फिल्म उद्योग हो या राजनीति, न समृद्धि कभी स्थाई होती है, न ही करियर। परंतु कुछ ऐसे भी नाम होते हैं, जो जितने भी समय के लिए आए, उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी और जब वे गए तो अपने पीछे कई प्रश्न छोड़ गए। एस बलबीर भी ऐसे ही एक व्यक्ति हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे एस बलबीर के बारे में और कैसे उनका लापता होना आज भी एक रहस्य है।
“जॉली एलएलबी” देखी है? हां वही, सुभाष कपूर वाली जिसमें अरशद वारसी और बोमन ईरानी ने तहलका मचा दिया था? उसमें एक बड़ा ही चुटीला गीत था, “कि मैं झूठ बोलेया”, जो उस समय यानि 2013 में काफी वायरल हुआ था और जिसके चर्चे हर जगह होते थे। परंतु क्या आपको पता है कि ये पूर्णत्या मौलिक गीत नहीं है और यह एक लोकप्रिय लोकगीत से प्रेरित है?
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फिल्म उद्योग में आजमाया भाग्य
1956 में मित्रा बंधुओं द्वारा निर्देशित “जागते रहो” सिनेमाघरों में आई थी, जिसमें राज कपूर, प्रदीप कुमार जैसे अभिनेता प्रमुख भूमिकाओं में थे। ये फिल्म काफी चर्चा में रही और इसके गीत आज भी कई संगीत प्रेमी चाव से सुनते हैं। पर इनमें दो गीत ऐसे हैं जिन्होंने अलग ही प्रभाव डाला, “ऐवें दुनिया देवे दुहाई” एवं “कि मैं झूठ बोलेया”, जिसमें द्वितीय गीत पर वर्षों बाद “जॉली एलएलबी” के संगीत निर्माताओं ने एक अति लोकप्रिय गीत बनाया। अब इस गीत में जहां एक गायक थे अपने सदाबहार मोहम्मद रफी, तो वहीं उनका साथ दिया एक नवोदित गायक, एस बलबीर ने।
बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि एस बलबीर कौन थे, कहां से आए थे। इस बारे में भी बहुत कम जानकारी है कि वे जन्मे कहां थे, परंतु अपने आप को सिद्ध करने के लिए वे बॉम्बे की ओर निकल पड़े, जहां वे फिल्म उद्योग में अपना भाग्य आजमाने लगे। 50 के दशक में इन्हें सफलता मिली और वे हिन्दी फिल्मों में गाने लगे, जहां उन्होंने अपने गीतों में पंजाबी रस घोला।
कई चर्चित गीतों में दी अपनी आवाज
एस बलबीर का करियर बहुत लंबा या प्रभावशाली नहीं था, परंतु उन्होंने जो भी गीत गाए, उनमें अपनी अलग छाप छोड़ दी। जैसे “जागते रहो” के गीतों ने धमाल मचाया, वैसे ही अगले वर्ष 1957 में आई दिलीप कुमार की बहुचर्चित फिल्म “नया दौर”, जिसमें उनके एवं मोहम्मद रफी के द्वारा गाया गया “यह देश है वीर जवानों का” ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुआ। कई-कई अवसरों पर यह गीत निर्विरोध बजाया जाता है।
परंतु एस बलबीर केवल इतने तक सीमित नहीं रहे। अपने 15 वर्ष के करियर में उन्होंने 120 से अधिक गीत गाए। उदाहरण के लिए साधना (1958), बरसात की रात (1960), धर्मपुत्र (1961), जानवर (1965), आदमी और इंसान (1969), हीर रांझा (1970), मेरे हमसफर (1970) इत्यादि में इन्होंने अपने स्वर दिए।
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तो फिर ऐसा क्या हुआ कि जो व्यक्ति अपने सुरों से मोहम्मद रफी को टक्कर दे सकता था, जो व्यक्ति “कि मैं झूठ बोलेया” एवं “ये देश है वीर जवानों का” जैसे गीत दे सकता था, वो एकाएक लापता हो गए? इस पर न जाने क्यों द गॉडफादर का एक संवाद स्मरण हो आता है, जो कुछ इस प्रकार है, “पता है विश्वासघात की सबसे कष्टदायी बात? वह शत्रुओं से कभी नहीं मिलती!”, अर्थात व्यक्ति और किसी से हारे न हारे, अपनों के विश्वासघात से सदैव टूट जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ एस बलबीर के साथ। एक संगीतकार ओमी जी के अनुसार, 1970 के दशक के आसपास की बात थी कि एस बलबीर को अपने किसी रिश्तेदार की अन्त्येष्टि में सम्मिलित होना था। वे अपने गृह राज्य पंजाब गए और फिर कभी लौटे ही नहीं।
फिर अचानक लापता हो गए
जी हां, एस बलबीर अपने गांव गए और उसके बाद वहीं से लापता हो गए। परंतु ये क्यों हुआ, कैसे हुआ, इसके बारे में भी कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसी संगीतकार ओमी जी के अनुसार, जब एस बलबीर का पता लगाने के लिए कुछ लोग गए, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि स्थिति तो कुछ और ही थी। कहते हैं कि एस बलबीर का अपने गांव की ज़मीन को लेकर अपने भतीजों से झगड़ा हुआ, जो शायद उस क्षेत्र को हथियाना चाहते थे। स्वाभाविक तौर पर बलबीर महोदय इस बात से रुष्ट थे, शायद यह विवाद हिंसक हुआ और उनके ही भतीजों ने ही एस बलबीर को मारकर उन्हें ठिकाने लगा दिया।
अब ये कितना सत्य है कितना असत्य, ये तो एस बलबीर ही जानते होंगे, और उनके भतीजे, परंतु अब दोनों ही नहीं है और ये विडंबना है कि एक योग्य कलाकार किसी की निजी कुंठा की भेंट चढ़ गया।
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