“अजमेर दरगाह में बरेलवियों और खादिमों के बीच चले लात-जूते, मच गई भगदड़”, इससे हमें क्या पता चलता है?

बड़े झगड़े का कारण सिर्फ इतना था कि बरेलवियों ने नारेबाजी की थी!

Ajmer Dargah clash, What does this tell us about the scuffle between Barelvis and Khadims at Ajmer Dargah?

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अभी हाल ही में अजमेर की सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक युद्ध के मैदान में बदलती हुई नजर आई है। जी हां, अजमेर शरीफ दरगाह के अंदर दो समूहों के लोगों के बीच हिंसक झड़प का मामला सामने आया है। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो बरेलवी समुदाय के समर्थकों के द्वारा उनके पक्ष में जोर-जोर से नारे लगाने के कारण ये झड़प (Ajmer Dargah clash) हुई है। जानकारी के अनुसार,  दरगाह के खादिम (संरक्षक और सेवक) दूसरे समुदाय के नारों से नाराज हो उठे थे जिससे दोनों समूहों के बीच मारपीट हो गयी थी।

दोनों समुदायों के सदस्य ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के अंदर ही एक-दूसरे के ऊपर झपट पड़े। इस समुदाय के लोग सूफी संत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स यानी पुण्यतिथि में सम्मिलित होने के लिए अजमेर आए हुए थे। प्रश्न ये है कि क्या बरेलवियों और खादिमों के बीच होने वाला ये टकराव मौलवी द्वारा प्रायोजित कट्टरवाद को दर्शा रहा है? क्या इससे इस्लाम धर्म के भिन्न-भिन्न समुदायों को खतरा है? क्या ये कट्टरवाद इस्लाम के लिए एक दीमक है? आइए जानते हैं।       

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Ajmer Dargah clash

इस झड़प की बात करें तो अजमेर दरगाह के अंदर नारेबाजी होने के बाद हलात इतने खराब हो गए कि नौबत मारपीट तक आ गयी थी। बरेलवी जायरीनों के कुछ लोगों के द्वारा दरगाह के अंदर नारेबाजी के बाद दरगाह के खादिम इस पर भड़क गए थे। उन्होंने पहले इस तरह की नारेबाजी करने वाले लोगों को मना किया लेकिन जब वह सभी नहीं माने तो फिर उनकी जमकर पिटाई कर दी और देखते ही देखते पूरी दरगाह एक युद्ध के मैदान में बदल गया। इस लड़ाई-झगड़े के कारण दर्जनों लोग बुरी तरह घायल हो गए है।

इस मारपीट में दोनों समुदाय के लोग अधिक हिंसक हो गए थे। दरगाह के अंदर मारपीट की सूचना मिलने पर पुलिस ने जब हालात को संभालने की कोशिश की तो पुलिस के भी पसीने छूट गए। पुलिस के सामने भी लोग एक दूसरे को पीटने से नहीं रुके। इस मारपीट के मामले के बाद खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने इस तरह की नारेबाजी पर कड़ी आपत्ति जताई है। वहीं, इस विवाद के पीछे का कारण दरगाह के सरवर चिश्ती के उस बयान को कहा जा रहा है, जिसमें उन्होंने उर्स के समय नारेबाजी न करने की बात की थी।

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बड़ा विवाद चल पड़ा

सैयद सरवर चिश्ती के अनुसार, ”दरगाह में हर धर्म जाति के लोग आते हैं, इसी कारण यहां किसी भी तरह की नारेबाजी नहीं होनी चाहिए। यहां कुछ संस्था से जुड़े लोग तकरीर के साथ नारेबाजी भी करने लगते थे जिस कारण पहले भी माहौल बिगड़ा है। दरगाह में ऐसी कोई हरकत न करें जिससे कि यहां की छवि खराब हो।”

जानकारी के अनुसार, उर्स के दौरान दरगाह में होने वाली तकरीरों में कई उलेमा सलाम और तकरीर पेश किया करते है। इनमें बरेलवी उलेमा भी सम्मिलित हैं, इसी पर दरगाह अंजुमन कमेटी के सचिव सैयद सरवर चिश्ती को काफी ज्यादा परेशानी थी। बीते कई दिनों से सरवर चिश्ती और बरेलवी जायरीनों के बीच लगातार बयानबाजी (Ajmer Dargah clash) हो रही है, इसी कारण इनके बीच विवाद भी चल रहा है।

आप सोच रहे होंगे कि ये तकरीर है क्या? दरअसल, खिदमत करने वालों से बना शब्द है खादिम। खादिम वो कहलाते हैं जो दरगाह में सेवा करते है, वहीं दूसरी ओर आला हजरत को मानने वाले मुसलमानों को बरेलवी कहा जाता है। जयपुर के यूनानी विशेषज्ञ डॉ. अबुजर जैदी की माने तो दोनों ही समूह अलग-अलग गुरु को मानते हैं। दरगाह में सेवा करने वाले खादिम गुरु ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती को मानते है, वहीं बरेलवी मुस्लिम की बात करें तो वो आला हजरत के समर्थक है. वैसे तो दोनों ही इस्लाम का हिस्सा है. इस्लामिक कानून और इस्लामिक इतिहास में समझ के आधार पर मुस्लिम समुदाय को भिन्न-भिन्न पंथों में बंटा हुआ है. जैसे- हनफी, देवबंदी, बरेलवी, मालिकी, शाफई, हंबली, सुन्नी वोहरा और अहमदिया.

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विवाद का कारण

इन दोनों समूहों के गुरु अलग-अलग हैं और यही इनकी सोच और विवाद का कारण है लेकिन इनकी लड़ाई की आग में घी डालने का काम कुछ मौलवियों के द्वारा किया जा रहा है. इस मामले से एक बात तो स्पष्ट है कि मौलवी खुद ही इस्लामिस्टों को कट्टर बना रहे हैं क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो दरगाह के अंदर इस तरह से एक दूसरे के साथ मारपीट नहीं होती। ये कट्टरता इतनी बढ़ती जा रही है कि वो अपने मजहब के अन्य दूसरे समूह को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं और एक-दूसरे के खिलाफ टूट पड़े हैं।

उदहारण के लिए आप पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को ही देख लीजिए, पाकिस्तान के बहुमत वाले मुसलमान अहमदी मुसलमानों को छोटा मानते हैं। वहां के अल्पसंख्यक विशेष रूप से अहमदी हैं जो कि पाकिस्तान में बहुत कमजोर हैं और उन्हें अक्सर धार्मिक चरमपंथियों के द्वारा सताया जाता है। पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल हक ने अहमदियों के लिए स्वयं को मुसलमान कहना एक दंडनीय अपराध तक बन रखा है। इसी के चलते उनके अन्दर के मतभेद बाहर आते नजर आ रहे हैं। मौलवी (Ajmer Dargah Clash) जिस तरह से इस्लामिस्टों को कट्टर बना रहे हैं ये इस्लाम के अन्दर एक तरह का दीमक है क्योंकि इससे इस्लाम के अन्दर का एक समूह दूसरे के विरुद्ध खड़ा हो रहा है।

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