Shehzada Movie Flop? कार्तिक आर्यन को अपने स्टारडम को हल्के में लेना बंद कर देना चाहिए

'शहजादा' के बुरी तरह से फ्लॉप होने के बाद कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं!

Shehzada Movie Flop

Source: Indian Express

Shehzada Movie Flop? : पिछले वर्ष की भांति यह वर्ष भी बॉलीवुड के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं है। एक के बाद एक फिल्में धड़ाधड़ फ्लॉप हो रही हैं। अक्षय कुमार ने “सेल्फ़ी” के साथ अपनी फ्लॉप फिल्मों की सूची में एक और नाम जोड़ लिया है तो वहीं आश्चर्यजनक रूप से पिछले वर्ष बॉलीवुड का सम्मान बचाने वाले कार्तिक आर्यन भी इस बार फुस्स हो गए। परंतु कार्तिक आर्यन जिन कारणों से असफल (Shehzada Movie Flop?) हुए हैं, वो उनके लिए शुभ संकेत नहीं देते।

इस लेख में  पढ़िए कि कैसे यदि कार्तिक आर्यन नहीं संभले तो उन्हें आयुष्मान खुराना बनने में अधिक वक्त नहीं लगेगा।

Shehzada Movie Flop?  कार्तिक आर्यन का स्क्रिप्ट का चुनाव

बॉलीवुड के विश्लेषक एवं कुछ अति उत्साही प्रशंसक चाहे जो भी कहे परंतु पिछला वर्ष बॉलीवुड के लिए बहुत ही कष्टकारी था। कुछ एक फिल्मों को छोड़ दें तो बॉलीवुड गुणवत्ता में भी फिसड्डी सिद्ध हुआ। अधिकतम कलाकारों का ध्यान इस बात पर कम था कि अपनी फिल्म को कैसे और बेहतर बनाएँ और इस बात पर अधिक था कि “बॉयकॉट गैंग” को कैसे गलत सिद्ध करें।

पिछले वर्ष केवल दो ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी फिल्मों से न केवल दर्शकों को रिझाया अपितु बॉक्स ऑफिस पर बॉलीवुड की इज्जत भी बचाई। एक थे अजय देवगन, जिन्होंने “दृश्यम 2” से सिद्ध किया कि उन्हे कमतर आंकना किसी भी बॉलीवुड हस्ती के लिए बहुत हानिकारक होगा और दूसरे थे कार्तिक आर्यन, जिन्होंने पहले “भूल भुलैया 2” से एक शुद्ध ब्लॉकबस्टर का सूखा खत्म किया और फिर “फ्रेडी” के साथ अपने अभिनय के कौशल को भी दिखाया।

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परंतु कार्तिक आर्यन के साथ एक समस्या दिखाई दे रही है- वे अपने करियर, विशेषकर अपनी स्क्रिप्ट्स को लेकर निरंतरता नहीं रखते। “शहज़ादा” इसी कारण से फ्लॉप हुई, इसलिए नहीं कि वह अल्लु अर्जुन के “आला वैकुंठपुरमलू” का हिन्दी संस्करण था। बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया कि जो टपोरीपना, जो बेफिक्री अल्लु अर्जुन के किरदार में थी, वो “शहज़ादा” में कहीं नहीं थी।

फिल्म को पारिवारिक और संवेदनशील बनाने के चक्कर में फिल्म के रचयिता और कार्तिक आर्यन ऐसा बुरा फंसे कि वे न घर के रहे और न ही घाट के। कुछ लोगों ने कार्तिक आर्यन के व्यवहार पर उनकी आलोचना की, तो कुछ अल्लु अर्जुन के प्रशंसक होने के नाते ये दावा करने लगे कि अल्लु जैसा क्लास कार्तिक में कहां?

परंतु आखिर क्या कारण है, जो कार्तिक आर्यन अच्छी खासी छवि एवं स्टारडम का सुख उठाते हुए भी यह भूल कर बैठे? इसका मूल कारण है कार्तिक द्वारा सही स्क्रिप्ट का चुनाव ना करना। यदि आपको लगता है कि कार्तिक ने यह पहली बार किया है, तो आप गलत हैं। कार्तिक आर्यन अपने स्क्रिप्ट के चुनाव को लेकर कन्सिस्टेन्ट नहीं हैं।

कार्तिक आर्यन का फिल्म करियर

विश्वास नहीं होता तो आप कार्तिक आर्यन के 2015 के बाद के करियर को देखिए। जब “प्यार का पंचनामा 2” प्रदर्शित हुई, तो उसकी अपार सफलता के बाद सभी को लगने लगा कि अब कोई ऐसा स्टार है, जो खानों को एवं रणबीर कपूर, रणवीर सिंह जैसे ‘स्टार्स’ को टक्कर दे सकता है।

इसी समय 2016 में कार्तिक ने एक शॉर्ट फिल्म भी की “सिल्वट”, जिसमें इन्होंने एक दर्ज़ी अनवर का किरदार निभाया। अपने छवि के ठीक विपरीत एक ऐसा ऑफबीट रोल कर कार्तिक कहीं न कहीं ये दिखाना चाहते थे कि वे टाइपकास्ट नहीं होना चाहते। परंतु अगले ही वर्ष 2017 में कार्तिक ने “गेस्ट इन लंदन” की, जिसका न कोई सर था, न पैर, और “अतिथि तुम कब जाओगे” के ठीक विपरीत ये फिल्म अपना बजट भी रिकवर नहीं कर पाई।

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फिर कार्तिक ने अपना ध्यान रोमांटिक कॉमेडी की ओर घुमाया और एक के बाद एक सफल फिल्मों की हैट्रिक लगा दी। अपने चहेते निर्देशक लव रंजन के साथ “सोनू के टीटू की स्वीटी”, फिर “लुका छुपी” और फिर “पति पत्नी और वो” का रीमेक आया, जिनमें से एक भी फिल्म “सुपर हिट” से नीचे नहीं गई।

परंतु फिर कार्तिक ने वो स्क्रिप्ट चुनी, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। हम बात कर रहे हैं “लव आज कल 2.0” की, जो 2020 में प्रदर्शित हुई थी, और जिसके प्रणेता थे इम्तियाज़ अली। न तो ये समझ में आ रहा था कि इस फिल्म का लॉजिक क्या है और न ही इस फिल्म में कार्तिक आर्यन की उपस्थिति, और आज भी ये फिल्म सुभाष घई की “कांची” के बाद की उनकी सबसे खराब चॉइस में से एक है।

अब कार्तिक की आने वाली फिल्म “सत्यप्रेम की कथा” कैसी होंगी, ये तो फिल्म के कॉन्टेन्ट पर निर्भर करेगा, परंतु एक बात तो स्पष्ट है : कार्तिक अपने विकल्पों को लेकर अब भी स्पष्ट और दृढ़ नहीं है।

यदि वे चाहते हैं कि उनका स्टारडम कम न हो, तो उन्हे ऐसी स्क्रिप्ट चुननी होंगे, जो उनकी छवि और उनके स्वभाव के अनुरूप भी होऔर उन्हे प्रयोग करने की छूट भी दे। अन्यथा इनका भी हाल आयुष्मान खुराना जैसा हो जाएगा, जो स्क्रिप्ट और विचारों के चक्कर में न घर के रहे, और न ही घाट के।

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