जब अंग्रेजी में बात कर रही थी नेहरू की बहन और स्टालिन ने कर दी घनघोर बेइज्जती

उसके बाद फिर विजयलक्ष्मी पंडित चुप हो गईं!

When Nehru's sister was talking in English and Stalin insulted her

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हम भारतीयों की एक बड़ी खराब आदत है: नकलची बंदर होने की। आजकल तो विदेश नीति से लेकर उत्पाद निर्माण में भी स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी जा रही है। परंतु एक समय वो भी था, जब हर जगह हमारे नेता और राजनयिक भारतीयता को दुतकारते थे, चाहे मौखिक हो या फिर सांस्कृतिक और इसके लिए नेहरू परिवार को एक कड़वा सबक भी मिला।

इस लेख में जानेंगे उस किस्से तो जब विजयालक्ष्मी पंडित की शोबाज़ी उन्हीं पर भारी पड़ गई और इसके लिए कैसे स्टालिन ने उन्हें जमकर धोया।

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“नारिवाद की कितनी बड़ी प्रणेता”

विजयालक्ष्मी पंडित के बारे में हमें विद्यालयों में इतना कुछ पढ़ाया जा चुका है कि नींद में भी बालक इतना तो जानते होंगे कि “नारिवाद की कितनी बड़ी प्रणेता थी” विजयालक्ष्मी पंडित! एक तो पिता बहुचर्चित बैरिस्टर मोतीलाल नेहरू, और बड़े भ्राता स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, फिर तो किस बात की कमी होती?

1950 में विजयालक्ष्मी पंडित को सोवियत संघ में भारत की ओर से राजदूत बनाकर भेजा गया था, और ये बात आज भी कांग्रेसी से लेकर वामपंथियों का समूह छाती ठोंककर बताता है, परंतु उसके बाद की एक घटना को ऐसे छुपाया जाता है, मानो कुछ हुआ ही नहीं? परंतु वो घटना थी क्या?

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जब भाषा पर उठे प्रश्न 

असल में एक रोज़ विजयालक्ष्मी पंडित ने सोवियत संघ के तत्कालीन तानाशाह, योसेफ़ स्टालिन से मिलने का आग्रह किया। अब विजयालक्ष्मी पंडित को अवसर तो मिल गया, परंतु उस मुलाकात के बारे में आज भी बताने से बड़े से बड़े बुद्धिजीवी कतराते हैं। कहते हैं कि जब विजयालक्ष्मी पंडित से योसेफ़ स्टालिन मिले, तो विजयालक्ष्मी ने उनका अभिनंदन किया। परंतु स्टालिन महोदय प्रसन्न नहीं थे।

“यह कौन सी भाषा है?” उन्होंने पूछा।

अनुवादक ने बताया, “अंग्रेज़ी है”

स्टालिन ने पूछा-“ये इंग्लैंड से आई है?”

अनुवादक ने बताया -“नहीं महोदय, ये भारत से आई है?”

विजयालक्ष्मी ने अपने बचाव में बोला, “नहीं सर, हमारी भाषा हिन्दी है, परंतु मुझे लगा अंग्रेज़ी में…”

स्टालिन ने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, “तो आपको अपनी संस्कृति हीन लगती है? जब आपकी भाषा अंग्रेज़ी नहीं है, तो आप क्यों उसे बोल रही हैं? ये कोई गर्व करने की बात है?”

अब स्टालिन कैसे थे, उन्होंने किस प्रकार अपनी जनता पर अत्याचार ढाए थे, ये तो वाद विवाद का विषय है, जो शायद अनंत काल तक चले, परंतु एक बात तो स्पष्ट थी : उन्हें पाश्चात्य सभ्यता से घोर घृणा थी, और कम्युनिस्ट होकर भी सोवियत संघ में रूसी भाषा एवं रूसी संस्कृति को प्राथमिकता थी। ऐसे में उन्हें विजयालक्ष्मी का “भूरे साब” वाला व्यवहार बिल्कुल नहीं भाया, और कहा जाता है कि उसके बाद दोनों ने फिर कभी वार्तालाप नहीं किया।

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राधाकृष्णन और स्टालिन

स्टालिन से चर्चित राजनयिक [एवं बाद में भारत के राष्ट्रपति] एस राधाकृष्णन भी मिले और उन्होंने भारत में राष्ट्रभाषा को लेकर बातचीत भी की। कहते हैं कि राधाकृष्णन के उत्तर के कारण रूस में कुछ समय ये चुटकुला भी चला है कि एक बार रूसी प्रीमियर भारत के दूत से मिले, तो उन्होंने पूछा उसकी भाषा क्या है? भारतीय दूत ने बोला कि मामला विचाराधीन है, परंतु तब तक अंग्रेज़ी से काम चलायें!

आज रूस एवं भारत में संबंध काफी सुदृढ़ है, परंतु एक समय ऐसा भी था जब यूरोपीय सभ्यता का अंधानुकरण करने के पीछे संसार भर में हमारी भद्द पिटती है। स्टालिन ने जो कुछ बोला, वो कुछ लोगों को अपमानजनक अवश्य प्रतीत हो सकता है, पर इस बात को भी नहीं अनदेखा किया जा सकता कि कैसे विजयालक्ष्मी पंडित ने विदेशी स्तर पर हमें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

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