हम काशी तमिल संगम कराते हैं, वे “हिन्दी इम्पोजीशन” का दुखड़ा रोते हैं
हम देश के हर वासी को सहृदय अपनाएँ, वे हमें “पानीपूरी वाला” और “पान मसाला वाला” कह चिढ़ाये
हम इनकी हिन्दी डब फिल्मों को भी सुपरहिट बनाएँ, ये हमारे ही लोगों को हिन्दी बोलने पर मरणासन्न करें।
हम इनकी भाषा को सीखने के लिए तत्पर रहे, पर इन्हे हिन्दी फूटी आँख न सुहाए।
हम आईपीएल में इनकी टीम के लिए “ई साला कप नामदे” और “व्हिसल पोड़ू” चिल्लाए, और ये….
गजब इंडिया है भई
इस लेख मे आपको अवगत कराउगा कि आखिर कैसे उत्तर भारतीयों के लिए तमिलवासियों, विशेषकर द्राविड़ राजनीतिज्ञों की घृणा जगज़ाहिर हो रही है“विपक्षी एकता” के नाम पर तेजस्वी यादव बिहार और बिहारियों के आत्मसम्मान की ही लंका लगाने को उद्यत है। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
व्यक्ति की सबसे मूलभूत आवश्यकता क्या होती है? रोटी, कपड़ा और मकान। और इन अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए कोई भी व्यक्ति सर्वप्रथम यही चाहेगा कि ये अवसर उसे अपने मूल निवास या स्थान पर ही मिले, पर जब मौकापरस्त राजनेताओं की अकुशलता और धूर्तबाजी आम मनुष्य के जीवन के ल्लाट पर निराशा पोतने लगे. और अवसर के अभाव, उनकी जीवन असफलता और नाकामी का प्रयाय बनाने लगे तो भला एक आम आदमी क्या करे और इन्हीं बेबस कारणों से कोई भी अपनी भूमि छोड़कर पलायन करता या देश विदेश जाता है।
इन दिनों उत्तर भारतीयों, विशेषकर बिहारियों को जगह जगह पर अपमान का सामना करना पड़ रहा है। क्या बंगाल, क्या पंजाब, यहाँ तक कि तमिलनाडु में भी इनके साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है। पर इन सब अनीतियों के बीच में कुछ ऐसे दुखद समाचार सामने आए हैं , जिसने बिहारियों को दूसरे राज्यों में बेहतर अवसरों के लिए प्रवास करने से पूर्व दस बार सोचने पर विवश होना होगा.
परंतु ये पलायन क्यों और किसलिए होता आया है? अवसर तो अपने गृह राज्य में भी मिल सकता है, पर बिहार, के पास ये सुविधा कहाँ? सही शब्द में ये भाग्य कहां? बिहार के निवासियों की हालत तो ऐसे हो जाते हैं कि वो ना घर के रहते हैं ना घाट के।
घर पर हों, तो नीतीश कुमार या उनसे पहले रहे सरकार की नीतिगत पंगुता उनका जीवन नारकीय बना दे, बाहर जाओ, तो तमिलनाडु जैसे राज्य में उनका जीवन मृत्यु से भी बदतर हो जाता है, और कुछ विरोध या अपील करो तो राज्य प्रशासन आपको ही दुतकारने लगे और उनमे बैठे पथभ्रष्ट लोग आपकी ही आलोचना करने लगे। तो फिर भविष्य अंधेरों की कालिक की ओर ही जाता दिखाई देता है।
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पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु से काफी हृदयविदारक वृतांत सुनने को मिल रही है। तमिलनाडु में रह रहे बिहारी श्रमिक अब किसी भी हाल में वापस आना चाहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी जगह इनको मार मार का अधमरा कर दिया जाता है, तो कहीं पर एक साथ कई श्रमिकों को फांसी पर लटका दिया जाता है।
और इनका अपराध क्या होता है? तो बस एक मात्र इनका हिंदी भाषी होना.
इतना ही नहीं, तमिलनाडु से लौटने वालों ने दावा किया कि वहाँ हिंदी बोलने वाले एक व्यक्ति की 4 अंगुलियाँ काट दी गईं। इसी तरह 12 मजदूरों को कमरे में बंद करके फाँसी दे दी गई। इस तरह कुल 15 मजदूरों की हत्या कर दी गई। श्रवण नाम के एक मजदूर ने बताया कि परिस्थिती बद से बद्तर हो गई है। बिहारियों पर चाकू से हमला हो रहा है।
अब इसपर अपने को बात बात पर “बिहार के हितैषी बताने वाले” नीतीश बाबू और पिछड़ो के पोस्टर बॉय के परिवार के सपूत तेजस्वी यादव क्या कर रहे हैं? कुछ नहीं, जो शोषण कर रहे हैं, उन्ही का साथ दे रहे हैं? जी हाँ, आपने ठीक सुना, अपने राजनीतिक लाभ के लिए ये लोग “बिहारियों” को ही दोषी सिद्ध करने पर तुले हुए हैं।
परंतु इसके पीछे भी एक कारण है। कुछ ही दिनों पूर्व बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव उसी तमिलनाडु में बैठ कर राजनीतिक पींगे बढ़ा रहे थे। वे तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के जन्मदिन में शामिल होकर बर्थडे केक खा रहे थे। वाह रे नीतीश और तेजस्वी, धन्य हो तुम्हारी राजनीति!
एक ओर बात बताते चलूं जब मीडिया ने बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमति रावड़ी देवी से इस विषय पर प्रश्न किया तो मैडम को मुद्दा क्या है वही पता नही था।
ये है इनका जनसंपर्क की सच्चाई.
परंतु ये सब कैसे संभव है? जब बिहारी प्रवासियों के साथ हो रहे अन्याय की खबरें छपने लगी, तो कुछ ही समय बाद तमिलनाडु पुलिस के डीजीपी शैलेन्द्र बाबू ने एक बयान जारी किया। इसमें जनाब फरमाते हैं कि जो कुछ भी हो रहा है, या बताया जा रहा है, सब फर्जी और द्वेष फैलाने की नीयत से हो रहा है, और ऐसी घटनाओं को प्रकाशित करने या उसपर वीडियो बनाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। अरे भाई, संदेशवाहक अथवा दूत को तो मुगल और अंग्रेज़ भी मारने से पूर्व दस बार सोचते थे, परंतु ये डीएमके की स्टालिन सरकार ठहरी।
बस, फिर क्या था, इसी को शाश्वत सत्य मानते हुए बिहार पुलिस ने भी तमिलनाडु के डीजीपी के बयान के आधार पर घटना को झूठा बता दिया। परंतु ये तो कुछ भी नहीं। तेजस्वी यादव, जो अब तक घोड़े बेचकर आराम फरमा रहे थे, अचानक से भाजपा को इसपर घेरने हेतु जागृत हो गए और ट्वीट करने लगे, “बीजेपी, बीजेपी समर्थित मीडिया और इनके नेताओं का तथ्य और सत्य से कोई नाता नहीं है। इनकी झूठ फिर पकड़ी गयी। भ्रम, झूठ, नफ़रत, हिंसा और अफवाह फैलाना ही भाजपाइयों का मुख्य धंधा और पूँजी है।”
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चलिए, मान लेते हैं कि सब झूठे थे, परंतु अगर तमिलनाडु के डीजीपी सच बोल रहे हैं, तो बिहार सरकार ने यह जानने का प्रयास क्यों नहीं किया कि जो मजदूर तमिलनाडु से लौट रहे हैं वे हिंदी को ही वजह क्यों बता रहे हैं?
क्यों इतने लोग अचानक घर लौटने लगे? आखिर इनके पीछे कौन लोग हैं? हालाँकि, इसकी छानबीन तो दूर सरकार ने इसे झुठलाने का काम शुरू कर दिया।
अब भाजपा एवं अन्य विपक्षी दलों के दबाव में बिहार सरकार अधिकारियों की टीम वहाँ भेजकर स्थिति जानना चाह रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने स्पष्ट कहा कि तमिलनाडु में मजदूरों के साथ दुखद घटनाएँ हो रही हैं और इस मामले में तमिलनाडु के DGP झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जमुई और मुंगेर के लोग सहमे हए हैं। पलायन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “अगर मामला गलत निकला तो मैं माफी माँगूँगा नहीं तो आपको सदन में माफी माँगनी पड़ेगी।”
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी को नीचा दिखाने के लिए तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार किसी भी हद तक जा सकते हैं, पर इतनी नीचता तो शायद उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी भी न दिखाएँ, जितनी तेजस्वी यादव अपने ही राज्य के निवासियों के साथ अपने व्यवहार में प्रदर्शित कर रहे हैं। इन लोगों को देखकर अपशब्द भी एक बार को कह दे, भाई मेरे भी स्टैंडर्ड है!
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