आँखों देखी: संजय मिश्रा की वो मास्टरपीस जिससे आज भी कई अनभिज्ञ हैं

इस फिल्म को एक बार क्यों अवश्य देखना चाहिए?

One of the most underrated masterpieces of Sanjay Mishra: Ankhon Dekhi

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Ankhon Dekhi Movie Review: फिल्म इंडस्ट्री में संजय मिश्रा को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है, अपने बेजोड़ अभिनय से उन्होंने सिनेमा प्रेमियों के दिलों में एक अलग स्थान बनाया है। विश्व कप 1999 में एप्पल सिंह के रूप में मनोरंजन करना हों या फिर “तान्हाजी” में सूत्रधार के रूप में भारत के वास्तविक इतिहास का बेजोड़ वर्णन करना हो, संजय मिश्रा का कोई जवाब नहीं। हाल ही में आई वध फिल्म में उन्होंने अपने अभिनय से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया, परंतु क्या आपको पता है कि एक ऐसी ही फिल्म 9 वर्ष पूर्व आई थी, जिसमें इन्होंने सबको आश्चर्यचकित कर दिया था।

इस लेख में संजय मिश्रा के उस उत्कृष्ट परफॉर्मेंस के बारे में पढ़िए, जिससे कई सिनेमा प्रेमी अभी भी अनभिज्ञ हैं।

एक मास्टरपीस को परिभाषित करना कठिन है। कुछ के लिए “कान्तारा”, “कौन प्रवीण ताम्बे” जैसी फिल्में मास्टरपीस हैं, जो काफी हद तक उचित भी है, तो कुछ लोगों के लिए “ब्रह्मास्त्र” या “पठान” जैसी फिल्में भी मास्टरपीस हैं।

Ankhon Dekhi Movie Review and Story

परंतु “आँखों देखी” केवल सिनेमाई दृष्टिकोण से ही नहीं रचनात्मकता के दृष्टिकोण से भी एक अनोखी, सोचने पर विवश कर देने वाली फिल्म (Ankhon Dekhi) है। इसे निर्देशित किया था रजत कपूर ने और इसमें मुख्य भूमिका थी संजय मिश्रा की।

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ये कहानी है राजेश उर्फ बाऊजी (संजय मिश्रा) की, जो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति है। बाऊजी और उसका भाई ऋषि (रजत कपूर) पुरानी दिल्ली में एक छोटे से घर में रहते हैं। बाऊजी का संयुक्त परिवार है, जिसमें उनकी पत्नी हैं पुष्पा (सीमा पाहवा), उनकी बेटी रीटा (माया साराओ) और एक बेटा शम्मी (चंद्रचूड़ राय), ऋषि की पत्नी लता (तरनजीत कौर) और एक बेटा अशोक (चैतन्य महावर) हैं।

रीटा अज्जू (नमित दास) नामक एक लड़के से प्यार करती है पर रीटा का परिवार इसके बिल्कुल विरुद्ध है, क्योंकि लोग अज्जू के बारे में अच्छे विचार नहीं रखते हैं। परिवार के बड़े, रीटा को अज्जू से मिलने के लिए मना करते हैं और उससे दूर रहने के लिए कहते हैं और एक दिन उसे पीटने भी चल पड़ते हैं।

परंतु जब अज्जु का स्वभाव बाउजी के विचारों के ठीक विपरीत निकलता है, तो उसका उन पर क्या असर पड़ता है और कैसे वे अपने दृष्टिकोण में क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हैं, “आँखों देखी” इसी के बारे में है।

संजय मिश्रा कितने सुयोग्य और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, इसके बारे में अनेकों लोग परिचित हैं, परंतु “आँखों देखी” से पता चलता है कि उनका अभिनय एक अलग ही स्तर का है, जिसका मुकाबला करना सबके बस की बात नहीं। यूं ही नहीं Ankhon Dekhi फिल्म के लिए उन्हे फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता [क्रिटिक्स] के पुरस्कार समेत अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

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जिस प्रकार से बाउजी के किरदार को उन्होंने आत्मसात किया है और उसके पीछे जिस प्रकार से जीवन के कुछ गूढ रहस्य समझाने का प्रयास किया है, वह भी बहुत प्रशंसनीय है। Ankhon Dekhi फिल्म के कलेक्शन पर मत जाइए, क्योंकि कभी कभी कुछ क्लासिक कब आती है, और कब निकल जाती है, पता नहीं चलता।

इसके अतिरिक्त Ankhon Dekhi फिल्म के सूत्रधार, यानी इसके निर्देशक रजत कपूर की भी जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम है। इस फिल्म को देखने से समझ आता है कि अभिनेता रजत कपूर और निर्देशक रजत कपूर में कोई विशेष अंतर नहीं है; दोनों अपनी अपनी जगह कला एवं रचनात्मकता को सर्वोपरि मानते हैं।

इनकी फिल्में सबको समझ में आएं या ना आएं, वो एक अलग बात है, परंतु इसमें कोई दो राय नहीं है कि “आँखों देखी” के रूप में एक उत्कृष्ट कथा परोसी है। इसी कथा के पीछे रजत कपूर को फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ कथा [क्रिटिक्स] एवं सर्वश्रेष्ठ कथा के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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परंतु Ankhon Dekhi फिल्म के स्टार फैक्टर संजय मिश्रा ही थे, जिन्होंने इस फिल्म के माध्यम से सिद्ध किया कि फिल्म कोई भी हो, वे अपने अभिनय से यदि उसे ब्लॉकबस्टर नहीं बना पाए तो कम से कम देखने योग्य तो बना ही देंगे।

“आँखों देखी” के साथ केवल एक समस्या थी कि उसे ढंग से मार्केट नहीं किया गया। अब Ankhon Dekhi फिल्म को तनिक बेहतर मार्केटिंग के साथ वर्तमान समय में प्रदर्शित किया गया हो, तो अपने मूल बजट पौने पाँच करोड़ की तुलना में यदि 10 गुना नहीं तो कम से कम 5 गुना तो अवश्य कमा लेती। परंतु इस बात से कोई मना नहीं कर सकता कि “आँखों देखी” वो फिल्म है, जिससे आप सहमत हो या नहीं, परंतु अनदेखा बिल्कुल नहीं कर सकते।

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