श्रीराम राघवन: वो फिल्मकार जो शॉर्ट फिल्म को क्लासिक फिल्म बना देने की क्षमता रखता है

श्रीराम राघवन की फिल्मों की यात्रा चौंकाती है।

Turning Shorts into Masterpieces: The Shriram Raghavan Formula

Source: Indian Express

कोई भी आम आदमी शॉर्ट फिल्म देखता है तो उसकी कहानी, उसके संवाद, कलाकारों के अभिनय की चर्चा करेगा, जब भी कोई फिल्म मेकर शॉर्ट फिल्म देखेगा तो उसके निर्देशन की चर्चा करेगा और फिल्म के कलाकारों की प्रशंसा करेगा, लेकिन कितने ही ऐसे फिल्म मेकर्स होंगे जो ऐसी शॉर्ट फिल्म को क्लासिक बना देंगे? शायद, बहुत कम, श्रीराम राघवन उन्हीं में से एक हैं।

इस लेख में  श्रीराम राघवन के बारे में जानिए, जिन्होंने एक शॉर्ट फिल्म को क्लासिक बना दिया।

फिल्म एंड टेलीविजन इंडस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया से दो लोगों ने एक साथ अपनी यात्रा शुरू की। दोनों ही अपनी-अपनी कलाओं में निपुण और दोनों का एक ही सपना: फिल्म जगत में इक नाम हो अपना। बस दोनों ने अलग-अलग कथाएँ चुनी। आगे चलकर एक जहां नोट छापने में निपुण हुआ तो वहीं दूसरे ने कथा और रचनात्मकता पर अधिक ध्यान दिया।

श्रीराम राघवन की यात्रा

ये किसी उपन्यास की कहानी नहीं बल्कि वास्तविक सत्य है। जो श्रीराम राघवन और उनके बैचमेट राजकुमार हिरानी ने वास्तव में जिया था। श्रीराम राघवन ने अपने लिए एक अनोखा मार्ग अपनाया और शीघ्र ही वे राम गोपाल वर्मा से मिले। आज की तुलना में राम गोपाल वर्मा 90 के दशक में एक चलते फिरते संस्थान समान थे, जिनके सानिध्य में कई अभिनेताओं एवं रचनाकारों का करियर फला फूला। श्रीराम राघवन भी उन्ही में से एक थे।

प्रारंभ में श्रीराम राघवन ने “स्टारडस्ट” को अपनी सेवाएँ दी, परंतु वे वहाँ की विचारधारा से विमुख हो गए और जल्द ही उन्होंने वह जगह छोड़ दी। इसी बीच उन्होंने “रमन राघव” नामक सीरियल किलर पर डॉक्यूमेंट्री बनाई, जिसमें रघुवीर यादव ने प्रमुख भूमिका निभाई। जब राम गोपाल वर्मा ने यह डॉक्यूमेंट्री देखी, तो वह श्रीराम राघवन की शैली से काफी प्रभावित हुए।

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श्रीराम राघवन ने शीघ्र ही एक क्राइम ड्रामा निकाली, “एक हसीना थी”, जिसका निर्माण रामगोपाल वर्मा ने किया। यह फिल्म सिडनी शेल्डन की कथा “इफ टुमॉरो कम्स” से प्रेरित थी। ये एक रिवेंज ड्रामा थी, जिसमें उर्मिला मातोंडकर और सैफ अली खान प्रमुख भूमिकाओं में थे। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बहुत अधिक सफल नहीं हुई, पर क्रिटिक्स ने उसे खूब सराहा, और आज भी सिनेमा प्रेमी इस फिल्म से, विशेषकर इसके कथावाचन की शैली से बहुत प्रभावित हैं।

फिर क्या था, श्रीराम राघवन निकल पड़े बॉलीवुड में अपना भाग्य आजमाने। 2007 में इनकी फिल्म आई “जॉनी गद्दार”, जिसमें धर्मेन्द्र, विनय पाठक, ज़ाकिर हुसैन एवं रिमी सेन जैसे चर्चित कलाकार तो थे ही, परंतु इनपे भारी पड़े नील नितिन मुकेश, जिन्होंने इस फिल्म से डेब्यू किया। “एक हसीना थी” की भांति ये भी एक क्राइम थ्रिलर थी, जो अपेक्षाओं के विपरीत स्लीपर हिट सिद्ध हुई, और इसके गीत भी युवाओं के बीच सुपरहिट रहे।

शॉर्ट फिल्म से बनाई अंधाधुन

इसके बाद श्रीराम राघवन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी फिल्म हिट हो या फ्लॉप, पर कथा में शायद ही कभी कमी रही, और अभिनय तो कभी भी इनकी फिल्म में औसत नहीं होता। आज भी लोग इस बात पर चकित हो जाते हैं कि जिस व्यक्ति ने बदलापुर में वरुण धवन से दमदार अभिनय करवाया, उन्ही की बहुचर्चित फिल्म “एजेंट विनोद” कैसे फ्लॉप हुई?

परंतु ये सभी बातें 2018 में निरर्थक सिद्ध हुई। श्रीराम राघवन ने काफी समय पूर्व एक फ्रेंच शॉर्ट फिल्म देखी थी, “L‘Accordeur” यानि “द पियानिस्ट”, जो एक पियानिस्ट और उसके जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना पर आधारित थी। वे इसकी शैली से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने इस शॉर्ट फिल्म से एक फुल लेंथ फीचर फिल्म बनाने की ठानी।

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परंतु ये आइडिया जितना सरल था, उसे धरातल पर लाना उतना ही कठिन। एक कलाकार को अपने आसपास की घटनाओं का आभास न होने देने का आइडिया श्रीराम राघवन को अपनी ही फिल्म “एजेंट विनोद” के एक सीन से आया, जो “राबता” के फिल्मी वर्जन में भी दिखता है। वे जिस समय लिख रहे थे, उसी समय उन्हे ऋतिक रोशन की बहुचर्चित फिल्म “काबिल” के बारे में भी ज्ञात हुआ, जो लगभग ऐसे ही एक विषय पर आधारित थी।

अब श्रीराम राघवन धर्मसंकट में पड़ गए: करें तो क्या करें? उन्होंने एक नए दृष्टिकोण से इस कथा को लिखना प्रारंभ किया। पहले उन्होंने वरुण धवन को लेने की इच्छा जताई। परंतु वे अन्य फिल्मों में व्यस्त हुए और फिल्म पुनः अधर में लटक गई। इसी बीच एक अन्य एक्टर ने उनके साथ इस फिल्म पर काम करने की इच्छा जताई और श्रीराम राघवन ने उन्ही के इर्दगिर्द इस कथा को बुना। पता है ये फिल्म कौन सी थी?

 

हर तरफ हुई प्रशंसा

 

ये थी अंधाधुन, जिसने रातों-रात आयुष्मान खुराना को स्टार बना दिया था। फ्रेंच फिल्म “L’Accordeur” की भांति इस फिल्म में भी नायक नेत्रहीन है और पियानिस्ट है। परंतु इसे श्रीराम राघवन ने एक अनोखा ट्विस्ट दिया और संगीत, थ्रिलर एवं कला का एक ऐसा बेजोड़ मिश्रण देखने को मिला कि जिसने भी इसे देखा, वाह वाह कर उठा।

रोचक बात यह है कि ये फिल्म उसी दिन प्रदर्शित हुई, जिस दिन तमिल फिल्म में एक क्लासिक थ्रिलर “राटचासन” प्रदर्शित हुई। परंतु श्रीराम राघवन का निर्देशन, आयुष्मान खुराना की बहुमुखी प्रतिभा एवं तब्बू की खतरनाक एक्टिंग ने ऐसा प्रभाव डाला कि लोग इस फिल्म के पीछे हो लिए।

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इतना ही नहीं, इस फिल्म में अमित त्रिवेदी का संगीत इतना दमदार था कि लोग उनकी मौलिक धुनों पर जमकर थिरके। ये फिल्म 32 करोड़ के बजट में बनी थी, और केवल 800 स्क्रीनों पर भारत में प्रदर्शित हुई थी, परंतु इसका प्रभाव ऐसा था कि इसने भारत से लगभग 96 करोड़ कमाए, और विदेशी कलेक्शन मिलाकर इसका पूर्ण कलेक्शन लगभग 106 करोड़ रुपये रहा, जिसने इस फिल्म को ब्लॉकबस्टर का स्टेटस दिलाया।

परंतु बात यहीं पर सीमित नहीं रही। इस फिल्म को 2 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार एवं 2 फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले, जिसमें श्रीराम राघवन को सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार एवं फिल्मफेयर दोनों ही मिला।

इसके अतिरिक्त “अंधाधुन” वह रेयर फिल्म बनी, जिसके भारत के अन्य कोनों में भी रीमेक बने, वो अलग बात है कि इनमें से कोई भी उतना प्रभावी नहीं रहा। तेलुगु में “Maestro”, मलयालम में “Bhramam”, एवं तमिल में “Andhagan” के नाम से इसके संस्करण निकले। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि श्रीराम राघवन वह कलाकार हैं, जो कोयले की खदान से हीरा निकालने का दम रखते हैं।

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