पाकिस्तान एक ऐसा देश जिसके साथ भारत चाहकर भी सहानुभूति नहीं दिखा पाता, क्योंकि यही वो देश है जो भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता आया है। पाकिस्तान ने हमेशा ही भारत की पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है। भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ना हो या फिर आतंकी हमलों से भारत को दहलाना हो, पाकिस्तान अपनी इन हरकतों से हमेशा ही परेशान करता आया है। परंतु हमारे देश में कुछ लोग या यूं कहें कुछ राजनीतिक पार्टियां हैं, जिनका पाकिस्तान के प्रति प्रेम खत्म होने का नाम नहीं लेता। विशेषकर कांग्रेस पार्टी का। अब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की मृत्यु के बाद भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे सोनिया गांधी के द्वारा कारगिल युद्ध को भाजपा का युद्ध समझे जाने वाली बात की पुष्टि कांग्रेस एक बार फिर से करती नजर आ रही है?
कारगिल युद्ध के गुहनगार मुशर्रफ
दरअसल, पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का दुबई में 79 साल की उम्र में निधन हो गया। वो एमाइलॉयडोसिस नामक बीमारी से पीड़ित थे और लंबे समय से उनका इलाज चल रहा था। उनके ज्यादातर अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। जनरल परवेज मुशर्रफ ने दुनिया से अलविदा तो कह दिया लेकिन मुशर्रफ अपने पीछे काले कारनामों से भरी एक लंबी विरासत छोड़ गए, जिसमें मुशर्रफ के द्वारा भारत के विरुद्ध छेड़ा गया कारगिल युद्ध भी शामिल है। मुशर्रफ को कारगिल युद्ध का खलनायक कहा जाता है। परवेज मुशर्रफ ने ही कारगिल युद्ध का षड्यंत्र रचा था। हालांकि वो बात अलग है कि परवेज मुशर्रफ का ये षड्यंत्र पाकिस्तान पर भारी पड़ गया था, क्योंकि इस युद्ध में भारत ने पाक को धूल चटा दी थी।
18 हजार फीट की ऊंचाई पर करीब दो माह तक चले इस युद्ध में भारत के 527 वीर सैनिकों को शहादत देनी पड़ी, जबकि 1300 से अधिक सैनिक इस जंग में घायल हो गये थे। वहीं बात पाकिस्तान की करें तो उसके लगभग 1000 से 1200 सैनिकों की मौत इस जंग के दौरान हुई थी। भारतीय सेना ने अदम्य साहस से जिस प्रकार कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को खदेड़ा था, उस पर प्रत्येक देशवासी को गर्व है। अब जब कारगिल युद्ध के खलनायक का गंभीर बीमारी से जूझते हुए निधन हो गया है तो भारत के द्वारा तो उन्हें कारगिल युद्ध के दोषी के रूप में ही याद किया जा रहा है। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस कारगिल युद्ध के दोषी को श्रद्धांजलि देने में व्यस्त है।
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मुशर्रफ के निधन पर शशि थरूर का ट्वीट
दरअसल, कांग्रेस ने इस युद्ध को कभी भारत का युद्ध नहीं माना और आज तक कारगिल को भाजपा का युद्ध ही समझती आ रही है। जिस कांग्रेस पार्टी ने देश के सैनिकों के लिए आंसू नहीं बहाये वो आज कारगिल युद्ध के कसाई की मौत पर शौक व्यक्त करने में व्यस्त है। कांग्रेस नेता और सांसद शशि थरूर ने मुशर्रफ को श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने मुशर्रफ को लेकर कुछ ऐसा कह दिया, जिस पर बवाल खड़ा हो गया। दरअसल अपने इस ट्वीट में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने परवेज मुशर्रफ को शांति का पैरोकार बता दिया।
शशि थरूर ने ट्वीट करते हुए लिखा- “पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का एक दुर्लभ बीमारी से निधन हो गया है। वो एक समय भारत के कट्टर दुश्मन रहे, लेकिन वह 2002-2007 में शांति के लिए एक वास्तविक ताकत बनकर उभरे। उन दिनों मैं उनसे संयुक्त राष्ट्र में हर वर्ष उनसे मिलता था। मैंने उन्हें उनकी रणनीतिक सोच में स्मार्ट, आकर्षक और स्पष्ट पाया। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।”
“Pervez Musharraf, Former Pakistani President, Dies of Rare Disease”: once an implacable foe of India, he became a real force for peace 2002-2007. I met him annually in those days at the @un &found him smart, engaging & clear in his strategic thinking. RIP https://t.co/1Pvqp8cvjE
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) February 5, 2023
अब जरा सोचिए परवेज मुशर्रफ जैसा व्यक्ति जिसने भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ा उसे कांग्रेस पार्टी शांतिदूत के तौर पर प्रदर्शित कर रही है। वह व्यक्ति कांग्रेस को इतना प्रिय है कि वो उनकी तारीफों के पुल बांध रही हैं। शशि थरूर की ट्वीट के बाद इस पर हंगामा खड़ा हो गया। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने इसको लेकर कांग्रेस पर जोरदार हमला किया। पूनवाला ने कांग्रेस और शशि थरूर को पाक हितैषी बता दिया। शहजाद पूनावाला ने कहा कि परवेज मुशर्रफ कारगिल युद्ध के आर्किटेक्ट, तानाशाह, जघन्य अपराधों के आरोपी थे। उन्होंने तालिबान और ओसामा को भाई और नायक माना था। जिन्होंने अपने ही मृत सैनिकों के शवों को वापस लेने से इनकार कर दिया था, कांग्रेस इसका स्वागत कर रही है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि क्या इस पर आश्चर्य हो रहा है? कांग्रेस की पाक परस्ती एक बार फिर सामने आई है।
Pervez Musharraf- architect of Kargil, dictator, accused of heinous crimes – who considered Taliban & Osama as “brothers” & “heroes” – who refused to even take back bodies of his own dead soldiers is being hailed by Congress! Are you surprised? Again, Congress ki pak parasti! 1/2 pic.twitter.com/I7NnLRRUZM
— Shehzad Jai Hind (Modi Ka Parivar) (@Shehzad_Ind) February 5, 2023
पूनावाला ने कहा कि एक जमाने में मुशर्रफ ने राहुल गांधी की सज्जन व्यक्ति के तौर पर प्रशंसा की थी, शायद इसलिए मुशर्रफ कांग्रेस को प्रिय है? 370 से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट पर संदेह करने वाली कांग्रेस ने पाकिस्तान की भाषा को दोहराया और मुशर्रफ की जय की, लेकिन हमारे अपने प्रमुख को “सड़क का गुंडा” कहा। ये कांग्रेस है।”
वैसे परवेज मुशर्रफ के प्रति कांग्रेस की इस सहानुभूति से हैरान होने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कांग्रेस शायद मुशर्रफ को कारगिल का खलनायक नहीं मानती। कांग्रेस पार्टी ने कभी भी कारगिल में सेना के विजय को देश की जीत नहीं मानी। वो हमेशा इसे भाजपा की विजय ही समझती आई है और यह एक बार नहीं बार बार स्पष्ट भी हुआ है। कांग्रेस की परंपरा रही है कि जिस भी चीज में गांधी-नेहरू परिवार का नाम जुड़ा नहीं होता है उसे वह न तो अपनाती है और न ही अपना मानती है, फिर चाहे वह देश के मान की बात हो या फिर सेना के सम्मान की बात।
जब विजय दिवस मनाना बंद कर दिया था
यह वही कांग्रेस पार्टी है जिसने सैनिकों को साहस को सलाम करते हुए 26 जुलाई को मनाये जाने वाला कारगिल विजय दिवस से अपना मुंह चुराती रही है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 जुलाई को विजय दिवस घोषित करते हुए इसे हर साल धूमधाम से मनाए जाने की घोषणा की थी। इसके बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तो कारगिल विजय का इतिहास लोगों के जहन से मिटाने के लिए विजय दिवस मनाने की परंपरा ही बंद कर दी। इतना ही नहीं यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भी सोनिया गांधी कारगिल विजय दिवस नहीं मनाने देती यदि इसके विरुद्ध आवाज नहीं उठती। क्योंकि सदन के अधिकांश सदस्य कारगिल विजय दिवस के महत्व को जानते थे। बाद में यूपीए सरकार को कारगिल विजय दिवस मनाने को मजबूर होना पड़ा।
राज्यसभा में ही नहीं बाहर भी कांग्रेस नेता बड़े ही शर्मनाक तरीके से कारगिल युद्ध में देश की जीत को एनडीए सरकार की जीत बताते रहे हैं। कांग्रेस के ही सांसद हैं राशिद अल्वी जिन्होंने वर्ष 2009 में अपने एक बयान में कहा था कि कांग्रेस पार्टी को कारगिल विजय दिवस मनाने की कोई वजह नहीं दिखाई देती। उन्होंने कहा था ‘कारगिल की जीत को युद्ध में मिली विजय के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह अलग बात है कि एनडीए इसका उत्सव मना सकता है क्योंकि यह युद्ध उस समय हुआ था जब उसकी सरकार थी।’ आप ही बताये क्या युद्ध किसी सरकार के बीच था या दो देशों के बीच? जहां कांग्रेस कारगिल को “बीजेपी के युद्ध” के रूप में संदर्भित कर रही थी, वहीं वाजपेयी ने कारगिल को देश की जीत के रूप में संदर्भित किया।
युद्ध के समय सोनिया गांधी की राजनीति
यह सब तो छोड़िए कारगिल युद्ध पर वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने अपनी एक रिपोर्ट के माध्यम से ये बताया कि कैसे तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस युद्ध के समय कितनी अड़चन डालने की कोशिश की थी। जब युद्ध अपने चरम पर था तभी विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी ने तत्कालीन केंद्र सरकार से राज्यसभा के विशेष सत्र की मांग करने लगी। यानी जब हमारे सैनिक दुश्मन देशों के सैनिकों के साथ युद्ध में भिड़ रहे थे तो देश की सबसे पुरानी पार्टी राजनीति करने में व्यस्त थी। रिपोर्ट तो ये कहती हैं कि जब ऑल पार्टी मीटिंग के लिए सरकार ने सभी पार्टियों को बुलाया था उस वक्त सोनिया मैडम मौजूद ही नहीं थी। इतने अहम मुद्दे पर सोनिया का बैठक में मौजूद नहीं रहना ही बताता है कि उन्हें देश कि कितनी चिंतत थी। केवल इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस से संबंध रखने वाले एक रक्षा विशेषज्ञ ने विदेशी समाचार पत्र में यह झूठ तक फैलाया था कि सेना के पास गोला-बारूद की कमी हो गयी है। जबकि इस खबर को सेना व वायु सेना द्वारा नकार दिया गया था।
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सेना का अपमान करना कांग्रेस की आदत
कांग्रेस यह भूल जाती है कि कुछ चीजें राजनीति से ऊपर होती हैं। विशेषकर भारतीय सेना को लेकर राजनीति किसी भी पार्टी को शोभा नहीं देती। फिर भी कांग्रेस बार-बार ऐसी ही करती रहती है। फिर चाहे वो सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयरस्ट्राइक के प्रमाण मांगना हो या फिर सेना प्रमुख को गुंड़ा ही क्यों न कहना हो। वरिष्ठ कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने वर्ष 2017 में भारत के तत्कालीन आर्मी प्रमुख जनरल बिपिन रावत पर बेमतलब की बयानबाजी करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा था- “पाकिस्तान उलजुलूल हरकतें और बयानबाजी करता है। परंतु ख़राब तो तब लगता है कि जब हमारे थल सेनाध्यक्ष सड़क के गुंडे की तरह बयान देते हैं। पाकिस्तान ऐसा करता है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होता।” बता दें कि संदीप दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं दिवगंत शीला दीक्षित के पुत्र हैं। हालांकि बाद में संदीप दीक्षित ने अपने इस विवादित बयान के लिए क्षमा अवश्य मांग ली थी, परंतु अपने देश के सेनाध्यक्ष के लिए इस तरह की भाषा का उपयोग करना आखिर किस स्तर की राजनीति है।
आज भी कांग्रेस देश के प्रति अपने पुराने रवैये को ही दोहराती नजर आती रही है। अब जब भारत-चीन के बीच तनाव बना हुआ है और सीमा पर दोनों देश के सैनिक आमने सामने हैं, तो भारतीय सैनिक इस समय केवल यही चाहते होंगे कि भारतीय उनके साथ खड़े रहें। इसके इतर कांग्रेस तो इस पर भी राजनीति करती है और राहुल गांधी जैसे नेता यह तक कह देते हैं कि हमारे जवान चीनी सैनिकों से पीट रहे हैं। कुछ दिनों पूर्व ही राहुल ने अपने एक बयान में कहा था कि चीन के मामले को सरकार लगातार नजरअंदाज कर रही है। भारत सरकार सोई हुई है, जबकि चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है। चीन ने हमारे 2 हजार किमी स्क्वायर पर कब्जा कर लिया और वो हमारे जवानों को पीट रहे हैं।
इन सबसे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस को केवल अपनी राजनीति से मतलब है और इसके लिए पार्टी के नेता किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं। परवेज मुशर्रफ की मृत्यु पर शोक जताना तो समझ आता है परंतु उनसे जैसे व्यक्ति को शांति का पैरोकार कहना कहां तक सही हैं, यह तो कांग्रेस ही जानें।
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