अगले वर्ष यानि 2024 में लोकसभा चुनाव होने है। आगामी आम चुनावों को लेकर विपक्षी दल अभी से ही सक्रिय दिखने लगे हैं। अगर देश की वर्तमान राजनीति की समीक्षा की जाए तो वर्तमान समय में देश की राजनीति में भाजपा का एकक्षत्र राज है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को बुरी तरह से हरा कर देश की सत्ता संभाली है।
लेकिन वो कहते हैं न की भाजपा देश की ऐसी पार्टी है जो अपने जीत के साथ हार की भी समीक्षा करती है और शायद उसकी यही नीतियां उसकी सफलता का वास्तविक राज है। जहां एक तरफ भाजपा 2024 के आम चुनावों की तैयारियां युद्ध स्तर पर कर रही है वहीं दूसरीओर विपक्ष है कि चुनाव से ढेरों उलझनों में उलझा हुआ है।
पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा ने देश सबसे पुरानी पार्टी यानि कांग्रेस को बुरी तरह से चुनावी मैदान में पटखनी दी है। वहीं अब हाल ही में देश के कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों की बात की जाए तो कांग्रेस का प्रर्दशन प्रशन्नात्मक नही रहा है।
2024 कौन होगा विपक्षी चेहरा?
मूल प्रश्न यह है कि 2024 के लोकसभा चुमाव विपक्ष का पीएम कैंडीडेट कौन होगा? कुछ लोगों के मस्तिष्क में कांग्रेस पार्टी के चश्मोंचिराग राहुल का विचार भी आता होगा। क्योंकि हाल ही में राहुल को कांग्रेसियों ने रिलॉंच जो किया है। लेकिन क्या सच में राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ों यात्रा के द्वारा 2024 के लिए जमीन तैयार करने में सफल हो पाए हैं?
राहुल गाँधी ने अपनी यात्रा में पुशअप लगाए, ढाढी भी बढ़ा ली थी और तो और कड़ाके की ठंड में हाफ टी शर्ट में ही रहे। लेकिन सर्दी में हाफ टी-शर्ट में घूमना और ढाढी बढ़ा लेना तो भारत के प्रधानमंत्री का सही पैमाना नही है। और इसका 2024 के चुनाव में क्या ही प्रभाव पड़ेगा।
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वहीं ओर तो और कांग्रेस पार्टी की इस यात्रा में वही लोग जुड़े जिन पर हिंदू विरोधी होने के आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं। इस यात्रा से वहीं लोग जुड़े जिन पर देश विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं।
कुल मिलाकर राहुल गांधी अपने मित्र बंधु जो देश विरोधी और हिंदू विरोधी बातें करने के लिए अपनी पहचान बना चुके हैं उन्हें जोड़ने में कामयाब हुए हैं। संताप भी है और सत्य भी है कि इतने क्षेत्रों में घूम-घूमकर वो आम जनता को नहीं जोड़ पाए। अब जब अपने दोस्तों और बंधुओं को ही जोड़ना था तो चाय कॉफी पर ही बुला लेते, इतनी मेहनत क्यों कि भला।
यात्रा पुरी तरह असफल रही है जब ही असफल रही तो राहुल गांधी की रिलॉंचिंग भी कुछ खास नही कर पाई। उल्टे राहुल ने अपनी यात्रा के दौरान ऐसे बयान दिए जिसका सीधे तौर पर लाभ भारतीय जनता पार्टी को ही हुआ। अब पीएम पद के विपक्षी उम्मीद्वार को लेकर स्थिती ये हो गई की मैं नही तो कौन बे?
विपक्ष के पास नही है कोई ठोस नीति
देखा जाए तो पूरे विपक्ष का एक ही लक्ष्य है मोदी को हटाना परन्तु इस लक्ष्य को साधने के लिए विपक्ष के पास ना तो कोई मजबूत नीति दिखाई दे रही है और ना ही विपक्षी एकता। विपक्ष में नेतृत्व को लेकर महासंग्राम छिड़ा हुआ है। एक तरफ सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस साफ संकेत दे चुकी है कि 2024 के चुनाव में विपक्ष की कमान उसके हाथ में होगी। वहीं नेतृत्व को और भी कई नेता हैं जो अपनी अपनी महत्वकांक्षाएं रखते हैं।
विपक्ष ये लक्ष्य तो तय कर लिया कि किसी भी हाल में पीएम मोदी को गद्दी से हटाना है लेकिन नेतृत्व को लेकर लड़ाई अभि भी छिड़ी हुई है। क्योंकि सभी पार्टियों की अपनी अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं। अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को ही देख लीजिए की वो बिहार बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद लगातार विपक्षा को एक साथ आने की बात करे रहे हैं पर अपनी के महत्वकांक्षाएं कारन ऐसा करने मे असफ़ल् रहे हैं.
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बीजेपी के साथ मिलकर 2020 का विधानसभा चुनाव लड़ने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनावी सभा में यह कहकर चौंका दिया था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। अब नीतिश बाबू अकेले तो है नही जो विपक्ष को एक मंच लाना चाहते है। भापत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष केसीआर भी तो विपक्षको एक मंच पर लाने की बात करते हैं। वहीं इस लड़ाई में विपक्ष का झंडा लेकर ममता बनर्जी भी चलना चाहती हैं। एक सभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने कहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता से बीजेपी को हटाना है, उनकी आखिरी लड़ाई है। जेडीयू नीतीश कुमार को पीएम उम्मीदवार बताती है वहीं, टीएमसी चाहती है कि ममता बनर्जी विपक्ष की कमान संभालें और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की विपक्ष के नेतृत्व की चाहत किसी से छिपी नहीं है। बेसक अरविंद केजरीवाल की पार्टी राष्ट्र पार्टी बन गई हो लेकिन उसके पास अभी पीएम मोदी के सामने टिक पाना का वजूद नही आया है। पीएम मोदी की लोकप्रियता के आगे केजरीवाल अभी बहुत बौने हैं।
ऐसे में अगर पूरा विपक्ष एक होकर सत्तारुढ पार्टी को खिसकाने का प्रयास भी करे तो वो प्रयास भी दूर तक नजर नही आ रहा है। एकता तो दूर, उलटे विपक्ष में आज फूट ज्यादा पड़ती दिखाई दे रही है। क्योंकि क्षेत्रीय पार्टी हो या फिर राष्ट्रीय हर पार्टी चाहती है कि आम चुनावों विपक्ष का झंडा लेकर वो चले और ये हो पाना संभव नही है। जिसका भाजपा को भरपूर लाभ मिलेगा और पीएम नरेंद्र मोदी हैट्रिक लगाते हुए तीसरी बार पीएम की कुर्सी पर विराजमान होंगे।
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