सेमीकंडक्टर पर एक हुए अमेरिका और भारत

निशाना है चीन

India US MoU on semiconductors: किसी ने सत्य ही कहा है, “जब दोस्त बनके काम किया जा सकता है, तो दुश्मनी की क्या ज़रूरत”

इसी पद्धति पर आगे बढ़ते हुए अमेरिका और भारत एक महत्वपूर्ण संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जिसमें लाभ दोनों को होगा, और हानि केवल चीन की।

इस लेख में जाने कि कैसे अमेरिका और भारत की नई टेक डील (India US MoU on semiconductors) चीन की हेकड़ी नष्ट करेगी, और कैसे ये संधि एक नये अध्याय का प्रारंभ होगा!

India US MoU on semiconductors: अमेरिका और भारत की नई टेक डील

हाल ही में भारत और अमेरिका ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने के लिए एक प्रारंभिक समझौते (India US MoU on semiconductors) पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों ने यहां ‘वाणिज्यिक संवाद-2023’ के दौरान सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला तथा नवाचार साझेदारी पर एक सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। वाणिज्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। बता दें कि वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के निमंत्रण पर अमेरिकी वाणिज्य मंत्री जीना रायमोंडो ने सात से 10 मार्च के बीच दिल्ली का दौरा किया, जिसके पश्चात ये संधि सुनिश्चित हुई।

इसी परिप्रेक्ष्य में भारत और अमेरिका के बीच ‘भारत-अमेरिका वाणिज्यिक संवाद‘ के ढांचे के तहत सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला और नवाचार साझेदारी स्थापित करने के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत अमेरिका के सेमीकंडक्टर एवं विज्ञान अधिनियम और भारत के सेमीकंडक्टर मिशन के अनुरूप सेमीकंडक्टर के लिए आपूर्ति श्रृंखला और विविधीकरण पर एक सहयोगी तंत्र स्थापित किया जाएगा।

इस समझौते का मकसद सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखला के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के माध्यम से दोनों देशों की ताकतों का लाभ उठाना और वाणिज्यिक अवसर पैदा करना तथा सेमीकंडक्टर नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करना है। इसके अलावा, एमओयू में परस्पर लाभकारी अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी), प्रतिभा और कौशल विकास की परिकल्पना की गई है। बैठक के दौरान गोयल और रायमोंडो ने व्यापारिक और निवेश संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा की।

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तो प्रश्न ये उठता है : India US MoU on semiconductors से भारत को कैसे लाभ मिलेगा, और चीन को कैसे हानि होगी? बता दें कि सेमीकंडक्टर एक तगड़ा प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र है। यहाँ अमेरिका अपने उत्कृष्ट तकनीक के बल पर सबसे आगे हैं, परंतु या तो उसे कभी चीन के पदार्थों की सहायता पड़ती है, या फिर चीन ऐसी तकनीक पर कार्यरत है, जिसके समक्ष कोई न टिक पाए।

अमेरिका भारत  का व्यापारिक  संबंध 

ऐसे में अमेरिका चाहेगा कि कोई ऐसा साझेदार मिले, जो चीन के मंसूबों पर पानी भी फेर दे और अमेरिका का भी काम हो जाए। इसके अतिरिक्त अमेरिका भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को भी आगे बढ़ाना चाहता है।

अभी हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, चार वैश्विक सेमीकंडक्टर कंपनियां भारत में फैब स्थापित करने के लिए केंद्र के साथ बातचीत कर रही हैं। केंद्र द्वारा मार्च के मध्य तक 10 अरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज के तहत इस तरह की सुविधा स्थापित करने के लिए दूसरे दौर के आवेदन आमंत्रित करने की भी संभावना है। अब भारत चार नए फैब प्रोजेक्ट के साथ सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने की ओर अग्रसर हो रहा है।

इसके अतिरिक्त इस मामले में रूचि दिखाने वाले देशों में न्यूयॉर्क स्थित ग्लोबल फाउंड्रीज और एक कोरियाई प्रमुख सेमीकंडक्टरफर्म भी शामिल है। मामले में जानकर एक व्यक्ति ने ईकोनॉमिक्स टाइम्स को बताया, ‘इस समय सरकार के पास जो प्रस्ताव हैं, उनके अलावा चार बड़े अवसर हैं, जो अंतिम चरण में पहुंच चुके। इसलिए जब भी हम दूसरी विंडो खोलेंगे, वे आएंगे।’

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केंद्र फैब इकाइयों पर 50 फीसदी सब्सिडी की पेशकश दे रहा है और राज्य 10-25 फीसदी सब्सिडी की पेशकश कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार केंद्र चाहता है कि ताइवान की फॉक्सकॉन भारत में एक विनिर्माण संयंत्र स्थापित करें। इसके अलावा वह चाहता है कि फॉक्सकॉन वेदांता के साथ अपने उद्यम का नेतृत्व करें।

इसीलिए एमओयू में परस्पर लाभकारी अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी), प्रतिभा और कौशल विकास की परिकल्पना की गई है। बैठक के दौरान गोयल और रायमोंडो ने व्यापारिक और निवेश संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा की।

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इस मौके पर गोयल ने कहा कि एमओयू (India US MoU on semiconductors) से आपसी सहयोग और लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ाने में मदद मिलेगी। रायमोंडो ने कहा कि उन्नत विनिर्माण को बढ़ावा देने की भारत की इच्छा पूरी तरह आपूर्ति श्रृंखला को लचीला बनाने के अमेरिकी लक्ष्य से मिलती है। उन्होंने कहा कि इस एमओयू के साथ, अमेरिका भारत को इलेक्ट्रॉनिक आपूर्ति श्रृंखला में बड़ी भूमिका निभाने की उसकी आकांक्षाओं को हासिल करने हुए देखना पसंद करेगा।

अब इसमें भारत का क्या लाभ? जब संधि हुई है, तो तकनीक भी साझा होगी। ऐसे में भारत अब अमेरिकी तकनीक को अपना अस्त्र बनाते हुए सेमीकंडक्टर उद्योग में न केवल एक नया कीर्तिमान स्थापित कर पायेगा, अपितु चीन के मंसूबों को भी ध्वस्त कर सकेगा।

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