भारत की नई औद्योगिक क्रांति के स्वप्न में बाधा बन रही है कमजोर बौद्धिक संपदा व्यवस्था

समझिए कैसे?

Poor Intellectual Property regime is hurting India's Industrial revolution 4. O dreams

Source: The Hindu Business Line

यदि मैं कहूं कि आपकी बुद्धि से भी संपत्ति उत्पन्न होती है, तो तुरंत ही आपके मस्तिष्क में विचार आएगा कि यह कौन-सी संपत्ति है जो बुद्धि से उत्पन्न होती है? जिस प्रकार मनुष्य अपने शारीरिक परिश्रम से भौतिक संपदा का निर्माण करता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य अपने मस्तिष्क का प्रयोग करके एक विशेष संपदा का निर्माण करता है इसे बौद्धिक संपदा कहते हैं, जिसे अंग्रेजी में Intellectual property कहा जाता है।

इस लेख में पढ़िए कि क्यों भारत को अपनी बौद्धिक संपदा व्यवस्था में संशोधन की आवश्यकता है?

मनुष्य अपने मस्तिष्क से कई प्रकार के आविष्कार और नई रचनाओं को जन्म देता है, उसे बौद्धिक संपदा कहा जाता है। यदि आपने किसी पुस्तक को लिखा है तो वो आपकी बौद्धिक संपदा कही जाएगी। यह कोई आविष्कार हो सकता है या कोई भी कलात्मक कार्य हो सकता है। प्रत्येक राष्ट्र को एक कुशल बौद्धिक संपदा व्यवस्था की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में भारत की प्रशंसा

अब आप विचार कर रहे होंगे कि हम आज बौद्धिक संपदा की बात क्यों कर रहे हैं? तो आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक के मामले में भारत दुनिया की 55 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से 42वें स्थान पर है। अमेरिकी उद्योग मंडल ‘यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स’ के ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर ने वार्षिक रिपोर्ट जारी की है।

रिपोर्ट में भारत की बौद्धिक संपदा-आधारित नवाचार गतिविधियों की प्रशंसा की गई है। इस रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक को आधार बनाते हुए प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति को दर्शाया गया है। रिपोर्ट भारत के लिए प्रशंसनात्मक भी है और आलोचनात्मक भी। भारत के लिए सकारात्मक बिंदुओं की बात करें तो अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ, उदार अनुसंधान और विकास और आईपी आधारित कर प्रोत्साहन और उद्योगों की व्यापक जागरूकता शामिल है।

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ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पैट्रिक किल्ब्राइड ने कहा है कि भारत ने प्रतिलिप्याधिकार का उल्लंघन करने वाली सामग्री के विरुद्ध कानून प्रवर्तन को कठोर करने के साथ ही आईपी परिसंपत्तियों की बेहतर समझ एवं उपयोग को भी बढ़ावा देने वाला ढांचा खड़ा किया है।

हालांकि इस ढांचे में उपस्थित कमियों को दूर करना भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए एक नया प्रतिमान बनाने में महत्वपूर्ण होगा। इस रिपोर्ट में भारतीय न्यायपालिका पर बढ़ते मामलों के बोझ को चिंता का मुद्दा बताते हुए कहा गया है कि इससे बौद्धिक संपदा अधिकारों को क्रियान्वित करने की क्षमता प्रभावित होती है।

1856 में आया प्रथम पेटेंट कानून

आइए, भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के मुद्दों और चुनौतियों पर एक दृष्टि डालें। लंबे समय तक, भारत में आईपीआर सुरक्षा का स्तर बहुत बुरा रहा है। अनुवर्तन, साहित्यिक चोरी और अन्य आईपीआर अवमानना बड़े पैमाने पर थे, जिससे आईपीआर अधिपति को भारी क्षति हुई है। भारत का राजनीतिक, सामाजिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए आईपीआर का संरक्षण महत्वपूर्ण है।

भारत में प्रथम पेटेंट कानून 1856 में प्रस्तुत किया गया था। जिसके बाद 1970 का भारतीय पेटेंट अधिनियम आया। पेटेंट एक ऐसा कानूनी अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष उत्पाद, अविष्कार, रचना, प्रक्रिया या सेवा के ऊपर एकाधिकार देता है। पेटेंट प्राप्त करने वाले व्यक्ति के अलावा यदि कोई और व्यक्ति या संस्था इनका उपयोग करती है तो इसे कानूनन अपराध माना जाता है।

आईपीआर सुरक्षा की ओर प्रथम बड़ा निर्णय 1995 में लिया गया, जब भारत विश्व व्यापार संगठन में सम्मलित हुआ। भारत आईपीआर की कमियों की बात की जाए तो भारत में आईपीआर का प्रभाव सीमित है और वर्तमान में चुनौतियों का सामना कर रहा है। अधिकारों और अदालती मामलों के बुरे प्रवर्तन के कारण उल्लंघन व्याप्त हैं। विशेष रूप से औषध उद्योग और कृषि जैसे क्षेत्रों में बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए एक पीड़ादायक बिंदु है।

उदाहरण के लिए- चीन, रूस, इंडोनेशिया, सऊदी अरब और वेनेजुएला जैसे देशों के साथ-साथ अमेरिकी कंपनियों के अधिकारों की बुरी सुरक्षा के लिए भारत, संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ में है।

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विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में आईपीआर व्यवस्था को शक्तिशाली करने से विदेशी मुद्रा प्रवाह को प्रोत्साहन मिलेगा, जो आर्थिक विकास को बढ़ाने और देश में उत्पादकता तथा जीविका के अवसर उत्पन्न करने में सहायक होगा।

आंकड़े क्या कहते हैं?

 

भारत में अनुसन्धान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी बहुत ही कम है और इसका प्रमुख कारण भारत की अशक्त बौद्धिक सम्पदा अधिकार व्यवस्था है। वर्ष 2005 में जब भारतीय पेटेंट अधिनियम में विश्व व्यापार संगठन की उम्मीदों के अनुरूप संशोधन किये गए तो पेटेंट, डिज़ाइन, ट्रेडमार्क्स और भौगोलिक संकेतक महानियंत्रक के समक्ष पेटेंट के लिये 56,000 से भी अधिक आवेदन पड़े हुए थे।

ठीक इसके 10 वर्ष बाद यानी वर्ष 2015 में पेटेंट के लिये 2,50,000 आवेदन और ट्रेडमार्क के लिये 5,00,000 आवेदन लंबित थे। वहीं 2016-17 में 45,444 पेटेंट आवेदन प्रविष्ट किए गए थे, जिसकी संख्या 2021-22 में 66,440 हो गई। वहीं इस अवधि में भारत में पेटेंट देने का आंकड़ा 9,847 से बढ़कर 30,074 हो गया। लेकिन इसके फलस्वरुप भी चीन और अमेरिका से भारत बहुत पीछे है।

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2020 में भारत में 56,771 पेटेंट प्रविष्ट किए गए। यह चीन में प्रविष्ट 14.97 लाख पेटेंट आवेदनों का मात्र चार प्रतिशत है। वहीं, अमेरिका में प्रविष्ट 5.97 लाख आवेदनों की तुलना में यह मात्र 9.5 प्रतिशत है। इस दौरान भारत में 26,361 पेटेंट को स्वीकृति दी गई। वहीं चीन में 5.3 लाख और अमेरिका में 3.5 लाख पेटेंट को स्वीकृति मिली। इन आँकड़ों पर जैसे ही हमारी दृष्टि जाती है, प्रथम दृष्टया यही प्रतीत होता है कि भारत की बौद्धिक सम्पदा अधिकार व्यवस्था व्याधित अवस्था में है।

ऐसे में भारत को चाहिये कि वह ‘पेटेंट, डिजाइन, ट्रेडमार्क्स को चुस्त एवं दुरुस्त बनाए। बड़ी संख्या में आवेदनों का लंबित होना यह दर्शाता है कि पेटेंट अधिकार प्रदान करने की हमारी व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिये और एक निश्चित समय के भीतर आवेदनों की सुनवाई अनिवार्य कर देनी चाहिए।

सरकार ने पेटेंट व्यस्था में बदलाव किए हैं। विभिन्न टेक्नोलॉजिकल क्षेत्रों में पेटेंट की जांच के समय में कमी आई है। ऐसे इस व्यवस्था में और संशोधन करने की आवश्यकता है।

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