भारतीय इतिहास में कई ऐसे पल आए हैं, जो भुलाये नहीं भूले जाते। ऐसा ही एक पल 2001 में आया था, जब क्रिकेट में एक मैच ने क्रिकेट को सदैव के लिए बदल दिया। उस दिन के बाद से न भारतीय क्रिकेट नॉर्मल रही, और ही भारतीय क्रिकेट टीम।
इस लेख में आपको ले जायेंगे उस मैच की ओर, जिसने भारतीय क्रिकेट में जीत की अभिलाषा जगाई।
मैच फिक्सिंग का कलंक और अजेय ऑस्ट्रेलिया
2001 में ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम भारत यात्रा पर आई। परंतु ये यात्रा कम, और ऑस्ट्रेलिया का शक्ति प्रदर्शन अधिक था। ये टीम पिछले 15 टेस्ट में से एक भी नहीं हारी, और उनके लिए बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी प्राप्त करना मानो दुकान से कैंडी खरीदने जितना सरल था। हो भी क्यों न, इस टीम में स्टीव वॉ से लेकर रिकी पोंटिंग, जेसन गिलेसपी जैसे धुरंधर शामिल थे, जिन्होंने 1999 में क्रिकेट विश्व कप जीतकर तहलका मचाया था।
इसके अलावा भारतीय क्रिकेट में कुछ भी नॉर्मल नहीं था। एक वर्ष पूर्व ही मैच फिक्सिंग प्रकरण ने पूरे क्रिकेट जगत को झकझोर के रख दिया था। भारतीय क्रिकेटरों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा था, और मोहम्मद अज़हरुद्दीन को हटाकर धाकड़ बल्लेबाज़ सौरव गांगुली को क्रिकेट टीम की कमान सौंपी गई थी।
परंतु सौरव ने पिछले कुछ सीरीज़ में कोई खास प्रदर्शन नहीं किया था, और पहले टेस्ट में भी ये सिलसिला जारी रहा। ऑस्ट्रेलिया ने पहला टेस्ट बिना किसी समस्या के जीता, और अब कलकत्ता में होने वाला दूसरा टेस्ट जीतकर एक और सीरीज़ अपने नाम करने वाले थे।
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फॉलो ऑन : आपदा में अवसर….
अब 11 मार्च 2001 को कलकत्ता में दूसरा टेस्ट प्रारंभ हुआ। ऑस्ट्रेलिया का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था। उन्होंने इसे सिद्ध करते हुए 445 का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया, और जवाब में भारत केवल 171 पर ऑल आउट हो गई।
अब ऑस्ट्रेलिया ने भारत को फॉलो ऑन करने के लिए बाध्य किया, और उसमें भी भारत की स्थिति बहुत नाजुक थी। ऐसा लग रहा था कि ऑस्ट्रेलिया लगातार 17 वीं बार जीतने वाला है। पर तभी पहली पारी में 59 रन बनाने वाले वीवीएस लक्षमण ने राहुल द्रविड़ तक पारी संभाली। विराट कोहली के जिस संवाद पर आज भी मीम्स बनते हैं, उसकी नींव इन्होंने ही रखी। पूरा दिन इन लोगों ने ऑस्ट्रेलिया के हर गेंदबाज़ की धुनाई की, और अंत में जो भारत 150 से भी अधिक रन से हारने वाली थी, वही भारत 657 के विशाल स्कोर पर पारी घोषित कर दी।
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हरभजन और सचिन तेंदुलकर का तहलका
तो ऑस्ट्रेलिया के पास अब 384 रन का लक्ष्य था। परंतु ऑस्ट्रेलिया को कोई समस्या नहीं थी। 106 पर दो विकेट गिरने के बाद भी ऑस्ट्रेलिया लक्ष्य की ओर बड़ी आसानी से बढ़ रही थी। पर फिर आए दो गेंदबाज़, जिन्होंने मैच की दशा और दिशा ही बदल दी।
एक थे हरभजन सिंह, जिन्हें टीम इंडिया में आए अधिक समय नहीं हुआ था, और जिन्हे इस टेस्ट से पूर्व कोई दमदार क्रिकेटर मानता भी नहीं था। दूसरी ओर थे सचिन तेंदुलकर, जिन्हे “क्रिकेट का भगवान” माना जाता था, परंतु कुछ समय से आउट ऑफ फॉर्म चल रहे थे। अब हरभजन ने पहली पारी में हैट्रिक सहित 7 विकेट चटकाए, परंतु इस पारी में उन्होंने जो त्राहिमाम मचाया, उससे ऑस्ट्रेलिया उबर ही नहीं पाया। वॉ बंधुओं [मार्क और स्टीव] के विकेट के साथ साथ उन्होंने 6 विकेट चटका दिए, और सचिन तेंदुलकर जो कमाल बल्ले से नहीं दिखा पाए, वो अपनी ‘गुगली’ से दिखाते हुए 3 महत्वपूर्ण विकेट चटकाए, और ऑस्ट्रेलिया केवल 212 पर ऑल आउट हो गया।
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न ये कोई विश्व कप का फाइनल था, और न ही ये जीवन मरण का प्रश्न, परंतु उस मैच ने भारतीय क्रिकेट की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी। इससे पूर्व भारत खाली अपना सम्मान बचाने के लिए खेलती थी, परंतु ऑस्ट्रेलिया जैसी शक्तिशाली टीम को इतनी बुरी तरह हराकर उसे समझ में आया कि विजय का मूल्य क्या होता है। उस दिन टीम इंडिया को पता चला कि अपना दिन आने पर विश्व चैंपियन भी अजेय नहीं, और उस दिन के बाद से सौरव गांगुली ने मुड़कर नहीं दिखा, और उन्होंने वो टीम बनाई, जिसकी विरासत को आज भी भारतीय क्रिकेट सहेज के रखा है। वह मैच नहीं, भारतीय क्रिकेट में एक नये सवेरे का आगमन था।
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