कुछ लोगों पर एक कहावत बड़ी चरितार्थ होती है, “चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।” यशवंत सिन्हा, महुआ मोईत्रा जैसे राजनीतिज्ञ बालक प्रतीत होते हैं, जब बात आए उद्धव ठाकरे के सबसे प्रिय और पूर्व शिवसेना नेता संजय राउत की।
शिंदे गुट की हुई शिवसेना
यदि आपको लग रहा हो कि ऐसी भी क्या बात हुई, तो महोदय स्वयं प्रमाण देंगे। हाल ही में चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे के राजनीतिक अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हुए शिवसेना के मूल चिन्ह, धनुष और बाण को एकनाथ शिंदे वाले शिवसेना गुट यानि बालासाहेबयांची शिवसेना के हवाले कर दिया है।
बता दें कि एकनाथ शिंदे वर्षों के अन्याय से तंग आकर उद्धव के विरुद्ध विद्रोह कर बैठे और उन्होंने 39 विधायकों सहित असम के गुवाहाटी में डेरा जमा लिया था और तब तक नहीं हटे, जब तक उद्धव ठाकरे की सत्ता को महाराष्ट्र से अपदस्थ नहीं किया गया। तद्पश्चात एकनाथ शिंदे ने सत्ता की कमान संभाली और फिर देवेन्द्र फडणवीस के साथ उन्होंने महाराष्ट्र का प्रशासन आगे बढ़ाने का निर्णय लिया।
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तो इन सब से संजय राउत को क्या दिक्कत? असल में चुनाव आयोग ने शिवसेना का मूल प्रतीक चिन्ह उद्धव ठाकरे को न देकर एकनाथ शिंदे के गुट को दिया है। इसका अर्थ स्पष्ट है: अब उद्धव ठाकरे का शिवसेना से उतना ही नाता है, जितना कपिल सिब्बल का कांग्रेस से।
संजय राउत की हताशा
परंतु ये बात संजय राउत को स्वीकार्य न थी, और उन्होंने चुनाव चिन्ह के निर्णय के पीछे एकनाथ शिंदे द्वारा धांधली करने के आरोप लगाए, जिसमें महाशय ने चुनाव आयोग तक को लपेट दिया। संजय राउत के ट्वीट के अनुसार, “शिवसेना पार्टी के नाम और उसके धनुष और तीर के चिन्ह को खरीदने के लिए 2000 करोड़ रुपये की डील हुई है। 2,000 करोड़ रुपये एक प्रारंभिक आंकड़ा है, और यह 100 फीसदी सच था”।
#WATCH शिवसेना और उसका निशान (तीर-कमान) चिह्न छीना गया है और ऐसा करने के लिए इस मामले में अब तक 2,000 करोड़ रुपए की लेनदेन हुई है: उद्धव ठाकरे गुट के नेता व सांसद संजय राउत, मुंबई pic.twitter.com/6hyQHLjMZr
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 19, 2023
इसके अतिरिक्त उन्होंने पत्रकारों को यह भी बताया कि सत्तारूढ़ दल के करीबी एक बिल्डर ने उनके साथ यह जानकारी साझा की। राज्यसभा सदस्य ने कहा कि उनके दावे के समर्थन में सबूत हैं, जिसका खुलासा वह जल्द करेंगे। इससे पूर्व उद्धव ठाकरे ने भी रोना रोया कि चुनाव चिन्ह की “चोरी हुई है”, और इसके लिए वह सर्वोच्च न्यायालय तक जाने को तैयार है।
चुनाव आयोग ने शुक्रवार को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी और उसे ‘धनुष और तीर’ चुनाव चिह्न आवंटित करने का आदेश दिया। संगठन पर नियंत्रण के लिए लंबी लड़ाई पर 78 पन्नों के आदेश में, चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को राज्य में विधानसभा उपचुनावों के पूरा होने तक आवंटित धधकती मशाल चुनाव चिन्ह रखने की अनुमति दी।
राउत की सीख पर चले ठाकरे
राउत ने रविवार को कहा कि शिवसेना के नाम को ‘खरीदने’ के लिए 2,000 करोड़ रुपये कोई छोटी रकम नहीं है। इसी को कहते हैं, रस्सी जल गई, परंतु बल नहीं गया। अब भी उद्धव वही राग अलाप रहे हैं, जिसके पीछे पहले उनकी सत्ता, और फिर उनका सम्मान दोनों ही हाथ से चला गया। ये संजय राऊत ही थे, जिनके सुझाव पर उद्धव ठाकरे ने भाजपा से वर्षों पुराना नाता तोड़, कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करने का अतार्किक और हास्यास्पद निर्णय लिया।
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ये संजय राऊत ही थे, जिनके पीछे उद्धव ने मान, सम्मान, यहाँ तक कि बालासाहेब ठाकरे की विरासत को भी ताक पर रखते हुए लगभग ढाई वर्ष तक महाराष्ट्र पर अत्याचार होने दिया, केवल इसलिए ताकि उनकी सत्ता बनी रहे।
सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मृत्यु, मनसुख हिरेन की हत्या, पालघर के साधुओं की नृशंस हत्या हो, आप बोलते जाइए और उन सबमें यदि प्रत्यक्ष रूप से नहीं, तो अप्रत्यक्ष रूप से संजय राऊत ने जमकर उद्धव ठाकरे को पार्टी के आदर्शों के विरुद्ध जाने हेतु भड़काया था। यहाँ तक कि सत्ता में बने रहने हेतु इन्होंने कांग्रेस द्वारा वीर सावरकर के निरंतर अपमान पर भी चुप्पी साध ली थी।
परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इतनी बर्बादी के बाद भी संजय राऊत कुछ सीखने को तैयार है। अपने अनर्गल प्रलाप से इन्होंने उद्धव ठाकरे को सत्ता से निकलवाया, अब चुनाव आयोग पर प्रश्नचिन्ह लगाकर इन्होंने मानो ठान लिया है कि शरद यादव और यशवंत सिन्हा की भांति उद्धव ठाकरे को भी राजनीति से बहिष्कृत कराकर ही मानेंगे।
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