जब छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति आकर्षित हुई थी औरंगजेब की पुत्री

ये बात औरंगजेब को बहुत खटकी।

When Aurangzeb's daughter Zeb-un-Nissa was attracted to Chhatrapati Shivaji Maharaj

Source- TFI

​बादशाह औरंगजेब “आलमगीर” को हम उसके भारत को सम्पूर्ण रूप से इस्लामी बनाने की सनक एवं उसके अत्याचारों के लिए जानते हैं। उसकी क्रूरता का कोई अंत न था और उसने तो अपने परिवार तक को नहीं छोड़ा। परंतु वो कहते हैं न, जो औरों से न हारे, वो अपनों से हार जाए। औरंगजेब को वैसे तो कई लोगों ने धूल चटाई, परंतु जो सबसे ‘गहरे घाव’ उसे मिले, उसे अपनी ही ज्येष्ठ पुत्री Zeb-un-Nissa से मिले।

इस लेख में हम जानेंगे राजकुमारी जेबुन्निसा (Zeb-un-Nissa), जिसका सशक्त एवं रचनात्मक व्यक्तित्व ही उसके पिता औरंगजेब की आंखों में खटकता था, और जो छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व से भी काफी प्रभावित थी।

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औरंगजेब की प्रिय थी जेबुन्निसा

15 फरवरी 1638 में दौलताबाद के किले, जिसे अब देवगिरि के नाम से जाना जाता है, में जन्मी राजकुमारी जेबुन्निसा (Zeb-un-Nissa) एक समय पर औरंगजेब की प्रिय थी। हो भी क्यों न, वह उनकी पटरानी दिलरस बानू बेगम की सबसे बड़ी संतान थी। केवल तीन वर्ष की आयु में कुरान कंठस्थ कर ली थी और सात वर्ष की आयु में वह हाफिजा बन गई थीं।

इस अवसर को उनके पिता ने एक विशाल दावत और सार्वजनिक अवकाश के साथ मनाया था। राजकुमारी को उसके प्रसन्न पिता ने 30,000 स्वर्ण टुकड़े का इनाम भी दिया था। औरंगजेब ने अपनी जहीन पुत्री को अच्छी तरह से पढ़ाने के लिए उस्ताद बी को 30,000 स्वर्ण टुकड़ों की राजसी राशि का भुगतान किया।

जेबुन्निसा (Zeb-un-Nissa) ने मोहम्मद सईद अशरफ मज़ंधारानी नामक फारसी कवि से समय का विज्ञान भी सीखा। इसके अतिरिक्त राजकुमारी ने दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान, साहित्य सीखा और सुलेख में भी उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। यूं समझिए, राजकुमारी जेबुन्निसा बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी और वह सभी मुग़लों में उस समय सबसे शिक्षित भी थी।

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औरंगजेब के राज में कला के लिए कोई स्थान नहीं था

उसने कई विद्वानों को अच्छे वेतन पर अपनी बोली में साहित्यिक कार्यों का निर्माण करने या उसके लिए पांडुलिपियों की प्रतिलिपि बनाने के लिए रोजगार दिया। जेबुन्निसा (Zeb-un-Nissa) का पुस्तकालय काफी समृद्ध था, जिसमे कुरान, हिंदू और जैन ग्रंथों, ग्रीक पौराणिक कथाएं, फारसी ग्रंथों, विद्वान अल्बरूनी के यात्रा के अकाउन्ट, बाइबल के अनुवाद और अपने पूर्वजों के बारे में समकालीन लेखन शामिल थे। उनकी लाइब्रेरी ने प्रत्येक विषय पर साहित्यिक काम भी प्रदान किए, जैसे कानून, साहित्य, इतिहास और धर्मशास्त्र इत्यादि। औरंगजेब ने इन कार्यों में कम ही हस्तक्षेप किया, परंतु किसे पता था कि उसकी यही बेफिक्री जी का जंजाल बन जाएगी।

अब राजकुमारी केवल विदुषी ही नहीं, अपितु एक उत्कृष्ट कवयित्री एवं रचनाकार भी थी। परंतु कला के लिए औरंगजेब के राज में कोई स्थान नहीं था और जेबुन्निसा उन सभी विधाओं की ज्ञाता थी, जिनसे औरंगजेब को सख्त चिढ़ थी। ऐसे में उसने मखफी के उपनाम से कविताएं लिखनी प्रारंभ की।

जेबुन्निसा (Zeb-un-Nissa) का जीवन कष्टों से परिपूर्ण थी। उसे चाहने वाले बहुत थे, परंतु वह किसी के साथ चाहकर भी संबंध नहीं रख पाई, क्योंकि सबसे बड़ी बाधा कहीं न कहीं औरंगजेब का क्रोध एवं उसकी बर्बरता भी थी। परंतु धीरे धीरे ये बर्बरता उसके लिए असहनीय बन गई, और वह समय समय पर उसका विरोध भी करती।

उदाहरणत जब औरंगजेब के व्यवहार से तंग आकर शहज़ादा मोहम्मद अकबर ने विद्रोह किया और राजपूताने में शरण ली, तब जेबुन्निसा ने अपेक्षाओं के विपरीत जाकर उसका समर्थन किया। मोहम्मद अकबर को औरंगजेब के सबसे कट्टर शत्रुओं में सम्मिलित राणा राज सिंह, एवं मारवाड़ के संरक्षक राव दुर्गादास राठौड़, दोनों ने ही शरण दी।

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छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व की ओर आकृष्ट हुई

परंतु यही एक कारण नहीं था, जिसके पीछे जेबुन्निसा (Zeb-un-Nissa) औरंगजेब के प्रिय से उसके आंखों में शूल की भांति चुभने लगी। आगरा में एक व्यक्ति का आगमन मुगल वंश में भूचाल की भांति आया। पुरंदर में हुई सुलह के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज आगरा आए, जहां औरंगजेब ने स्वभाव अनुसार अपनी हेकड़ी दिखाने में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा। परंतु छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना अपमान स्वीकार्य नहीं था और उन्होंने औरंगजेब को चुनौती देते हुए मुगल दरबार का बहिष्कार किया, और इस कदम से राजकुमारी जेबुन्निसा भी प्रभावित हुई।

राजकुमारी जेबुन्निसा (Zeb-un-Nissa) छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व की ओर आकृष्ट हुई। परंतु ये आकर्षण सम्मान का था, या प्रेम का, ये आज भी वाद विवाद का विषय है। अब छत्रपति शिवाजी महाराज महिलाओं को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखते थे, और जब एक योद्धा ने राजे को प्रसन्न करने हेतु एक मुस्लिम शासक की पत्नी / पुत्री को उनके समक्ष ‘उपहार’ के रूप में पेश किया, तो उन्होंने उस योद्धा को फटकार भी लगाई और उस महिला को ससम्मान के साथ लौट जाने दिया।

ऐसे में वे तो कभी भी राजकुमारी जेबुन्निसा की ओर आकर्षित नहीं होते, परंतु इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि राजकुमारी जेबुन्निसा छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वभाव और उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थी, और ये बात भी औरंगजेब को बहुत खटकी। अंत में उसके विचारों एवं उसके स्वभाव से बौखलाकर औरंगजेब ने उसे भी बंदी बना लिया, और अपने जीवन के अंतिम 20 वर्ष उन्होंने शाहजहांनाबाद के सलीमगढ़ किले में एकांत में बिताए, जहां 1702 में उनका निधन हो गया। उनके लेखन को “दीवान ए मखफी” के नाम से संकलित कर 1724 में प्रकाशित किया गया, और ये कहना गलत नहीं होगा कि राजकुमारी जेबुन्निसा का व्यक्तित्व उनके जीवन की भांति एक अबूझ पहेली थी, और जिसके कारण जितना छत्रपति शिवाजी महाराज से वो भयभीत न रही हों, उससे भी अधिक औरंगजेब इससे भयभीत रही होंगी।

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