समेत सरकारी संस्थाओं से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर लेते तो उनके लिए अच्छी या कहें कि करोड़ों तक सैलरी पैकेज वाली जॉब्स के ऑफर आ जाते थे। ऐसे छात्र दूसरों का उदाहरण लेकर भी शीघ्र से शीघ्र स्वयं को सेटेल करने के उद्देश्य में इजीनियरिंग चुन लेते थे। उन्हें लगता था कि इसके जरिए उनकी तमाम तरह की समस्याएं खत्म हो जायेगीं।
अब यहां समस्या हुई कि अधिक कॉलेज खुलने से इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों की संख्या में उछाल आया। प्रतिस्पर्धा यहां बढ़ गई। डिमांड और सप्लाई का खेल यहां भी चलने लगा। एक तरफ जहां नौकरी को लेकर मारामारी होने लगी तो वहीं कंपनियों ने डिमांड अधिक होने पर अपने ऑफर्स कम कर दिए। वहीं पिछले कुछ वर्षों में आईटी सेक्टर्स में कर्मचारियों की हो रही छंटनी भी चिंता का एक कारण बनी हुई है, जिसके चलते पैसे की कम और नौकरी में अस्थिरता छात्रों के इंजीनियरिंग का रुझान खत्म होने की एक बड़ी वजह बन रही है।
इसके अलावा आज लोगों के पास अनेकों विकल्प मौजूद हैं, जिसके चुनकर वो अच्छी खासी कमाई कर सकते है। इंजीनियरिंग हर किसी के बस की बात नहीं होती। इंजीनियरिंग में अपना अच्छा करियर बनाने के लिए वर्षों तक खूब मेहनत करनी पड़ती है। इसके अलावा इंजीनियरिंग की पढ़ाई में पैसा भी काफी खर्च होता है। इंजीनियरिंग करने के बाद भी नौकरी पाने में कई तरह की समस्याएं आती हैं।
यह इंटरनेट का दौर है, जहां लोग एक वीडियो बनाकर पैसा कमा रहे हैं। तो उस परिस्थिति में लोग यह भी जानने के लिए ललायित रहते हैं कि आखिर वे कौन से कोर्स करके एक अच्छा करियर चुन सकते हैं। ऐसे में जिन लोगों को पहले इंजीनियरिंग और डॉक्टरी के अलावा और कुछ पता नहीं था वे भी अन्य कोर्सेज के बारे में सर्च करने लगे। लोगों ने अन्य क्षेत्रों में थोड़ा सा ध्यान देकर अच्छा पैसा कमाया और अन्य लोगों का भी उन्हीं कोर्सेज के लिए बढ़ने लगा। इसका परिणाम यह हो रहा है कि धीरे-धीरे छात्र इंजीनियरिंग से दूर होते चले जा रहे हैं।
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