अपने आप को पीएम मोदी समझने की भूल ममता बनर्जी को बहुत भारी पड़ सकती है

चुनावी सफलता और जनसमर्थन में अंतर होता है!

ममता बनर्जी

Source: Google

राजनीति में दो प्रकार के नेता स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं। एक वे, जो जोड़ तोड़ के सत्ता तो प्राप्त कर लेते हैं, परंतु जनसमर्थन नहीं प्राप्त कर पाते। दूसरे वे हैं, जो सत्ता भी प्राप्त कर लेते हैं, और जनता के बीच अपनी लोकप्रियता भी अचल रखने में निपुण होते हैं और ये अपने आप में एक कला है, और पीएम मोदी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। आज इस लेख में आपको बताएँगे कि कैसे ममता बनर्जी पीएम मोदी की बराबरी करने हेतु नए नए प्रपंच अपना रही हैं, और कैसे अपने आप को पीएम मोदी समझने की ये भूल उन्हे कहीं का नहीं छोड़ेगी।

बचपन में कभी न कभी आपने इस लोकोक्ति को अवश्य सुना होगा, “आधी को छोड़ सारी को धावे, न आधी मिले न पूरी पावे”। और ऐसे ही कुछ ममता बनर्जी के जीवन में घटित होते दिख रहा है।

और पढ़ें: ‘ईसाई खतरे में हैं’ की ढपली बजाते बजाते वेटिकन की शरण में पहुंची ममता बनर्जी 

आप यह तो स्वीकारेंगे ही कि ममता बनर्जी चाहे बंगाल की कानून व्यवस्था हो, या फिर बंगाल से बाहर TMC का प्रदर्शन हो, अपने शासन के लिए कम, विवादों के लिए अधिक जानी जाती है।

डियरनेस अलाउअन्स [DA] यानि महंगाई भत्ता को लेकर बंगाल में नया विवाद

इसी बीच अब डियरनेस अलाउअन्स [DA] यानि महंगाई भत्ता को लेकर बंगाल में नया विवाद छिड़ गया है। बंगाल के सरकारी कर्मचारियों के अनुसार ममता प्रशासन जो महंगाई भत्ता प्रदान करती है, वह केंद्र सरकार द्वारा आवंटित महंगाई भत्ता के अनुरूप प्रभूत कम है,

और इसीलिए उसमें बढ़ोत्तरी की जोरों से शुरू हो गई है और जब मांगें अनसुनी की गई, तो बंगाल के सरकारी कर्मचारी महंगाई भत्ता को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

परंतु ममता बनर्जी तो ममता बनर्जी ठहरीं जिनका जनता के सवालों से मतलब नहीं, बस हंगामा करना या हंगामा करवाना जीवन का उद्देश्य है।

जब मामला सर से ऊपर आने लगा तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि महंगाई भत्ता में बढ़ोत्तरी नहीं होंगी, चाहे उसके लिए कर्मचारी उनका सर ही काट डालें। सोमवार (6 मार्च 2023) को पश्चिम बंगाल विधानसभा में बजट पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि कर्मचारी हमेशा ही अधिक की माँग करते हैं। लेकिन सरकार उन्हें अधिक पैसा नहीं दे पाएगी।

और पढ़ें: ममता बनर्जी बिहार से इतनी घृणा क्यों करती हैं?

बनर्जी के अनुसार, “वे हमेशा और अधिक की माँग करते रहते हैं। मुझे कितना अधिक देना होगा? हमारी सरकार के लिए अब और अधिक महँगाई भत्ता (डीए) देना संभव नहीं है। हमारे पास पैसा नहीं है। हमने 3 प्रतिशत अतिरिक्त DA दिया है। अब यदि आप इससे भी खुश नहीं हैं तो मेरा सिर काट लीजिए। आपको और कितना अधिक DA चाहिए?”

परंतु विरोध अंततः  किस बात पे हो रहा है? कहने को केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों को बेसिक सैलरी का 38 प्रतिशत महँगाई भत्ता देती है। ऐसी अटकलें भी हैं कि केंद्र अपने कर्मचारियों के महँगाई भत्ते में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकती है। ऐसे में केंद्रीय कर्मचारियों को महँगाई भत्ता बढ़कर 42 प्रतिशत हो जाएगा।

ऐसे में यदि पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बीच महँगाई भत्ते को लेकर तुलना की जाए तो जमीन और आसमान का अंतर दिखाई देता है। यूं समझ लीजिए कि केंद्र सरकार की तुलना में बंगाल सरकार के कर्मचारियों को सुविधाओं के नाम पर “चना मामड़ा” यानि लगभग नगण्य सुविधाएं मिलती है।

इसी परिप्रेक्ष्य में केंद्र और राज्य सरकार के वेतन को अलग-अलग बताते हुए ममता बनर्जी ने आगे कहा,“आज हम पश्चिम बंगाल में पूरी पेंशन दे रहे हैं। यदि हम इसे रोक दें तो 20000 करोड़ रुपए बचा सकते हैं। इससे हमारे कर्ज का बोझ हम होगा। मैंने कर्मचारियों को 1.79 लाख करोड़ रुपये का DA दिया है। हम राज्य सरकार के कर्मचारियों को दस साल में एक बार बैंकॉक, श्रीलंका और ऐसे अन्य स्थानों पर जाने की अनुमति देते हैं। हम 40 दिनों की लीव विद पे छुट्टी देते हैं। दूसरी कौन सी सरकार वेतन देते हुए इतनी छुट्टियाँ देती है?”

बता दें कि पश्चिम बंगाल की वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने बजट पेश करते हुए कहा था कि राज्य सरकार सरकारी शिक्षकों समेत अन्य कर्मचारियों तथा रिटायर्ड कर्मचारियों को 3 प्रतिशत अतिरिक्त महँगाई भत्ता (डीए) देगी।

और पढ़ें: अखिल गिरी कोई मामूली ‘खिलाड़ी’ नहीं है लेकिन यह सब ममता बनर्जी का ही प्रभाव है

इसको लेकर राज्य सरकार ने एक नोटिफिकेशन भी जारी किया है। नोटिफिकेशन के अनुसार छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक ही, 1 मार्च 2023 से कर्मचारियों, पेंशनरों और पारिवारिक पेंशनरों को 3 प्रतिशत अतिरिक्त महँगाई भत्ता (डीए) दिया जाएगा।

अब कुछ लोग इस विषय में ममता बनर्जी के वर्तमान निर्णय को “पीएम मोदी की कड़वी दवाई”  वाले प्रवृत्ति से जोड़कर देख रहे हैं।

चुनावी सफलता और जन समर्थन में बहुत बड़ा अंतर

परंतु ये विचार ही न केवल हास्यास्पद है, अपितु ममता बनर्जी यदि वास्तव में इस दिशा में कार्यरत है, तो ये उनकी अपरिपक्वता को भी दर्शाता है क्योंकि स्पष्ट रूप से बता दें कि चुनावी सफलता और जन समर्थन में बहुत बड़ा अंतर है, जो शायद अभी तक ममता बनर्जी को नहीं समझ आया है।

ज़्यादा नहीं, एक छोटा सा उदाहरण देते हैं। डेविड वॉर्नर एक उत्कृष्ट बल्लेबाज़ है, जो अपने धाकड़ बल्लेबाज़ी के बल पर कई मैचों का परिणाम बदल चुके हैं। परंतु क्या वे संसार भर में वीरेंद्र सहवाग जितने चर्चित हैं? क्या जन जन में वे वीरेंद्र सहवाग जितनी लोकप्रियता प्राप्त कर पाए हैं? ठीक ऐसा ही अंतर है मोदी की कार्यशैली और ममता बनर्जी के कार्यशैली में।

कोई माने या माने पर पीएम मोदी का जनता पर एक प्रभाव व्याप्त है। और इसके साक्ष्य भी हैं।

अगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन कह दे कि देश में 500 रुपये या 1000 रुपये के पुराने नोट वैध नहीं होंगे, तो जनता इसके विरोध में कोई उपद्रव नहीं मचाएगी।

अगर पीएम मोदी ने कहा कि आज से देश में अधिकांश वस्तुओं के लिए केवल एक कर होगा, यानि जीएसटी, तो जनता उसे अपनी स्वीकृति देते हुए उसी अनुसार अपने क्रय विक्रय में अंतर लाएगी।

ममता बनर्जी छोड़िए, क्या विपक्ष में कोई अन्य ऐसा नेता है, जिसके तौर तरीकों को जनता का इतना प्रचंड समर्थन प्राप्त है?

अगर ममता बनर्जी वास्तव में बड़ी लोकप्रिय होती, कि उनके एक इशारे पर अनेक लोग नतमस्तक हो जाते, तो उन्हे वर्तमान विधानसभा चुनावों में मुंह की न खानी पड़ती।

मेघालय को छोड़कर त्रिपुरा एवं नागालैंड में तो इन्हे खाता खोलने में भी पसीने छूट गए। ऐसे में ममता यदि इस भ्रम में है कि वह नरेंद्र मोदी की बराबरी कर सकती है, तो वे भूल जाए। हमारे लिए न सही अपने राजनीतिक उन्नति के लिए.

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version