अक्सर कोई भी महत्वपूर्ण या क्रांतिकारी कार्य करने चलो, तो सबसे प्रथम प्रश्न उठता है- लोग क्या कहेंगे? परिवर्तन की बजाय यह विचार आ जाता है कि लोग क्या कहेंगे? जिसके कारण कई बार कई क्रांतिकारी विचार जन्म लेने से पूर्व ही दम तोड़ देते हैं। परंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो बस अपने हृदय की सुनते हैं। आवश्यक नहीं कि ये सौम्य या सुशील हों, परंतु इनके कार्य ऐसे होते हैं कि आप चाहे इन्हे पूजें या दुत्कारें, परंतु अनदेखा नहीं करते। ऐसे ही इंद्र सेन जौहर।
इस लेख में पढ़िए इंद्र सेन जौहर के बारे में जिनकी व्यंग्यात्मक शैली और फिल्मों से फिल्मी जगत छोड़िए सत्ता तक में त्राहिमाम मच जाता था।
आज जौहर नाम सुनकर कई सिनेमा प्रेमी बिदक जाते हैं। वैसे भी, करण जौहर ने कोई बहुत अच्छा नाम तो नहीं बनाया है, परंतु बहुत कम लोगों को पता है कि एक जौहर ऐसे भी थे, जिनके सामने अच्छे-अच्छे नतमस्तक हो जाते थे, और जिनके प्रभाव को हॉलीवुड के कलाकार भी मानते थे।
नसबंदी पर बनाई फिल्म
ये व्यक्ति करण जौहर के चाचा और प्रख्यात हास्य कलाकार एवं निर्देशक इंद्रजीत सेन जौहर या इंदर सेन जौहर थे, जिन्होंने Narcissism की नई परिभाषा भी गढ़ी थी।
इंद्र सेन जौहर जिन्हें आईएस जौहर के नाम से पुकारा जाता था, उन्होंने आपातकाल और नसबंदी जैसे गंभीर व सामाजिक मुद्दों पर भी फिल्में बनाईं। 1949 से लेकर 1984 तक वो फिल्मों में योगदान देते रहे। इनका जन्म 16 फरवरी 1920 को तालगंग में हुआ था।
बंटवारे के बाद ये जगह पाकिस्तान में चली गई। भारत के जालंधर में एक शादी में शामिल होने जौहर परिवार भारत आया था, परंतु भीषण दंगों के कारण ये लोग वापस लाहौर नहीं जा सके। इसके बाद इन्होंने जालंधर में ही रहकर काम शुरू किया।
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काम के सिलसिले में ये दिल्ली-मुंबई जैसे नगरों की यात्रा किया करते थे और इसी बीच वे मनोरंजन जगत की ओर आकृष्ट हुए। एक लेखक के रूप में कार्य करते हुए इंदर सेन जौहर को उस समय के मशहूर निर्देशक रूप शौरी ने ब्रेक दिया।
उन्ही की लिखी स्क्रिप्ट पर फिल्म बनी ‘एक थी लड़की’, जो 1949 में सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया था।
आईएस जौहर बंटवारे के दुख को कभी भुला नहीं पाए, परंतु वे हाथ पर हाथ धरे भी नहीं बैठे रहना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने लेखन, एवं अपनी व्यंग्यात्मक शैली को अपना अस्त्र बनाया।
‘नास्तिक’ हुई सफल
बहुचर्चित लेखक शशाधर मुखर्जी ने उन्ही की स्क्रिप्ट पर आधारित ‘नास्तिक’ नाम की एक फिल्म बनाई, जो 1954 में प्रदर्शित हुई और भारत के विभाजन पर आधारित प्रथम कुछ फिल्मों में से एक थी।
इस फिल्म की सफलता के पश्चात आईएस जौहर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, और वे स्टार लेखकों की सूची में शामिल हो गए। कहते हैं कि वे इतने प्रभावशाली थे कि इन्होंने चोपड़ा बंधुओं, यानि बलदेव राज चोपड़ा एवं यश चोपड़ा के फिल्म उद्योग में अपने पैर जमाने में भी काफी सहायता दी। जौहर की लिखी फिल्म ‘अफसाना’ से ही बीआर चोपड़ा मशहूर निर्देशक बने।
आईएस जौहर केवल बॉलीवुड तक ही सीमित नहीं रहे। उनका जादू हॉलीवुड में भी खूब चला। उन्होंने ऑस्कर विजेता ‘लॉरेंस ऑफ अरेबिया’ जैसी कई फिल्मों में काम किया था। इसी फिल्म में जिस रोल के लिए ओमर शरीफ को पुरस्कृत किया गया, उसी भूमिका के लिए दिलीप कुमार को भी अप्रोच किया गया था, वो अलग बात थी कि उन्होंने ये रोल करने से स्पष्ट मना कर दिया था।
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परंतु जिस शैली के लिए इंद्र सेन जौहर सबसे अधिक चर्चित थे, वह था उनका व्यंग्य। Narcissism आईएस जौहर के अंदर इतना कूट-कूट कर भरा हुआ था, कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण विषयों पर व्यंग्यात्मक फिल्में बनाईं, जिसका वे स्वयं निर्माण करते, निर्देशन करते और कई बार तो स्वयं ही लीड रोल में भी रहते।
उन्होंने अपने नाम से बनी फिल्मों की लाइन लगा दी थी, जिससे महमूद जैसे अभिनेताओं को उनकी कॉमेडी के लिए लोग अधिक जानने भी लगे। ‘जौहर महमूद इन गोवा’, ‘जौहर इन कश्मीर’, ‘जौहर इन बॉम्बे’, ‘मेरा नाम जौहर’, ‘जौहर महमूद इन हांग कांग’ जैसी फिल्मों से उन्होंने खूब लोकप्रियता बटोरी थी।
साहसी थे जौहर
परंतु जितना ही नाता इनका सफलता से था, उतना ही विवादों से भी। इस मामले में इन्हें करण जौहर का पूर्वज कहा भी जा सकता है, परंतु एक स्पष्ट अंतर है दोनों में- आईएस जौहर क्रिएटिव और साहसी थे।
उदाहरण के लिए जहां “जौहर महमूद इन गोवा” में पुर्तगालियों से स्वतंत्रता संग्राम पर इन्होंने प्रकाश डाला, तो “जौहर इन कश्मीर” में इन्होंने कश्मीर में पनप रहे भारत विरोधी तत्वों के विरुद्ध भी आवाज़ उठाई।
इसी फिल्म का एक गीत “कश्मीर है भारत का, कश्मीर न देंगे” गीत अति लोकप्रिय हुआ था। इस गीत को मोहम्मद रफी ने अपने स्वर दिए थे। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इसे सेंसर करने के प्रयास भी किए, परंतु इंद्र सेन जौहर ठहरे अतरंगी, उन्होंने फिल्म भी प्रदर्शित और गीत को भी अक्षुण्ण रखा।
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इतना ही नहीं, वे इतने धाकड़ और मनमौजी थे कि जब शिमला समझौते हेतु भुट्टो परिवार भारत आया, तो उन्होंने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी, जोकि बाद में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं- उन्हें फिल्म उद्योग में काम करने का प्रस्ताव भी दे दिया।
आईएस जौहर ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गई आपातकाल और उस दौरान चलाए गए कार्यक्रम नसबंदी को लेकर एक कॉमेडी फिल्म नसबंदी भी बनाई।
यूं तो ये फिल्म आपातकाल के समय ही प्रदर्शित होती, परंतु इंदिरा सरकार द्वारा लगाए अड़ंगों एवं निजी समस्याओं के चलते ये फिल्म 1978 में जाकर प्रदर्शित हुई। निर्माता-निर्देश के तौर पर ये फिल्म उनकी आखिरी फिल्म थी। हालांकि, एक्टिंग बाकी के सालों में वो अन्य फिल्मों में करते रहे थे। फिर 10 मार्च 1984 में मुंबई में उनका निधन हो गया।
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