क्यों गुनाहों का देवता हिंदी साहित्य की एक कालजयी रचना है?

'गुनाहों का देवता' बचकानी साहित्यिक कृति होने के बाद भी कालजयी कैसे बन गई?

गुनाहों का देवता

Source: Amar Ujala

कहते हैं कि ग्रैबियल गार्सिया मार्केज़ ने एकाकीपन के सौ वर्ष अर्थात ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलिटियूड’ लिखने के बाद दुनियाभर में 7 मकान खरीदे। धर्मवीर भारती ने गुनाहों का देवता लिखने के बाद संपत्ति तो बहुत ज्यादा नहीं बनाई लेकिन उन्होंने लोगों का प्यार बहुत कमाया।

गुनाहों का देवता को लेकर उत्साह

गुनाहों का देवता, हिंदी साहित्य की ऐसी किताब जिसे खरीदने के लिए किताबों की दुकान पर लाइनें लगती थी। ऐसी किताब जिसे तकिए के नीचे रखकर लड़के-लड़कियां सोया करते थे। ऐसी किताब जिसने हिंदी के प्रति दूसरी भाषा के लोगों को आकर्षित किया। ऐसी किताब जो साहित्यिक पैमानों पर बहुत खरी ना उतरने के बावजूद हिंदी की सबसे लोकप्रिय साहित्यिक कृति बन गई।

यह सही है कि गुनाहों का देवता, ‘शेखर: एक जीवनी नहीं’ है- गुनाहों का देवता, ‘अंतिम अरण्य’, ‘एक चिथड़ा सुख’ या फिर ‘नदी के द्वीप’ नहीं है- लेकिन यही तो इस किताब को विशेष बनाता है। धर्मवीर भारती की साहित्यिक तौर पर बचकानी किताब। जिस पर लोगों ने अथाह प्यार लुटाया।

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धर्मवीर भारती सदैव आश्चर्य से भर जाते कि आखिरकार गुनाहों का देवता किताब को इतना क्यों पसंद किया गया? धर्मवीर भारती ने ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ भी लिखी है- जो साहित्यिक मानकों के आधार पर देखें तो ‘गुनाहों का देवता’ से कहीं अच्छी है- लेकिन सूरज का सातवां घोड़ा कभी भी गुनाहों का देवता नहीं बन सकी।

गुनाहों का देवता कहानी क्या है?

तब के इलाहाबाद और आज के प्रयागराज को निश्चित तौर पर किसी ग्राम देवता ने ही बसाया होगा। ऐसे ग्राम देवता ने जो कहानियां सुनने का और सुनाने का आदी होगा तभी तो प्रयागराज से हिंदी की कहानियां भर-भरकर निकली।

धर्मवीर भारती कहते हैं, “प्रयागराज की बनावट, गठन, जिंदगी और रहन-सहन में कोई बंधे-बंधाए नियम नहीं, कहीं कोई कसाव नहीं, हर जगह एक स्वच्छन्द खुलाव, एक बिखरी हुई-सी अनियमितता।” तो इसी प्रयागराज से कहानी शुरू होती है।

चंदर और सुधा की कहानी- चंदर और पम्मी की कहानी- चंदर और बिनती की कहानी- आदर्श प्रेम की कहानी- त्याग और बलिदान की कहानी- प्रतीक्षा और पीड़ा की कहानी- प्रेम और बिछड़न की कहानी- देह और पवित्रता की कहानी- देवता और गुनहगार की कहानी।

इलाहाबाद में चंदर, अपने प्रोफेसर का प्रिय छात्र है- चंदर, प्रोफेसर के घर बेरोक-टोक आता जाता रहता है। प्रोफेसर चंदर को घर के सदस्य की भांति की देखते हैं। देखते-देखते प्रोफेसर की बेटी सुधा को चंदर से प्रेम हो जाता है।

यह सब कब होता है- दोनों नहीं समझ पाते हैं। सुधा चाहती है कि चंदर के साथ ही उसका पूरा जीवन बीते, लेकिन चंदर को देवता की तरह पूजने वाली सुधा को चंदर आदेश देता है कि उसे वहां शादी करनी चाहिए जहां उसके पिता ने रिश्ता देखा है।

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सुधा, अपने ‘देवता’ की इच्छा का सम्मान करते हुए दूसरी जगह शादी कर लेती है। इसके बाद शुरू होती है- प्रतीक्षा, पीड़ा, बिछड़न, तड़प, दर्द और प्रेम की कहानी। चंदर, बिना सुधा के दुख के अथाह सागर में डूब जाता है। उस तरफ सुधा बिना चंदर के जीवित लाश की तरह अपना जीवन काटने पर मज़बूर हो जाती है।

पम्मी का कहानी में प्रवेश

उस तरफ सुधा अपने पति को पति की तरह कभी स्वीकार नहीं कर पाती। इस तरफ चंदर भटकन के रास्ते पर निकल जाता है। तब उसे मिलती हैं एक तलाकशुदा एंग्लोइंडियन महिला- पम्मी। पम्मी, चंदर के साथ दैहिक आकर्षण में डूबने लगती है।

चंदर, उसकी तरफ आकर्षित होता है लेकिन वो इस पूरे वक्त दैहिक प्रेम और आदर्शवादी पवित्र प्रेम के द्वंद में उलझा रहता है। कुछ ही वक्त में चंदर को पम्मी का साथ चुभने लगता है। वो वहां से भाग आता है और सुधा के साथ धोखा करने का स्वयं को दोषी मान बैठता है और पम्मी से सदैव के लिए दूर हो जाता है।

कहानी अपने ढर्रे पर चलती रहती है। चंदर, स्वयं को व्यस्त रखने की सभी कोशिशें करता है। सुधा और पम्मी के अनुपस्थिति में बिनती धीरे-धीरे चंदर के जीवन में अपनी जगह बनाने की कोशिश करती है।

वक्त और आगे बढ़ जाता है। दुख-भरा जीवन जी रही सुधा बीमार रहने लगती है। बीमारी दिन पर दिन गहरी होती जाती है और एक दिन वो अथाह तड़प के साथ देह त्याग देती है।

“चंदर की आंखों के सितारे टूट चुके थे। तूफान खत्म हो चुका था। नाव किनारे पर आकर लग गयी थी- मल्लाह को चुपचाप रुपये देकर बिनती का हाथ थामकर चंदर ठोस धरती पर उतर पड़ा।

मुर्दा चाँदनी में दोनों छायाएँ मिलती-जुलती हुई चल दीं। गंगा की लहरों में बहता हुआ राख का साँप टूट-फूटकर बिखर चुका था और नदी फिर उसी तरह बहने लगी थी जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो।”

कुछ इस तरह किताब ख़त्म हो जाती है, लेकिन सुधा, चंदर और पम्मी के किरदार पाठकों के मन में बहुत देर तक खलबली मचाए रखते हैं। बहुत देर तक किताब पढ़ने वाले को छोड़ती नहीं है।

बहुत देर तक पाठक कहीं किसी दूसरी दुनिया में खोया रहता है। बस, यही तो सफलता होती है किसी भी किताब की- पाठकों को बांध लेना और उन्हें कहानी के साथ जोड़ लेना।  धर्मवीर भारती- इसमें पूरी तरह कामयाब होते हैं। यदि आपने गुनाहों का देवता अभी तक नहीं पढ़ी है तो अवश्य पढ़ें।

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