Polio की Vaccine को इतना समय क्यों लगा?

एक समय ऐसा भी था!

Polio Vaccine

Polio Vaccine: अभी कुछ समय पूर्व सोशल मीडिया पर एक ट्वीट देखा, जहां राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस के अवसर पर भारत की वैक्सीन क्षमता का प्रदर्शन किया जा रहा था। जिस प्रकार से भारत ने कोविड 19 के विरुद्ध भीषण युद्ध लड़ा, भारत सिद्ध कर दिया कि भारत को यूं ही प्राचीन युग में “विश्वगुरु” की उपाधि नहीं दी गई थी। परंतु एक समय ऐसा भी था जब वैक्सीन का निर्माण छोड़िए, पेंसिलिन जैसी आम दवाइयों के लिए भी भारत को “विदेशी दान” पर निर्भर रहना पड़ता था।

इस लेख में पढिये कि कैसे पोलियो की वैक्सीन (Polio Vaccine) के लिए भारत को दशकों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी, और कैसे इस विलम्ब को रोका जा सकता था।

कैसे पोलियो ने खराब की भारत की छवि

आज हम भारतवासी कोविड 19 रोधी वैक्सीन पर अपनी उपलब्धियों पे अपनी पीठ थपथपाते हुए नहीं थकते। होना भी चाहिए, आखिर कोविड 19 जैसी महामारी को रोकने में अगर हमारे देश की वैक्सीन प्रभावी हो, और उसके समक्ष बड़े बड़े देशों की वैक्सीन भी निष्फल प्रतीत हो, तो ये कोई छोटी बात तो नहीं।

परंतु ये प्रारंभ से ऐसा नहीं था।

एक समय ऐसा था, जब हमें सुई से लेकर अपने आयुध के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर रहना पड़ता था। पेंसिलिन जैसी एंटी बायोटिक दवाइयों के लिए भी हमें विदेशी सहायता पर भी निर्भर रहना पड़ता था, और जो वस्तु अमेरिका या यूरोप में किसी वर्ष निकलती, उसे भारत आते आते कम से कम दो दशक तो लग ही जाते।

इसी का परिणाम था कि जो पोलियो समय रहते नष्ट किया जाता था, उसने 1990 तक भारत की नाक में दम कर दिया था। आपको विश्वास नहीं होगा कि 1980 के दशक में विश्व के लगभग कुछ नहीं तो 50 प्रतिशत से अधिक पोलियो केस भारत से ही निकलते थे।

और पढ़ें: न्यूयॉर्क में पोलियो के कारण इमरजेंसी, भारत की रणनीति से जीत सकता है अमेरिका

वैक्सीन 1953 तक, तो भारत आगमन 1988 में क्यों?

परंतु प्रश्न है की भारत को इतने वर्षों तक पोलियो का प्रकोप क्यों झेलना पड़ा? पोलियो की खुराक तो 1950 के दशक तक ही आ चुकी थी? ये सत्य है, और ये भी सत्य है कि पोलियो की खुराक बनते बनते 1970 प्रारंभ हो चुका था।

अब भारत की ओर देखते हैं। पोलियो की प्रथम डोज़ (Polio Vaccine) कब किसी भारतीय को मिली होंगी? 1988 के आसपास, जब WHO के अभियान के अंतर्गत भारत को पोलियो वैक्सीन की खेप मिली। क्या इस बीच किसी भारतीय ने इस दिशा में कार्य नहीं किया? क्या पोलियो को मिटाने के लिए कोई देशव्यापी अभियान नहीं चलाया गया?

हो सकता है, और नहीं भी हो सकता है, क्योंकि पोलियो की प्रथम वैक्सीन 1972 के आसपास भारत आई थी। परंतु 1999 में जाकर देश के 60 प्रतिशत से अधिक नवजात शिशुओं को इसकी प्रथम डोज़ मिली थी। एक राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य अभियान को सफल होने में इतने वर्ष?

हम शायद भूल जाते हैं कि ये वही भारत है, जहां एक डॉक्टर को आत्महत्या इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि उसके आविष्कार, यानि “टेस्ट ट्यूब बेबी” पर दो मीठे बोल तो छोड़िए, समाज में जीने योग्य भी नहीं छोड़ा गया। यहाँ तो बच्चों को दस्त से बचाने के लिए ORS जैसे सरल औषधि को भी स्वीकृत कराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था।

और पढ़ें: सर्वाइकल कैंसर के विरुद्ध पहली स्वदेशी वैक्सीन बनाने जा रहा है भारत

क्या है कोविड के विरुद्ध भारतीय अभियान का मोल?

1995 में जब पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी, तब जाकर पोलियो को मिटाने के लिए “पल्स पोलियो” जैसा राष्ट्रव्यापी अभियान चला। उससे पूर्व लगभग 4 दशक तक बाकी लोग क्या कर रहे थे? क्या ये नीतिगत पंगुता देश के लिए शर्म की बात नहीं? 1990 के दशक तक संसार के अधिकतम देशों से पोलियो समाप्त हो चुका था, परंतु भारत को यह बीमारी खत्म करने में लगभग 2 दशक और लगे, और 2014 तक जाके भारत “पोलियो मुक्त” घोषित हुआ।

अब सोचिए, अगर कोविड के समय पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार नहीं होती, तो क्या जितनी जल्दी हम इस महामारी को नियंत्रित करने में सफल हुए, क्या उतनी ही शीघ्रता से अन्य प्रशासकों के नेतृत्व में होता? जिस प्रकार से केरल, दिल्ली जैसे प्रांतों में कोविड के व्याप्त होने पर जो भगदड़ मची हुई थी, वह शायद पूरे देश में देखने को मिलता। ऐसे में एक प्रश्न तो बनता है : आखिर स्वास्थ्य से ऐसा समझौता क्यों, और कब तक?

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version