भारतीय सेना के सबसे बड़े हितैषी, बीएस मुंजे की अनकही कथा

इन्हें 'सैनिक स्कूलों के जनक' के तौर पर याद किया जाना चाहिए!

बीएस मुंजे

SOURCE TFI

हमारे राष्ट्र में सैनिक स्कूल की स्थापना कब हुई? अगर किसी ने तनिक भी इतिहास पढ़ा हो तो उसके अनुसार 1960 के दशक में सैनिक स्कूल की स्थापना हुई थी, जिसके ‘प्रणेता’ थे तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन। परंतु यदि आपको बताया जाए कि सैनिक स्कूल की कल्पना एवं रचना उनसे पूर्व ही कर दी गई थी, तो?

इस लेख में हम जानेंगे श्री बीएस मुंजे के बारे में जो न केवल प्रखर राष्ट्रवादी थे अपितु उनके योगदानों को आज भी कई स्वघोषित इतिहासकार हेय दृष्टि से देखते हैं।

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बीएस मुंजे फर्जी राष्ट्रवादी नहीं थे

बालकृष्ण शिवराम मुंजे के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं और जो भी जानते हैं वो भी वामपंथियों के दृष्टिकोण से। परंतु बीएस मुंजे फर्जी राष्ट्रवादी नहीं थे, वे अंग्रेज़ों की नीतियों और उनकी कार्यशैली से भलीभांति परिचित थे। वे भारतीयों को एक अनोखी सैन्य पद्धति के अंतर्गत प्रशिक्षित करना चाहते थे और उनके पदचिह्नों पर चलते हुए पीएम मोदी की सरकार आज सैन्य सुधारों में अग्रणी है।

डॉ बीएस मुंजे का जन्म 1872 में मध्य प्रांत (तत्कालीन सेंट्रल प्रोविंस, वर्तमान में छत्तीसगढ़) के बिलासपुर में हुआ था। उन्होंने 1898 में मुम्बई में ग्रांट मेडिकल कॉलेज से मेडिकल डिग्री ली फिर वो मुम्बई नगर निगम में चिकित्सा अधिकारी के रूप में काम करने लगे। वे इसी बीच राजनीतिक रूप से भी सक्रिय रहे और कांग्रेस से जुड़ गए, जहां वे लोकमान्य तिलक को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते रहे।

जब 1907 में सूरत में कांग्रेस के अधिवेशन में नरम दल और गरम दल के बीच तनाव बढ़ा तो बीएस मुंजे ने खुलकर तिलक का समर्थन किया और यही कारण था कि भविष्य में भी वो तिलक के काफी करीबी रहे। जब राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने हेतु तिलक जी ने गणेश पूजा का प्रारंभ किया तो उसे भी बीएस मुंजे का पूरा समर्थन मिला। पंडाल लगाने, मूर्ति बैठाने और उसे विसर्जित करने तक के कार्यक्रम के जरिए लोकमान्य तिलक ने जो व्यवस्था महाराष्ट्र में शुरू की थी, उसको मुंजे महोदय बाद में कोलकाता भी ले गए।

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कांग्रेस से अलग क्यों हुए?

तो वे कांग्रेस से अलग क्यों हुए? कई राष्ट्रवादियों की भांति डॉ. मुंजे गांधी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से असहमत थे इसलिए वे कांग्रेस से अलग हो गए और उनकी गिनती हिन्दू महासभा के ओजस्वी नेताओं में होने लगी। 1930 और 1931 के गोलमेज सम्मेलनों में वे हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि के रूप में गए थे। इसी गोलमेज सम्मेलन के बाद फरवरी से मार्च 1931 तक उन्होंने यूरोप का भ्रमण किया। 15 मार्च से 24 मार्च तक वे इटली में भी रुके। वहां वे मुसोलिनी से भी मिले। अपने पूरे जीवन वो यात्राएं ही करते रहे।

तो इन सबका सैनिक स्कूल से क्या लेना देना है? यूरोप के सैन्य प्रशिक्षण को समझकर, उनकी कमी बेसी का विश्लेषण कर 1934 में मुंजे ने सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की जिसका उद्देश्य मातृ भूमि की रक्षा के लिए युवा हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण देना और उन्हें ‘सनातन धर्म’ की शिक्षा देना था। साथ ही, निजी सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा की कला में युवाओं को प्रशिक्षित करना था। इसी पद्धति पर विनायक दामोदर सावरकर ने भारतीय युवाओं, विशेषकर सनातनियों को सैन्य प्रशिक्षण के लिए प्रेरित किया, जिसका उल्लेख नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भी कई अवसरों पर किया था।

इसी परिप्रेक्ष्य में 1931 में डॉ मुंजे ने कई यात्राएं कीं। फरवरी से मार्च 1931 तक यूरोप का भ्रमण किया। 15 मार्च से 24 मार्च तक वे इटली में भी रुके, वहां वे मुसोलिनी से भी मिले। परंतु उनकी इटली यात्रा को लेकर आज भी वामपंथी वैसे ही विलाप करते हैं जैसे आजकल अडानी प्रकरण को लेकर वे मोदी सरकार के विरुद्ध कर रहे हैं।

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देशभक्ति से ओतप्रोत डॉ. मुंजे

देशभक्ति से ओतप्रोत डॉ. बीएस मुंजे ने सैनिक शिक्षा देने के लिए सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी की स्थापना की और 1937 में भोंसला मिलिट्री स्कूल आरंभ हुई। इस वर्ष लगभग अगस्त माह में ‘दि सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एज्यूकेशन सोसायटी’ का पंजीयन हुआ। संस्था के पहले अध्यक्ष प्रताप शेठ (धुले) थे। संस्था की पहली सभा 16 अगस्त 1936 को हुई और इसी सभा में 15 जून 1937 से सैनिक स्कूल आरंभ करने का निर्णय किया गया। 26 मार्च 1938 को जिवाजीराव सिंधिया के करकमलों द्वारा स्कूल की इमारत का उद्घाटन किया गया। इस कार्यक्रम में डॉ. हेडगेवार उपस्थित थे। चूंकि भारतीय युवाओं के सैन्यकरण एवं “सेंट्रल हिन्दू मिलिट्री सोसाइटी” के स्थापना में नासिक के भोंसला परिवार ने उनका साथ दिया था इसीलिए उनके सम्मान में इस स्कूल का नाम भोंसला मिलिट्री स्कूल रखा गया।

नेहरूवादी नीतियों के कारण इस स्कूल को काफी संकट झेलने पड़े और 1948 के पश्चात डॉ बीएस मुंजे का निधन होने के कारण उनका आशीर्वाद ही स्कूल के सर पर से उठ गया। परंतु उनके मार्गदर्शन को उनके अनुयायी नहीं भूले और 1962 में उन्हें अपनी विद्वता सिद्ध करने का अवसर भी मिला।

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जब भारत की हालत खस्ता हो गई

1962 में भारत पर चीन का आक्रमण हुआ। भारत की हालत खस्ता हो गई और सारा देश मानो नींद से जाग उठा। देश की सेना बलशाली होनी चाहिए, यह बात जनता के साथ सरकार के भी ध्यान में आ गई। भोंसला मिलिट्री स्कूल सेना में भर्ती होने के पूर्व छात्रों को फौजी शिक्षा के लिए पूर्व प्रशिक्षण देने वाली संस्था है और इसी कारण वह सेना के लिए सक्षम युवकों की आपूर्ति करने वाली संस्था के रूप में अगुवा रही। नासिक स्थित सेना के आर्टिलरी सेंटर के अधिकारियों की पूर्ण सहानुभूति व सहयोग स्कूल को प्राप्त होने लगा। स्कूल ने इस अवसर को नहीं गंवाया। इस अवसर का पूरा लाभ स्कूल की फौजी शिक्षा के स्तर को सुधारने में हुआ।

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शिक्षा के स्तर में सुधार के कारण भोंसला मिलिट्री स्कूल अधिकाधिक लोकप्रिय होने लगी। फौजी विषयों के विशेषज्ञों का सहयोग मिलने लगा। स्कूल की प्रगति होने लगी, और आज उन्हीं के पदचिह्नों पर चलते हुए सैन्यबलों का भारतीयकरण भी सही मायनों में होने लगा है।

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