जरासंध के जन्म की कथा: जरासंध का नाम आप सब ने अवश्य सुना होगा. उसके शौर्य और उसके बल की कहानी भी आपने पढ़ी होगी. महाभारत में आपने भीम और जरासंध प्रकरण के बारे में देखा भी होगा लेकिन क्या आप जरासंध की उत्पत्ति की कथा से परिचित हैं? क्या आप जानते हैं कि जरासंध की उत्पत्ति में ही उसकी मृत्यु का रहस्य छिपा था? इस लेख में आपको इन सभी प्रश्नों को उत्तर मिलेगा।
जरासंध के जन्म की कथा
जरासंध मगध का सम्राट था, जो आज का वर्तमान बिहार है। वो एक क्रूर शासक और अधर्मी प्रवृत्ति का सत्ता लोभी राजा था, जिसने अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए कई तिकड़म किए, कईयों को जीत लिया, कई राजाओं को बंदी बना लिया। उसके भय के कारण कई राजाओं ने अपने ऊपर उसका अधिपत्य भी स्वीकार कर लिया था। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी था और जो भी राजा उसे अपनी भांति शक्तिशाली प्रतीत होते थे उनसे वह संधि कर लेता था। इसी परिप्रेक्ष्य में उसने मथुरा पर राज कर रहे कंस को शक्तिशाली जानकर उससे अपनी दो पुत्रियों का विवाह कर दिया। इस प्रकार से वह कंस का ससुर और परम मित्र बन गया था।
जब श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया था, तब उसने क्रोधित होकर भगवान कृष्ण से प्रतिशोध लेने के लिए 17 बार मथुरा पर आक्रमण किया था। किन्तु हर बार श्रीकृष्ण की कुशल राजनीति और युद्ध नीति से वह परास्त हो जाता। परंतु अपनी प्रजा की रक्षा और उनके हित को ध्यान में रखते हुए एक समय के बाद स्वयं श्रीकृष्ण को भी अपना जन्म स्थान त्यागना पड़ा और द्वारका को अपनी राजधानी बनानी पड़ी थी।
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जरासंध की उत्पत्ति/ जन्म की कथा
अब प्रश्न ये उठता है कि जरासंध की उत्पत्ति कैसे हुई? जरासंध के जन्म के पीछे एक रोचक कथा है। दरअसल, मगध देश के राजा थे बृहद्रथ। उनकी दो पत्नियां थीं किन्तु उनकी कोई भी संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की कामना में वह एक ऋषि चण्डकौशिक के पास जाकर उनकी सेवा करने लगे। उनके सेवा भाव से संतुष्ट होकर ऋषि ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि अपनी पत्नी को इसे खिला देना, शीघ्र ही तुम्हें संतान प्राप्ति हो जाएगी।
अब यहां से कथा पर दो अलग अलग सिद्धांत सामने आते हैं। एक के अनुसार, ऋषि ने राजा को दो फल दिए और राजा ने दोनों रानियों को एक एक फल दिया। रानियों ने उस फल को आधा अधूरा खाया, जिसके कारण जरासंध आधा-आधा पैदा हुआ। लेकिन दूसरी कहानी के अनुसार, राजा वह फल लेकर महल आए और उन्होंने फल को बीच से काटकर अपनी दोनों पत्नियों को आधा आधा खिला दिया। इस दूसरी कहानी पर सभी विद्वान सहमत होते हैं। फल खाने के शीघ्र बाद ही दोनों रानियां गर्भवती हो गयीं और समय आने पर उन्होंने बालक को जन्म दिया, किन्तु मांस के लोथड़े के रूप में वह बालक दोनों से आधा आधा जन्मा, जिनमें जान नहीं थी। शिशु के आधे-आधे शरीर को देखकर सब भयभीत हो गए एवं राजा के कोप के भय से रानियों ने उन दोनों लोथड़ों को जंगल में फिकवा दिया।
‘जरा’ और ‘जरासंध’
जंगल में एक राक्षसी को मानव की गंध आई और उस जगह पर पहुंचकर उसने देखा तो उसे मांस के लोथड़े के रूप में शिशु के दो टुकड़े दिखाई दिए। अपनी माया से उसने उस बच्चे की संपूर्ण जन्म पत्री प्राप्त कर ली। तत्पश्चात उस राक्षसी ने उन दोनों हिस्सों को जोड़कर एक कर दिया और अपना रूप बदलकर राजा के समक्ष पहुंच गई एवं सारा वृत्तांत सुना दिया। उस राक्षसी का नाम जरा था। राजा राक्षसी से बहुत प्रसन्न हुए और प्रसन्नता में ही उन्होंने उस राक्षसी के नाम पर ही अपने पुत्र का नाम जरासंध रख दिया। जरासंध अर्थात् “जरा द्वारा संधित”!
समय के साथ जरासंध मगध का राजा बना। जरासंध मल्लयुद्ध का माहिर योद्धा था। उसे अपनी भुजाओं पर गुमान था। उसके बारे में कहा जाता है कि उसे कभी मारा नहीं जा सकता था। उसके ताकत की गूंज चारों दिशाओं में फैली थी। जरासंध बडे-बड़े शूरवीरों को ना केवल परास्त करता था बल्कि उन्हें मौत के घाट भी उतार देता था।
बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध के वध की योजना बनाई। भीम और अर्जुन ब्राह्मण के साथ तपस्वी के वेष में जरासंध के पास पहुंचे और कुश्ती के लिए ललकारा। उसके बाद जरासंध ने भीम से कुश्ती लड़ना तय किया। अखाड़े में जरासंध और भीम का युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिन तक लगातार चला। इस दौरान भीम ने जरासंध को जांघ से उखाड़कर कई बार दो टुकड़े किए लेकिन हर बार जुड़कर वह फिर जिंदा हो जाता और फिर से भीम पर टूट पड़ता। भीम थककर बेदम हो गए तो 14वें दिन कृष्ण ने एक तिनके को बीच से तोड़कर दोनों भाग विपरीत दिशाओं में फेंक दिया। भीम यह इशारा समझ गए और उन्होंने जरासंध को दोफाड़ कर एक टुकड़ा एक दिशा में और दूसरा दूसरी दिशा में फेंक दिया और इस तरह जरासंध का अंत हो गया।
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https://www.youtube.com/watch?v=ubfAo5GMghI
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