कुछ समय पूर्व जब पीएम मोदी अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष से मिले थे, तो उन्होंने एक बात स्पष्ट की थी, कि ऑस्ट्रेलिया में भारतवंशियों पर खालिस्तान के बढ़ते उपद्रव पर लगाम लगाया जाए। अब संयोग देखिए, कुछ ही दिनों बाद भारत में पंजाब पुलिस ने इसी उग्रवाद से संबंधित अमृतपाल सिंह के विरुद्ध ताबड़तोड़ कार्रवाई प्रारंभ कर दी है, जिसके कारण वह अब भूमिगत होने को विवश है
परंतु अमृतपाल सिंह अकेला नहीं है। उसके आका भी अब मुसीबत में फंस चुके हैं। इस लेख पढिये कि कैसे पीएम मोदी की एक “चेतावनी” पर अधिकतम देश भारत विरोधी तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई में जुट गए हैं। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
उग्रवाद “स्वीकार्य नहीं”!
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विगत कुछ समय से खालिस्तानी चरमपंथी अमृतपाल सिंह ने पंजाब के साथ केन्द्रीय प्रशासन की नाक में दम कर दिया था। परंतु जिस प्रकार से केंद्र सरकार और पंजाब सरकार की संयुक्त कार्रवाई से अमृतपाल दर दर भटकने को विवश हुआ है, उसे भी हम अनदेखा नहीं करते।
इतना ही नहीं, जिस प्रकार से अधितकम देश भारत की अखंडता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन में खडा है, उससे एक संदेश तो स्पष्ट है की भारत किसी भी स्थिति में उग्रवाद देश द्रोही तत्व को “स्वीकार नहीं” करेगा!
अमृतपाल सिंह पर हो रही कार्रवाई के विरुद्ध खालिस्तानी उग्रवादियों ने विरोध प्रदर्शन के नाम पर यूके से लेकर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यहाँ तक कि कनाडा में खूब उत्पात मचाया। इसी परिप्रेक्ष्य में लंदन में स्थित भारतीय उच्चायोग के समक्ष खालिस्तानियों ने 19 मार्च को खूब उपद्रव मचाया था।
यहाँ लगाए गए तिरंगे को हटा कर खालिस्तानियों ने इसकी जगह पीले रंग का दूसरा झंडा लगा दिया था। इस घटना के पीछे अवतार सिंह खंडा नाम के व्यक्ति का हाथ बताया जा रहा है। जिसे लंदन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
परंतु अवतार सिंह खंडा को हिरासत में लेने के बाद जो तथ्य सामने आए हैं, उससे स्पष्ट होता है कि ये कोई आम व्यक्ति नहीं है। गिरफ्तारी के बाद जाँच और पूछताछ में कई खुलासे हुए हैं। पता चला है कि खंडा प्रतिबंधित ग्रुप बब्बर खालसा इंटरनेशल (BKI) का मेंबर है। इतना ही नहीं ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का नीव रखने वाले दीप सिद्धू के पीछे भी उसका दिमाग बताया जा रहा है।
जाँच एजेंसियाँ सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई ऐसी कई वीडियो की जाँच कर रही हैं जिसमें अवतार सिंह खंडा दीप सिद्धू की मौत के बाद उसके विरासत को आगे बढ़ाने की बात कर रहा है। इसके अतिरिक्त ये भी सामने आया कि अवतार सिंह एक खालिस्तानी खानदान से आता है, जहां उसके पिता स्वयं खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के सक्रिय सदस्य रह चुके हैं।
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जब सीधी उंगली से घी नहीं निकले, तो….
परंतु यूके अकेला नहीं है। जहां जहां भी खालिस्तानियों ने उपद्रव किया है, वहाँ वहाँ प्रवासी भारतीयों ने प्रत्युत्तर में खूब विरोध प्रदर्शन किये हैं, और स्पष्ट किया है कि केवल मौखिक आश्वासन से कुछ नहीं होगा। यहीं तक कि अधिकांश सिक्खों ने यदि प्रत्यक्ष रूप से नहीं, तो अप्रत्यक्ष रूप से खालिस्तानी उग्रवादियों से कन्नी काटते हुए स्पष्ट किया है कि हिंसा किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं।
जहाँ लंदन में खालिस्तानियों के खिलाफ भारतीय प्रवासी सड़क पर उतर आए हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में भी सिख नेताओं ने भारतीय दूतावासों पर हमले की निंदा की है। लंदन में भारतीय हाई कमीशन के सामने बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय समाज का जुटान हुआ। इन्होने माँग की कि लंदन के मेयर सादिक खान और स्थानीय प्रशासन दोषियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करे।
भारतीय प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जिस तरह खालिस्तानियों ने भारतीय दूतावास पर हमला किया, उसके बाद उनका कर्तव्य था कि वो सड़क पर उतरें। उन्होंने कहा कि भारतीय ध्वज के अपमान के प्रति आपत्ति जताना और अपने आक्रोश को प्रकट करना आवश्यक था।
उन्होंने कहा कि तिरंगे के लिए हम सब एक हैं। भारत ने भी ब्रिटेन के राजदूत को तलब कर इस घटना पर आपत्ति जताई थी।
इसी तरह सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले की निंदा वहाँ के सिख नेताओं ने भी की है। उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन तोड़फोड़ का नहीं। सिख नेता जसदीप सिंह ने कहा कि किसी भी रूप में हिंसा स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने लंदन की घटना की भी निंदा की और कहा कि 10 लाख में से मुट्ठी भर सिखों ने ही ये सब किया और अमेरिका-कनाडा में खालिस्तानियों के प्रभाव वाली बात मीडिया बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा है।
जसदीप सिंह गलत भी नहीं है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तानियों को किस प्रकार से प्रत्युत्तर दिया जाता है, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इनके “रिफ्रेन्डम 2020” में भाग लेने मात्र 100 लोग ही उपस्थित हुए।
उधर, सिख नेता बालगेन्द्र सिंह शमी ने भी कहा कि अमेरिका-इंग्लैंड में भारतीय दूतावास पर हमले की वो निंदा करते हैं। उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार का प्रयोग किया जाना चाहिए, लेकिन एकदम शांतिपूर्ण ढंग से। भारतीय समाज पहले ही FBI और अन्य उच्च-स्तरीय एजेंसियों से मामले की जाँच की माँग की है। उधर भारत में अमृतपाल सिंह अभी भी फरार है।
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कनाडा का क्या होगा?
शायद कहीं न कहीं इन देशों को पता है कि भारत की नीति अब ऐसी हो चुकी है, कि यदि सीधी उंगली से घी न निकले, तो डिब्बा ही पलट दो, यानि अगर अन्य देश भारत की अखंडता के साथ छेड़छाड़ करने वालों को बढ़ावा देंगे, तो उनसे निपटने के लिए भारत के पास “अपने तरीके हैं”, जैसा उन्होंने दिल्ली में स्थित ब्रिटिश उच्चायोग के साथ किया।
परंतु ऐसे में अब प्रश्न ये उठता है : जो खालिस्तानियों का अब भी साथ दे रहे हैं, उनका क्या होगा, जैसे कनाडा? जब से अमृतपाल के विरुद्ध पंजाब पुलिस ने एक्शन लिया है, तब से खालिस्तान समर्थक एवं कैनेडियन सांसद जगमीत सिंह के पेट में कुछ विशेष दर्द हो रहा है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार से कनाडा में खालिस्तानी उग्रवादियों का प्रभाव अब भी व्याप्त हो रहा है, जिसके पीछे भारतीय राजदूत को कनाडा में अपना एक कार्यक्रम रद्द करना पड़ा, उसका प्रतिकूल असर भी कनाडा और भारत के संबंधों पर पड़ सकता है।
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अब अमृतपाल कब हिरासत में होगा, ये तो अलग ही शोध का विषय है, परंतु जिस प्रकार से टूलकिट गैंग बिलबिला रही है, उससे एक बात तो प्रत्यक्ष है : संसार का कोई भी कोना हो, भारत का अहित चाहने वालों के लिए कोई जगह नहीं होंगी!
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