वे बोलते थे कि दुरई सिंगम को कोई नहीं पछाड़ सकता, तो आ गए इंस्पेक्टर बाजीराव सिंघम!
वे कहते थे कि जॉर्ज कुट्टी का वर्चस्व सर्वत्र है, पर सिक्का तो आज भी विजय सलगांवकर का चलता है!
अब कहते हैं कि “कैथी” को कोई छू भी नहीं सका, अब समझदार के लिए तो संकेत ही पर्याप्त है!
Bholaa trailer review: इस लेख मे आप जानेंगे कि क्यों “भोला” “कैथी” से अलग और बेहतर होंगी, और क्यों अजय देवगन को कमतर आँकने की भूल एक बार फिर महंगी पड़ सकती है। तो अविलंब आरंभ करते हैं। प्रस्तुत लेख में हम Bholaa trailer का review करने जा रहे है और जानेंगे इस फिल्म से जुड़े तथ्यों के बारें में।
तो आखिरकार “भोला” का बहुप्रतीक्षित ट्रेलर आ चुका है, और यह स्ट्रीम होने के पहले ही कुछ घंटों में सुर्खियां बटोर चुका है। ये फिल्म “कैथी” का आधिकारिक हिन्दी संस्करण है, जिसे लोकेश कनागराज ने लिखा और निर्देशित किया, और जो अब “लोकी यूनिवर्स” का भाग बन चुका है।
Bholaa trailer review: अजय देवगन शीर्षक भूमिका में है
इस फिल्म में अजय देवगन शीर्षक भूमिका में है, और उनका साथ देने आई हैं तब्बू, जो इससे पूर्व “दृश्यम” के दोनों संस्करणों में अजय देवगन के साथ प्रमुख रोल में थी। मूल फिल्म की भांति ये फिल्म भी एक ऐसे कैदी के बारे में है, जो अभी अभी जेल से निकला है, और वर्षों से जिस लड़की से मिलने से वंचित किया गया था, उसे देखने भर को आतुर है।
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परंतु यहीं पर “भोला” और “कैथी” में समानता खत्म हो जाती है, क्योंकि इसके बाद जो होता है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि “भोला” “सिंघम” और “दृश्यम” की भांति फ्रेम टू फ्रेम रीमेक नहीं है, और तो और, इसके करता धर्ता स्वयं अजय देवगन है, जो इस फिल्म को निर्देशित भी कर रहे हैं। जैसा कि पहले भी कहा था, “भोला” और “कैथी”, एक ही विचार से प्रभावित दो अलग अलग फिल्म हैं, और दोनों को एक लाठी से हाँकने में आप बुद्धिमान नहीं सिद्ध होंगे।
ऐसा इसलिए क्योंकि मूल फिल्म की तुलना में इस फिल्म में कई चीज़ें अलग हैं। सर्वप्रथम तो मूल स्टारकास्ट में ही बदलाव है, जहां एसटीएफ का नेतृत्व एसपी डायना के हाथ में है, जिसकी भूमिका तब्बू निभा रही हैं, और इनके हाव भाव से ही देखकर लगता है कि इस बार भी “दृश्यम” की भांति अजय और तब्बू में जबरदस्त टक्कर देखने को मिलेगी।
अजय और तब्बू में जबरदस्त टक्कर देखने को मिलेगी
इसके अतिरिक्त कई प्रशंसकों को चिंता थी कि जब हीरो अजय देवगन है, तो उन्हे विलेन के रूप में टक्कर कौन और कैसे देगा? परंतु दीपक डोबरियाल की जो भी झलकियां देखने को मिली है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि “भोला” पटकथा को हल्के में नहीं लेने वाली। साथ में गजराज राव का अभिनय भी हमें देखने को मिलेगा, और यदि सब कुछ सही रहा, तो एक ऐसा सरप्राइज़ इस फिल्म में छुपा है, जिसे देखकर आप आश्चर्यचकित रह जाएँ, और यहाँ अमाला पॉल या संजय मिश्रा की बात नहीं हो रही, जबकि वे भी अपने अपने रोल में जँच रहे हैं।
अब आते हैं उस आक्षेप पे, जो अजय देवगन को “सिंघम” एवं “दृश्यम” के साथ भी सुनने को मिला है : ओरिजिनल तो ओरिजिनल है, उसे कैसे पछाड़ोगे? देखिए, “कैथी” हमने भी देखी है, और उसकी सराहना भी करते हैं, परंतु “भोला” की बात ही कुछ अलग है।
केवल इसलिए नहीं क्योंकि इस फिल्म में अजय देवगन अपनी शिव भक्ति को ज़ोरों शोरों से दिखाएंगे, अपितु इसलिए क्योंकि इसके इफ़ेक्ट्स से लेकर इसके कथावाचन में कई ऐसे बिन्दु है, जो मूल फिल्म से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते। उदाहरण के लिए किसी ने सोचा था कि “आज फिर जीने की तमन्ना है” एक धमाकेदार BGM के साथ प्रस्तुत किया जा सकता है.
अगर
लेखन की गहराई देखनी और समझनी हो तो इन संवादों को ध्यान से देखिए, “ये धरती बंजर होके भी बुज़दिल नहीं पैदा करती है” या फिर “लड़ाइयाँ हौसलों से जीती जाती है, संख्या, बल और हथियारों से नहीं!”
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अब बताइए, जब ये संवाद सिनेमा हॉल में गूँजेगे, तो फिर आपकी सीटियाँ या तीलियाँ बजाने का मन करेगा कि नहीं? अगर नहीं करता है, तो ये तो अलग विषय है, परंतु ऐसे संवादों के पीछे लोग तो ट्रक भरभरके पूर्व में सिनेमा हॉल आते थे, फिर “भोला” के लिए क्यों नहीं आएंगे?
इस फिल्म को अगर कुछ पीछे खींच सकती है, तो सिर्फ इस फिल्म की कथा और अभिनेताओं का प्रदर्शन। परंतु इसके लिए तो 30 मार्च की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। ऐसे में या तो “भोला” मुंह के बल गिरेगी, या फिर ऐसा शिखर प्राप्त करेगी कि कथित विश्लेषक और आलोचक भी देखते ही रह जाएंगे, बीच का कुछ नहीं। क्या आप तैयार हैं?
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