पूरा विश्व जानता है कि दूसरे देशों की जमीन हड़पने के लिए कैसे चालबाज ड्रैगन प्रपंचों का उपयोग करता है। आए दिन भारत और चीन के सैनिकों के बीच सीमाई इलाकों में टकराव के समाचार आते रहते हैं । यही कारण है कि अब भारत चीन को सीमाई इलाकों में सबक सिखाने के लिए अपने आपको को लगातार शक्तिशाली बना रहा है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत सरकार ने एक ओर बड़ा कदम उठाया है।
भारत ने अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा के पास अपने अब तक के सबसे बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट दिबांग बहुउद्देशीय परियोजना को मंजूरी दे दी है। दिबांग जलविद्युत परियोजना अरुणाचल प्रदेश के निचली दिबांग घाटी जिले में दिबांग नदी पर बनाई जा रही है। बता दें कि दिबांग नदी, जो अरुणाचल प्रदेश में विवादित भारत-चीन सीमा के भारतीय हिस्से से निकलती है। ऐसे में भारत सरकार का ये निर्णयचीन को एक कड़ा संदेश के रुप में देखा जा रहा है।
अब तक की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है डीएमपी
दिबांग बहुउद्देश्यीय परियोजना देश की अब तक की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने अरूणाचल प्रदेश में दिबांग बहुउद्देश्यीय परियोजना को मंजूरी दी। परियोजना की कुल अनुमानित लागत 28,080.35 करोड़ रुपये है।
इसमें 3,974.95 करोड़ रुपये का आईडीसी (निर्माण के दौरान ब्याज) और वित्तीय शुल्क (एफसी) शामिल हैं। परियोजना के निर्माण की अनुमानित अवधि सरकार की मंजूरी प्राप्ति के बाद नौ साल होगी।
मनमोहन सरकार में रखी गई थी परियोजना की आधारशिला
बता दें कि इस परियोजना की आधारशिला डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल वर्ष 2008 में रखी गई थी। इसके बाद यह परियोजना मुसीबत में पड़ गई क्योंकि इसे अरुणाचल प्रदेश, असम और भारत के अन्य हिस्सों में स्थानीय समुदायों, भूकंप विज्ञानियों और पर्यावरणविदों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। विरोध प्रदर्शनों ने सरकार को परियोजना को रोकने के लिए विवश किया।
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जहां भारत सरकार ने दिबांग जलविद्युत परियोजना को हरी झंडी देने के लिए कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों द्वारा उठाई गई आपत्तियों और चिंता के मुद्दों को समझते हुए अब एक बार फिर इस योजना को सुचारु रूप से शुरु करने के निर्णय सरकार ने लिया है। जो सीमाई इलाकों में शक्तिशाली तो बनाएगा ही साथ बाढ़ जैसी समस्या से निपटने में भी सहायता मिलेगी।
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