इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि चीन एक बेहद ही चालबाज देश है। उसकी चालबाजियों से पूरा विश्व परेशान है। ये एक ऐसा देश है जो आए दिन किसी न किसी नए शिकार की तलाश में रहता है। ड्रैगन ने कई देशों को अपने चंगुल में फंसाकर उन्हें भारी संकट में डाला है। इसका एक उदाहरण हमें श्रीलंका के तौर पर देखने को मिलता है। वहीं ड्रैगन की बुरी नजरें भारत के पड़ोसी नेपाल पर टिकी हुई है। ऐसे में यहां भारत की भूमिका काफी अहम हो जाती है।
चीन का बढ़ता प्रभाव
नेपाल में नई सरकार के गठन के बाद चीन की गतिविधियां बढ़ रही हैं। नेपाल में कम्युनिस्ट प्रभाव वाली सरकार बनने के उपरांत 26 दिसंबर को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा था कि नेपाल के पारंपरिक मित्र और पड़ोसी के रूप में चीन-नेपाल के साथ अपने संबंधों को बहुत महत्व देता है। हम नई नेपाली सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं, ताकि मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ाया जा सके, उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट और सड़क सहयोग को आगे बढ़ाया जा सके। इसके अलावा विकास और समृद्धि के लिए स्थायी मैत्री की विशेषता वाली हमारी रणनीतिक सहयोगी साझेदारी को नई गति दी जा सके और हमारी दोनों जनता के लिए अधिक लाभ पहुंचाया जा सके।
इससे स्पष्ट है कि चीन “दोस्ती-दोस्ती” का ड्रामा कर नेपाल को चालाकी से अपनी ओर लाने के प्रयास कर रहा है। इससे समस्याएं भारत की बढ़ सकती है। क्योंकि नेपाल को चीन कई बार भारत के विरुद्ध उपयोग करता आया है। नेपाल में वर्ष 2022 के अंतिम हफ्ते में पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की सरकार बनने के बाद देश में चीन की गतिविधियों में वृद्धि देखने को मिली है। 26 दिसंबर 2022 को ‘प्रचंड’ के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के अगले ही दिन यानी 27 दिसंबर को काठमांडू-केरुंग रेलवे का विस्तृत अध्ययन करने के लिए एक चीनी विशेषज्ञ टीम नेपाल भी पहुंच गई थी। आपको बता दें कि केरुंग-काठमांडू रेलवे नेपाल में चीन के BRI के तहत नौ विकास परियोजनाओं में से एक है।
नेपाल में जब से सत्ता में परिवर्तन हुआ है तब से ही चीन अपनी चालबाजियों को हवा देने लगा है। कम्युनिस्ट सरकार बनने के तीन ही दिन बाद नेपाल में पोखरा एयरपोर्ट का उद्घाटन हुआ जिसे चीन की सहायता से ही तैयार किया गया था। उद्घाटन के कुछ दिनों के भीतर ही इस एयरपोर्ट पर दर्दनाक हादसा हो गया था। इस दौरान प्लेन में सवार सभी 72 लोगों की मृत्यु हो गई थी। विमान हादसे को लेकर प्रश्न उठे थे कि क्या जल्दबाजी में अधूरे पोखरा एयरपोर्ट का उद्धाटन किया गया था।
देखा जाए तो इसके अतिरिक्त भी चीन, नेपाल में अपने कई और प्रोजक्ट पर तेजी से काम कर रहा है। चीन का नेपाल में बढ़ता दबदबा किसी बड़ी चिंता से कम नहीं है। चीन का नेपाल पर प्रभाव भी स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है। नेपाल के पीएम प्रचंड की सरकार आने के बाद ओली के नक्शे कदम पर चलते हुए एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (CMP) जारी किया था, जिसमें उन्होंने भारतीय क्षेत्रों लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख इलाकों को वापस लेने का प्रण लिया गया था।
भारत निकाल पाएगा इसकी काट?
हालांकि चीन की इन चालाबाजियों की काट निकालते हुए भारत भी उसे बड़ा झटका देने की तैयारी में है। क्योंकि काठमांडू तक सबसे पहले भारतीय ट्रेन दौड़ने वाली है। भारत की रक्सौल-काठमांडू रेललाइन के लिए फाइनल लोकेशन सर्वे की प्रक्रिया तेज हो गई है। कुछ रिपोर्टस की मानें तो जब से नेपाल ने भारत ने रेल योजना को तेज किया है तब से चीन बौखलाया हुआ है। चीन कतई नहीं चाहता कि नेपाल में उसका प्रभाव समाप्त हो जाये और भारत भी नहीं चाहता कि पड़ोसी देश उससे हाथों से निकल जाए और चीन उस पर अपना दबदबा स्थापित कर लें। ऐसे में नेपाल, चीन और भारत के लिए जंग का मैदान बनता जा रहा है।
भारत और नेपाल के बीच पुराने संबंध हैं। भारत नेपाल को आवश्यक वस्तुओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है और बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक भारत में आजीविका कमाने के लिए यहां आते हैं। भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी भारत सबसे पहले प्रतिक्रिया करने वाला देश रहा है। भारत हमेशा से नेपाल को हर संभव सहायता सुनिश्चित करता रहा है। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने नेपाल को 10 लाख कोविड-19 टीके दान किए हैं।
ऐसे में नेपाल जितनी जल्दी ड्रैगन की चाल को समझ जाए उसके लिए उतना ही बेहतर होगा। श्रीलंका उसके लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे चीन ने अपने मक्कड़जाल में फंसाकर कहीं का नहीं छोड़ा। तब भी भारत ही वो देश था, जो अपने पड़ोसी श्रीलंका की सहायता के लिए आगे आया था।
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विशेष ध्यान देने की आवश्यकता
नेपाल सीमा पर चीन अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहा है। नेपाल के अंदर भारत के सीमावर्ती इलाकों में बौद्ध धर्म का प्रचार, रेडियो के माध्यम से एजेंडा सेट करना, चीनी भाषा का प्रशिक्षण आदि अलग-अलग गतिविधियों से चीन अपनी पैठ बनाने की मुहिम में जुटा है। कई जगहों पर चीन के द्वारा नेपाल की जमीन हड़पने की भी बात सामने आई है। इस तरह की भी जानकारी सामने आई है कि नेपाल के जिलों में चीन द्वारा अपना वर्चस्व बढ़ाकर भारत विरोधी गतिविधियों की जमीन तैयार करने में लगा है। चीन नेपाल के शैक्षणिक संस्थानों, मीडिया, सोशल सेक्टर के साथ-साथ पर्यटन के क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने में लगा है। भारत और चीन की सेनाओं के बीच लंबे समय से सीमा पर तनातनी बनी हुई है और वो कभी भी नेपाल की सहायता कर भारत के विरुद्ध नापाक मंसूबों को अंजाम दे सकता है। चीन-नेपाल के बढ़ते संबंध भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए ख़तरनाक साबित हो सकते हैं। इससे ड्रग्स, अवैध हथियारों की आवाजाही बढ़ने के ख़तरे हैं। चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण भारत नेपाल में अपनी पैठ खो सकता है, साथ ही चीन अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम में अपनी सक्रियता बढ़ा सकता है।
भारत-नेपाल के संबंध न केवल सांस्कृतिक रूप से मज़बूत हैं बल्कि भौगोलिक कारण भी इन संबंधों को मज़बूती प्रदान करते हैं। लेकिन फिर भी इस बात पर भारत को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि कहीं नेपाल किसी अन्य देश के साथ मिलकर हमारे लिए परेशानी का सबब न बन जाए। इसलिये तत्काल कूटनीतिक स्तर पर प्रभावशाली निर्णय लेने की आवश्यकता है। भारत के दो पड़ोसी देश, श्रीलंका और पाकिस्तान चीन के इस जाल के भुगतभोगी हैं। ऐसे में इससे पहले कि ड्रैगन नेपाल को अपना शिकार बनाए और उसका उपयोग अन्य को परेशान करने के लिए उससे पहले भारत को आगे आकर नेपाल में चीन को चुनौती देना आवश्यक है।
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