“जो रियासतें पाकिस्तान के साथ मिल रही हैं, उन्हे आपसे क्या मिलेगा?”
“यॉर हाइनेस, मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। मैं उन्हे हिंदुस्तान से कहीं ज़्यादा सहूलियत देने के लिए तैयार हूँ, एंड यॉर हाइनेस मैं ये सादे कागज़ पर अपने दस्तखत कर रहा हूँ। पाकिस्तान में शामिल होने के लिए आपकी जो भी शर्तें हो, वो आप बेझिझक इसमें लिखिए!”
ये वार्तालाप नई दिल्ली के एक विशेष भवन में चल रहा था, स्वतंत्रता से कुछ 9 से 10 दिन पूर्व। अब अगर ये वार्ता सफल होती, तो वर्तमान राजस्थान का अधिकांश भाग भारत में नहीं होता।
इस लेख में पढिये इतिहास के उस प्रसंग से, जब एक राजा की ज़िद लगभग जोधपुर प्रांत को पाकिस्तान का भाग बना चुकी थी। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
मारवाड़ का गौरव जोधपुर
जब देश स्वतंत्र होने वाला था, तब लगभग 565 रियासतें भी स्वतंत्र होने वाली थी, और इसमें अभी पाकिस्तान में जाने वाले भाग तो जोड़े भी नहीं गए थे। ऐसे में इन्हे एक सूत्र में पिरोकर भारत का भाग बनाने का भार सरदार वल्लभभाई पटेल के कंधों पर आ पड़ा, जिन्होंने इस कार्य के लिए प्रख्यात ICS अफसर, एवं तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबैटन के विश्वासपात्र, वी पी मेनन को अपना सचिव नियुक्त किया।
और पढ़ें: बिंबिसार की महानता के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे, उनका यह पक्ष भी जान लीजिए
परंतु ये काम प्रारंभ से ही सरल नहीं था। भले ही लॉर्ड माउंटबैटन ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए भारत सरकार का पक्ष लिया, परंतु अधिकतम रियासत इन्हे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं थी। इस बीच त्रावणकोर से लेकर कश्मीर तक कई ऐसे प्रांत थे, जो स्वतंत्र राष्ट्र बनना चाहते थे। ऐसा ही एक प्रांत था जोधपुर स्टेट, जो पूर्व में मारवाड़ के नाम से प्रसिद्ध था, और जो उस समय राजपूताना क्षेत्र में सबसे विशाल प्रांत था। यहीं से दुर्गादास राठौड़ जैसे योद्धा भी निकले, जिन्होंने आयुपर्यंत विदेशी आक्रान्ताओं से लोहा लिया।
अलग ही प्रवृत्ति के थे महाराजा हनवंत सिंह
परंतु ब्रिटिश राज आते आते मारवाड़ का रंग रूप बदल चुका था। अब वह पहले जितना सशक्त और सुदृढ़ नहीं था। इसी बीच 1947 में महाराजा उमेद सिंह राठौड़ का असामयिक निधन हो गया, और राजपाट का भार हनवंत सिंह पर आ गया।
परंतु हनवंत सिंह शांत चित्त के व्यक्ति नहीं थे। अधीरता उनके रग रग में बसी हुई थी। वे पोलो के उत्कृष्ट खिलाड़ी थे, परंतु उनका निजी जीवन विवादों से परिपूर्ण था। उन्होंने उस समय की चर्चित अभिनेत्री जुबैदा से प्रेम विवाह भी किया, जिसपर वर्षों बाद श्याम बेनेगल ने वर्षों बाद 2001 में “जुबैदा” बनाई थी।
ऐसे में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो हनवंत सिंह को राजस्व की चिंता होने लगी और वे इतने अधीर हो गए कि उन्होंने जनता की परवाह किये बिना ही पाकिस्तानी प्रशासन से बातचीत करना प्रारंभ कर दिया, और एक समय प्रतीत हो रहा था कि जोधपुर प्रांत पाकिस्तान से जुड़कर ही दम लेगा।
यहीं से उदय हुआ “लौहपुरुष” सरदार पटेल का….
ऐसे में अगर जोधपुर प्रांत वास्तव में पाकिस्तान का हिस्सा बनता, तो कल्पना कीजिए आने वाले युद्ध में भारत की स्थिति कैसी होती? इसका आभास शायद सरदार पटेल को बहुत पूर्व ही हो चुका था। इसीलिए उन्होंने महाराजा हनवंत सिंह के साथ विशेष बैठक की, और उन्हे अपनी जनता के प्रति अपने दायित्व का भी स्मरण कराया। उन्होने जोधपुर को कच्छ के पोर्ट से जोड़ने का आश्वासन दिया
और पढ़ें: इस पूरे विश्व में कभी भी- कोई भी बीरबल नहीं था, जानिए, कैसे और क्यों गढ़ा गया ‘बीरबल का किरदार’?
हनवंत सिंह जोधपुर के विलीनीकरण के लिए मान गए, पर कहीं न कहीं उनके अहं को चोट पहुंची थी। उनकी बौखलाहट उस मीटिंग में निकली, जहां लॉर्ड माउंटबैटन और वीपी मेनन जोधपुर को आधिकारिक रूप से भारत में विलय कराने हेतु एकत्रित हुए थे।
वीपी मेनन बताते हैं कि कैसे क्रोध में आकर हनवंत सिंह ने उन्ही पर अपनी हस्तशिल्पित पिस्तौल तान दी थी, परंतु यह कुंठा नहीं, ऐसा क्रोध था जिसकी न कोई दशा थी, न दिशा। अंत में हनवंत सिंह ने जोधपुर को भारत में मिलाने का निर्णय स्पष्ट किया, और सितंबर 1947 तक जोधपुर का विलय सुनिश्चित किया। यहीं से सरदार पटेल की “लौहपुरुष” वाली छवि उभर के आई, जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.