Laghu Katha : लघु कथा हिंदी में एवं आरती

Laghu Katha

Laghu Katha : लघु कथा हिंदी में एवं आरती

स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Laghu Katha  साथ ही इससे जुड़े आरती के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें

मां काली के जन्म की कथा –

सभी देवी-देवताओं के जन्म की कई कहानियां प्रचलित हैं और बिलकुल इसी तरह मां काली के जन्म से जुड़ी कई कथाएं सुनाई जाती हैं। उन सभी कथाओं में से एक कहानी है, जो सबसे ज्यादा प्रचलित है।बात उन दिनों की है, जब एक शक्तिशाली राक्षस, दारुण का अत्याचार तीनों लोकों में बढ़ गया था। तीनों लोकों में सभी इससे बहुत परेशान थे। सारे देवता दारुण के हाथों मात खा चुके थे।दारुण को वरदान मिला था कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथों ही हो सकती है। इस कारण सभी देवता हाथ जोड़कर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे कि वे इसका कोई समाधान निकालें। इसके बाद ब्रह्मा जी ने एक स्त्री का रूप लिया और दारुण से युद्ध करने चले गए, लेकिन वो भी इस असुर को हरा नहीं पाए।अंत में सभी देवता, ब्रह्मा जी के साथ भगवान शिव के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे कुछ करें। सभी की प्रार्थना सुनने के बाद, शिव जी ने मुस्कुराते हुए माता पार्वती की तरफ देखा।

उनका इशारा समझते हुए माता पार्वती ने अपनी शक्ति का एक अंश निकाला। वह एक चमकता हुआ तेज था, जो देखते ही देखते भगवान शिव के नीलकंठ से होते हुए उनके शरीर में प्रवेश कर गया। इसके बाद भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली और तीनों लोक थर-थर कांपने लगे। भगवान शिव की तीसरी आंख खुलने के बाद वह शक्ति उनकी उस आंख से बाहर निकली, जिसे देखकर वहां खड़े सारे देवता घबरा गए।

उस शक्ति ने एक विशाल और रौद्र स्त्री रूप ले लिया था। उनका रंग रात-सा काला गहरा और जुबान खून जैसी लाल थी। चेहरे पर आग-सा तेज था और माथे पर तीसरी आंख थी। इस तरह राक्षसों को खत्म करने के लिए हुआ मां काली का जन्म।इसके बाद उन्होंने कुछ ही देर में असुर दारुण और उसकी सेना का नाश कर दिया। उन सभी दानवों को खत्म करने के बाद भी मां काली का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। इसके बाद उनका गुस्सा शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक बच्चे का रूप लिया और उनके सामने आ गए।भगवान शिव को देखते ही मां काली का गुस्सा शांत हो गया और उन्होंने उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया।

लघु-कथाएँ – चंद्रधर शर्मा गुलेरी

जन्मांतर कथा –

एक कहिल नामक कबाड़ी था, जो काठ की कावड़ कंधे पर लिए-लिए फिरता था। उसकी सिंहला नामक स्त्री थी। उसने पति से कहा कि देवाधिदेव-युगादिदेव की पूजा करो, जिनसे जन्मांतर में दारिद्रय-दुख न पावें। पति ने कहा– तू धर्म-गहली (पगली) हुई है, पर सेवक मैं क्या कर सकता हूँ? तब स्त्री ने नदी-जल और फूल से पूजा की। उसी दिन वह विषूचिका (हैजा) से मर गई और जन्मांतर में राजकन्या और राजपत्नी हुई। अपने नए पति के साथ उसी दिन मंदिर में आई तो उसी पूर्व पति दरिद्र कबाड़िए को वहाँ देखकर मूर्च्छित हो गई। उसी समय जातिस्मर (जिसे अपने पूर्व जन्म का हाल याद हो)होकर उसने एक दोहे में कहा– जंगल की पत्ती और नदी का जल सुलभ था तो भी तू नहीं लाया। हाय! तेरे तन पर कपड़ा भी नहीं है और मैं रानी हो गई।कबाड़ी ने स्वीकार करके जन्मांतर कथा की पुष्टि की।

न्याय घंटा –

दिल्ली में अनंगपाल नामी एक बड़ा राय था। उसके महल के द्वार पर पत्थर के दो सिंह थे। इन सिंहों के पास उसने एक घंटी लगवाई कि जो न्याय चाहें उसे बजा दें, जिस पर राय उसे बुलाता, पुकार सुनता और न्याय करता। एक दिन एक कौआ आकर घंटी पर बैठा और घंटी बजाने लगा। राय ने पूछा– इसकी क्या पुकार है?यह बात अनजानी नहीं है कि कौए सिंह के दाँतों में से माँस निकाल लिया करते हैं। पत्थर के सिंह शिकार नहीं करते तो कौए को अपनी नित्य जीविका कहाँ से मिले?राय को निश्चय हुआ किकौए की भूख की पुकार सच्ची है क्योंकि वह पत्थर के सिंहों के पास आन बैठा था। राय ने आज्ञा दी कि कई भेड़े-बकरे मारे जाएँ, जिससे कौए को दिन का भोजन मिल जाए।

न्याय रथ

चौड़ (चैड़, चोल या गौड़) देश में गोवर्धन नामक राजा के यहाँ सभामंडप के सामने लोहे के स्तम्भ पर न्याय घंटा था, जिसे न्याय चाहने वाला बजा दिया करता। एक समय उसके एकमात्र पुत्र ने रथ पर चढ़कर जाते समय जान-बूझकर एक बछड़े को कुचल दिया। बछड़े की माता (गौ) ने सींग अड़ाकर घंटा बजा दिया। राजा ने सब हाल पूछकर अपने न्याय को कोटि पर पहुँचाना चाहा। दूसरे दिन सवेरे स्वयं रथ पर बैठ राह में अपने प्यारे इकलौते पुत्र को बैठाकर उस पर रथ चलाया और गौ को दिखा दिया।राजा के सत्व और कुमार के भाग्य से कुमार मरा नहीं।

पाठशाला – पाठशाला का वार्षिकोत्सव था। मैं भी वहाँ बुलाया गया था। वहाँ के प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र, जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दिखाया जा रहा था। उसका मुँह पीला था, आँखें सफ़ेद थीं, दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी। प्रश्न पूछे जा रहे थे। उनका वह उत्तर दे रहा था। धर्म के दस लक्षण सुना गया, नौ रसों के उदाहरण दे गया। पानी के चार डिग्री के नीचे शीतलता में फैल जाने के कारण और उससे मछलियों की प्राण–रक्षा को समझा गया, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान दे गया, अभाव को पदार्थ मानने, न मानने का शास्त्रार्थ कर गया और इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और पेशवाओं का कुर्सीनामा सुना गया।

यह पूछा गया कि तू क्या करेगा? बालक ने सिखा–सिखाया उत्तर दिया कि मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा। सभा ‘वाह वाह’ करती सुन रही थी, पिता का हृदय उल्लास से भर रहा था।एक वृद्ध महाशय ने उसके सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया और कहा कि जो तू ईनाम मांगे, वही दें। बालक कुछ सोचने लगा। पिता और अध्यापक इस चिंता में लगे कि देखें, यह पढ़ाई का पुतला कौन–सी पुस्तक मांगता है।बालक के मुख पर विलक्षण रंगों का परिवर्तन हो रहा था, हृदय में कृत्रिम और स्वाभाविक भावों की लड़ाई की झलक आँखों में दीख रही थी। कुछ खाँसकर, गला साफ कर नकली परदे के हट जाने से स्वयं विस्मित होकर बालक ने धीरे से कहा, ‘‘लड्डू।’’पिता और अध्यापक निराश हो गए। इतने समय तक मेरा वास घुट रहा था। अब मैंने सुख की सांस भरी। उन सबने बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटने में कुछ उठा नहीं रखा था, पर बालक बच गया। उसके बचने की आशा है, क्योंकि वह ‘लड्डू’ की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे काठ की आलमारी की सिर दुखानेवाली खड़खड़ाहट नहीं।

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भूगोल – Laghu Katha in hindi 

एक शिक्षक को अपने इंस्पेक्टर के दौरे का भय हुआ और वह क्लास को भूगोल रटाने लगा। कहने लगा कि पृथ्वी गोल है । यदि इंस्पेक्टर पूछे कि पृथ्वी का आकार कैसा है और तुम्हें याद न हो तो मैं सुंघनी की डिबिया दिखाऊंगा, उसे देखकर उत्तर देना। गुरु जी की डिबिया गोल थी ।इंस्पेक्टर ने आकर वही प्रश्न एक विद्यार्थी से किया और उसने बड़ी उत्कंठा से की ओर देखा । गुरु ने जेब में से चौकोर डिबिया निकाली । भूल से दूसरी डिबिया आई थी । लड़का बोला, “बुधवार को पृथ्वी चौकौर होती है और बाकी सब दिन गोल ।”

विद्या से दुख – Laghu Katha in hindi

एक बहू पशु-पक्षियों की भाषा जानती थी। आधी रात को श्रृगाल को यह कहता सुनकर कि नदी का मुर्दा मुझे दे दे और उसके गहने ले ले, नदी पर वैसा करने गई। लौटती बार श्वसुर ने देख लिया। जाना कि यह अ-सती है। वह उसे पीहर पँहुचाने ले चला। मार्ग में करीर के पेड़ के पास से कौआ कहने लगा कि इस पेड़ के नीचे दस लाख की निधि है, निकाल ले और मुझे दही-सत्तू खिला। अपनी विद्या से दुख पाई वह कहती है– मैंने जो एक दुर्नय (अविनय, कुनीति) किया, उससे घर से निकाली जा रही हूँ। अब यदि दूसरा करूंगी तो कभी भी अपने प्रिय से नहीं मिल सकूंगी अर्थात मार दी जाऊंगी।

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