अभी तक हम यह देखते आए हैं कि जब भी कोई मुस्लिम आतंकी हमला करता तो ऐसी बातें कही जाती हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता लेकिन हिंदुओ पर बिना किसी साक्ष्य के आतंकी घटनाओ के आरोप लगाना और फिर उस पर ‘हिंदू आतंकवाद’ का एजेंडा चलाना कहां तक सही है? यह एक ऐसा मुद्दा है जो कि हिंदुओं को सबसे ज्यादा चुभता है, इसके जरिए कांग्रेसी मुस्लिम आतंकियों की तरह ही हिंदुओं को भी आतंकी बताते आए हैं! उनका मुख्य उद्देश्य केवल मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदुओं को नीचा दिखाना था लेकिन इसकी शुरुआत कैसे हुई और कैसे यह मुद्दा कांग्रेस के लिए मुसीबत बनता चला गया, चलिए बताते हैं।
दरअसल, यूपीए शासन के दौरान वर्ष 2004-2014 के बीच खूब आतंकी हमले हुए थे। लुधियाना, अमृतसर, भोपाल, रायपुर, कानपुर, लखनऊ, फैजाबाद, बनारस समेत अनेक शहरों में ब्लास्ट हो रहे थे और सारे आतंकी ‘मुस्लिम’ ही सामने आ रहे थे। मुस्लिम आतंकी पकड़े जा रहे थे तो कांग्रेस को यह लग रहा था कि इससे उनका मुस्लिम वोट बैंक छिटक जाएगा। उसी बीच भारत के अटारी से पाकिस्तान के लाहौर के लिए चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में एक ब्लास्ट हुआ। पाकिस्तान ने खूब नौटंकी की कि भारत में आतंकी घटनाएं बढ़ रही हैं और पाकिस्तान ने संचालन बंद कर दिया।
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समझौता एक्सप्रेस कांड
उस घटना के बाद कांग्रेस ने इस मामले में एक नया ही एजेंडा गढ़ना शुरू कर दिया। कई प्रत्यक्षदर्शियों का स्पष्ट कहना है कि समझौता एक्स्प्रेस में ब्लास्ट के दौरान जो मुस्लिम असली आतंकवादी थे, उन्हें छोड़ दिया गया और साधु असीमानंद समेत कई हिंदुओं का आरोपी बना दिया गया। अहम बात यह है कि इसे मुस्लिमों द्वारा किए गए आतंकी हमलों के प्रतिकार के तौर पर दिखाने की कोशिश की गई। उस दौरान पहली बार हिंदू आतंकवाद का टर्म इस्तेमाल किया गया। असीमानंद को उस दौरान पुलिस ने जांच के दौरान टॉर्चर किया। हालांकि, सीधे तौर पर कहा जाए तो उन्हें आतंकी गतिविधियों के आरोपों को स्वीकार करने को कहा गया, जो उन्होंने कभी किए ही नहीं थे।
अहम बात यह है कि भले ही असीमानंद समेत कई हिंदुओं को आरोपी बनाया गया हो लेकिन उनके खिलाफ तब पुलिस या एनआईए जैसी जांच एजेंसियां कोई सबूत नहीं जुटा पाई। असीमानंद को सात वर्ष तक ऐसे ही जेल में रखा गया और कोर्ट ने उन्हें सबूतों की कमी के कारण 2014 में जमानत दे दिया। उन्हें सीबीआई ने 2010 में उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद वर्ष 2019 में समझौता ब्लास्ट केस में असीमानंद समेत सभी 4 आरोपियों लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को पंचकूला की विशेष एनआईए कोर्ट ने बरी कर दिया।
मालेगांव ब्लास्ट
समझौता एक्सप्रेस कांड (2007) के बाद वर्ष 2008 में मालेगांव ब्लास्ट हुआ था। पुलिस और जांच एजेंसी उस मामले में भी असफल साबित हुई क्योंकि मुख्य आतंकी को पकड़ा नहीं जा सका लेकिन इन सबके चक्कर में यूपीए ने हिंदू आतंकवाद को मुद्दा बना दिया। महाराष्ट्र एटीएस के तत्कालीन अधिकारी हेमंत करकरे इस केस को लीड कर रहे थे और उन्होंन ही इस केस मे साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को बिना किसी सबूत ही गिरफ्तार कर उन पर ‘मकोका’ लगा दिया गया। कर्नल पुरोहित एक इंटेलीजेंस ऑफिसर थे, उन्होंने सारे कच्चा चिट्ठा सामने रख दिया।
मालेगांव ब्लास्ट में भी कभी कुछ साबित नहीं हो पाया। नतीजा यह हुआ कि साध्वी प्रज्ञा जेल से निकलकर भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बन चुकी हैं और कर्नल पुरोहित को भी जमानत मिल चुकी है। समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव ब्लास्ट के जरिए कांग्रेस ने हिंदुओं को बदनाम करने की पूरी तैयारी कर ली थी। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने एजेंडे के तहत सबसे पहले ‘हिंदू आतंकवाद’ का टर्म इस्तेमाल किया था। उसके बाद तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी इस शब्द का इस्तेमाल किया था।
इन दोनों के बाद पी चिदंबरम और मनीष तिवारी जैसे नेता तक ‘हिंदू आतंकवाद’ बोलने लगे थे, जिसके बाद आज तक यह डोमेन में है। ये वही लोग हैं जो कि इस्लामिक आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल करने पर आग बबूला हो जाते हैं लेकिन हिंदू आतंकवाद बोलने पर गर्व महसूस करते हैं।
26/11 को लेकर नैरेटिव गढ़ने की कोशिश
यहां तक कि बाटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों को आतंकी नहीं बल्कि छात्र बताया जा रहा था और पहली बार वोट बैंक के लिए सरकार के ही कुछ लोग आंतरिक तौर पर उस एनकाउंटर को गलत बता कर पुलिस पर यह आरोप लगा रहे थे कि वह एनकाउंटर फर्जी था और हिंदू आतंकवाद की मानसिकता से पुलिस अधिकारियों ने कथित छात्रों की जान ली थी, जबकि उस एनकाउंटर में जब आतंकियों ने जवाबी फायरिंग की थी तो उसमें पुलिस अधिकारी मोहन चंद्र शर्मा की मौत भी हो गई थी।
इसके अलावा कांग्रेस सरकार और दिग्विजय सिंह तो 26/11 हमले के पहले दिन से ही यह नैरेटिव गढ़ रहे थे कि हमला हिंदुओं ने किया था। गनीमत यह रही कि शहीद हवलदार तुकाराम ओंबले की बहादुरी से आतंकी घटनाओं में शामिल आतंकी गिरोह का साथी अजमल आमिर कसाब पकड़ा गया था और उसके जरिए पाकिस्तान की इस हमले में भूमिका सामने आई। इसके अलावा जब सुरक्षा एजेंसियों ने हमले के दौरान ही आतंकियों की सैटेलाइट कॉल्स की जांच की तो उनका पता पाकिस्तान तक गया। इन सबसे साबित हो गया कि हिंदू आतंकवाद का नैरेटिव सिर्फ बना बनाया एजेंडा था।
तो ये कुछ ऐसे मामले हैं जो कि हिंदू आतंकवाद के तौर पर दिखाए जाते हैं, जबकि किसी में कभी भी कुछ साबित नहीं किया जा सका है लेकिन इन सबके चक्कर ने कांग्रेस ने अपनी ऐसी भद्द पिटाई है कि अब उसे हिंदू पसंद ही नहीं कर रहे हैं।
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