Bholaa movie review: देवगन ही देवगन है, भोला फिल्म नही भूचाल है

पठान प्रेमी” क्रिटिक्स कृपया दूर रहें....

“एक्शन से भरपूर है, पर फिल्म में वो बात नहीं है….”

“जनता के लिए बनी है, परंतु इसे 3डी में नहीं आना चाहिए था….”

“अजय और तब्बू ने अच्छा काम किया, बाप बेटी का संबंध बढ़िया दिखाया, पर ओरिजिनल” ….

Bholaa movie review: भोला बॉक्स ऑफिस पर सफल हो या नहीं, परंतु इसे एक बात के लिए विशेष रूप से प्रशंसा करनी पड़ेगी, कि इसने कथित क्रिटिक्स मंडली की पोल बुरी तरह खोल दी। जो लोग “पठान” जैसी फिल्म पे स्टार्स ही स्टार्स लुटाते हैं, और “गैंग्स ऑफ वासेपुर” की प्रशंसा भी नहीं करते, उनकी धज्जियां उड़ा के रख दी है।

इस लेख में पढिये फिल्म “भोला” की समीक्षा (Bholaa movie review).

Bholaa movie review: कथा क्या है?

अजय देवगन द्वारा निर्देशित ये फिल्म तमिल फिल्म “कैथी” का आधिकारिक रीमेक है। फिल्म का परिवेश पूर्वांचल में सेट है, जहां एसपी डायना जोसेफ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण ड्रग रैकेट का खुलासा किया है, और वहाँ की “सीका गैंग” इसका हर हाल में प्रतिशोध लेना चाहती है।

इसी बीच भोला नामक कैदी 10 वर्ष बाद जेल से रिहा होता है, और वह अपनी बेटी से मिलने के लिए लालायित होता है। परंतु वह कैसे इस प्रकरण में फँसता है, और क्या वह अपनी बेटी से मिल पाता है कि नहीं, “भोला” इसी बारे में है।

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Bholaa movie review : मनोरंजन की शत प्रतिशत गारंटी

जब अजय देवगन ने कहा था कि ये फिल्म “कैथी” से अलग होगी, तो कई लोगों ने इन्हे हल्के में लेते हुए इनका उपहास उड़ाया था। परंतु “भोला” में इन्होंने दो बातें स्पष्ट सिद्ध की : एक तो इन्हे कमतर आँकने की भूल नहीं करनी चाहिए, और दूसरा ये कि निर्देशन के क्षेत्र में ये लंबी रेस के घोड़े सिद्ध हो रहे हैं।

ये फिल्म कैथी से कितनी अलग है, ये बताने के लिए तीन बिन्दु पर्याप्त है : फिल्म का लोकेशन, तब्बू का किरदार, एवं अभिषेक बच्चन। “कैथी” और “भोला” में उतना ही अंतर है, जितना खिचड़ी और बिसीबेले भात में। दोनों की मूल सामग्री लगभग समान है, बस एक में तड़के और मसालों को अधिक प्राथमिकता मिली है, और यही बात “भोला” के साथ भी फिट बैठती है।

इसके अतिरिक्त जिस प्रकार से तब्बू ने एसपी डायना जोसेफ का मूल किरदार निभाया है, वो भी स्पष्ट तौर पर इस फिल्म को “कैथी” से अलग बनाती है। यहाँ मानवीय संवेदनाओं एवं एक्शन को काफी महत्व दिया गया है।

अगर बेसिक्स ही सही न हो, तो फिर आप सफलता अर्जित करने की आशा भी कैसे कर सकते हैं?

भोला ने दावा किया था कि वह एक विशुद्ध एक्शन एंटरटेनर होंगी, और वही हुआ। अजय देवगन की इसके लिए जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। तब्बू एवं विनीत कुमार ने भी अपने भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है। लेकिन जो लोग आपको सबसे अधिक चकित करेंगे, वह है अश्वत्थामा उर्फ आशु के रूप में दीपक डोबरियाल एवं हवलदार अंगद यादव के रूप में संजय मिश्रा।

दोनों ही कॉमेडी के जाने माने खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन दोनों ने इसके ठीक विपरीत काम करते हुए अपनी जो छाप छोड़ी है, उसके लिए जितना भी लिखें, कम रहेगा। अभी तो अभिषेक बच्चन का परफ़ॉर्मेंस बाकी है, जिन्होंने मात्र दो दृश्यों में अपनी अमिट छाप छोड़ दी।

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फर्जी क्रिटिक्स से दूर ही रहें

हमने पहले ही पूर्वानुमान लगाया था कि “भोला” को बहुत अधिक सकारात्मक रिव्यू नहीं मिलेंगे, और हुआ भी वही।

लेकिन जिस आधार पर आलोचना की गई है, उसपे न जाने क्यों “चुप” का डैनी गोम्स याद आ जाता है।

अगर आपको फिल्म की सेटिंग, फिल्म के विचारों से कोई समस्या है, या इस बात से समस्या है कि फिल्म का स्क्रीनप्ले अच्छा नहीं था, तो समझ में आता है।  परंतु “भोला” की जिन आधारों पर आलोचना की गई है, उन्ही आधारों पर अधिकतम आलोचकों ने “पठान” एवं “ब्रह्मास्त्र” जैसी फिल्मों के लिए तो मानो राह में फूल बिछाए थे।

कुछ ने तो यहाँ तक दावा किया कि “भोला” का एक्शन बढ़िया नहीं था, और वह “पठान” जितना दमदार नहीं था। ऐसे ही अवसरों पर अंदर का “उदय शेट्टी” जाग पड़ता है, आगे आप समझदार हैं।

तो क्या ये फिल्म मास्टरपीस है? नहीं, इस फिल्म में कुछ ऐसी कमियाँ भी है, जो अजय देवगन के अथक प्रयासों के बाद भी नहीं छुप सकी। प्रथम हाफ में कुछ समय पटकथा यानि स्क्रीनप्ले कुछ कुछ स्थान पर भटक रही थी। अगर आइटम सॉन्ग न रहता, तो स्क्रिप्ट में थोड़ा और कसाव आता। इसके अतिरिक्त कुछ संवाद ऐसे भी थे, जो बीजीएम के शोर में दब से गए।

परंतु अगर “भोला” को एक शब्द में परिभाषित करें तो ये भूचाल है। हाँ, “कैथी” प्रेमियों के अनुसार ये थोड़ी और बेहतर हो सकती थी, जिनमें से एक मैं भी हूँ, परंतु मनोरंजन एवं भावनाओं के लिहाज से इस फिल्म ने बिल्कुल निराश नहीं किया। ये एक विशुद्ध मसाला फिल्म है, जिसे आप निस्संकोच सिनेमा हॉल में देख सकते हैं।

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