9 मार्च 1996 : क्रिकेट विश्व कप का वह मैच जिसने भारतीय क्रिकेट को किया परिभाषित

इसी मैच से बने वेंकटेश प्रसाद अद्वितीय लीजेंड

1996 क्रिकेट विश्व कप

क्रिकेट और भारत, मानो एक ही सिक्के के दोनों पहलू हैं। दोनों को अलग करना काफी कठिन है. 1996 क्रिकेट विश्व कप में एक ऐसा मैच हुआ था, जिसके आज तक चर्चे होते हैं, और जिसे भारतीय क्रिकेट का एक अमिट अध्याय माना जाता है।

इस लेख में आप जानेंगे 1996 के क्रिकेट विश्व कप के उस मैच के बारे में, जिसने न केवल भारतीय क्रिकेट को परिभाषित किया, अपितु ये भी सिद्ध किया कि क्रिकेट में भारत और पाकिस्तान के मैचों के बारे में इतनी चर्चा क्यों होती है? तो अविलंब आरंभ करते हैं।

सन 1996। ये वो समय था, जब क्रिकेट एक महत्वपूर्ण बदलाव से गुज़र रहा था। अब यूरोप और वेस्टइंडीज़ का प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा था। श्रीलंका प्रादुर्भाव राह पर था , और भारत और पाकिस्तान का वर्चस्व भी टेस्ट क्रिकेट से बाहर निकलकर ODI क्रिकेट में छाने लगा था।

इसी बीच 1996 के क्रिकेट विश्व कप की मेज़बानी की जिम्मेदारी संयुक्त रूप से भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान को मिली।

पहले की तुलना में इस टूर्नामेंट में 12 टीम खेल रही थी, जिनमें से केन्या, UAE जैसी टीमों ने तो प्रथमत्या विश्व कप की सूरत देखी थी। टीम इंडिया ने गिरते पड़ते 3 जीत और 2 हार के साथ क्वार्टरफाइनल में कदम रखा।

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1996 के क्रिकेट विश्व कप

अब यहाँ पर भारत का सामना किसी और से नहीं, पिछली बार की विश्व चैंपियन और उस समय के क्रिकेट की सबसे धाकड़ टीमों में से एक, पाकिस्तान से होना था, वह भी अपने ही होम ग्राउंड यानि बेंगलुरू के चिन्नास्वामी स्टेडियम में।

ये मैच नहीं, दोनों टीमों के लिए उनकी प्रतिष्ठा का सवाल था। एक तरफ जहां भारत को अपने ही ग्राउन्ड में हारने का भय सता रहा था, तो दूसरी ओर पाकिस्तान इस मैच में जीत के साथ अपने प्रभावशाली बल्लेबाज़ जावेद मियांदाद के लिए एक यादगार विश्व कप बनाना चाहते थे।

बताते चलें कि |जावेद मियांदाद के लिए ये उनका छठा और अंतिम क्रिकेट वर्ल्ड कप था, और वर्षों बाद इस रिकॉर्ड की बराबरी 2011 में सचिन तेंदुलकर ने की थी।

कुछ लोगों के लिए ये भले ही एक क्रिकेट मैच हो, परंतु भारतीयों के लिए ये एक क्रिकेट मैच से बहुत बढ़कर था। इस मैच में वह समस्त तत्व थे, जो किसी दमदार एक्शन थ्रिलर की याद दिलाएँ।

सचिन तेंदुलकर और नवजोत सिंह सिद्धू ने धमाकेदार शुरुआत दी

मैच का प्रारंभ भारतीयों ने जोरदार तरीके से किया, जहां सचिन तेंदुलकर और नवजोत सिंह सिद्धू ने एक धमाकेदार शुरुआत दी। परंतु अधिक आक्रामक होने के चक्कर में सचिन 31 रन के निजी स्कोर पर चलते बने, और बाकी क्रिकेटरों ने भी नवजोत का कोई विशेष साथ नहीं दिया।

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इसके बाद भी नवजोत सिंह सिद्धू एक छोर से रन बनाते रहे, और जब वे आउट हुए, तो भारत का स्कोर 168 पे 3 था, जिसमें अकेले नवजोत का योगदान 93 रनों का था।

परंतु उनके आउट होते ही भारत की पारी पाकिस्तानी गेंदबाज़ी के आगे चरमराने लगी, और शीघ्र ही स्कोर 236 पे 6 हो गया। अब भारत के पास दो ही विकल्प थे : या तो रक्षात्मक होकर कम परंतु अच्छा स्कोर बनाओ, या फिर सब कुछ भाग्य पर छोड़ दो।

परंतु एक व्यक्ति के पास इन सबके लिए समय नहीं था। इनका नाम था अजय जडेजा, जिनकी आक्रामक बल्लेबाज़ी से विपक्षी खौफ खाते थे। केवल 3.5 ओवर में जो इन्होंने त्राहिमाम मचाया, उससे पाकिस्तान उबर नहीं ही पाई।

जब वे 45 के स्कोर पे आउट हुए, तो भारत 236 से 279 की ओर पहुँच चुका था। रही सही कसर जवागल श्रीनाथ ने 12 रन की उपयोगी पारी खेलके पूरी कर दी।

अब पाकिस्तान ने जब बल्लेबाज़ी प्रारंभ की, तो जल्द ही भारतीय का उत्साह प्रार्थनाओं में परिवर्तित हो गया। ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी करते हुए आमिर सोहेल और सईद अनवर ने केवल दस ओवर में 84 रन ठोंक दिए।

ऐसा लग रहा था कि यही दोनों 288 के लक्ष्य को अकेला पूरा कर देंगे। जवागल श्रीनाथ ने जल्द ही सईद अनवर को आउट किया, परंतु आमिर सोहेल अभी बाकी थे।

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वेंकटेश प्रसाद ने इतिहास ही बदल दिया

परंतु वो कहते हैं न, जोश में कभी होश न खोएँ। आमिर सोहेल का सामना करने आए वेंकटेश प्रसाद, जिनका स्वागत सोहेल ने एक ताबड़तोड़ चौके से किया। परंतु अतिआत्मविश्वास में सोहेल इतना बह गए कि उन्होंने वेंकटेश का उपहास उड़ाया और बल्ले से इशारा करते हुए मानो कहा कि अगली गेंद का भी ऐसा ही हश्र होगा।

परंतु अगली गेंद को वेंकटेश प्रसाद ने जो फेंका, उसने मानो इतिहास ही बदल दिया। एक वो दिन था, और एक आज का दिन, और तबसे पाकिस्तान में जो टीवी फोड़ने की रीति प्रारंभ हुई है, वो शायद ही कभी रुकी है।

जल्द ही 110 पे 1 से पाकिस्तान कब 239 पे 9 पे आ गया, पता ही नहीं चला। अपने अंतिम मैच में जावेद मियांदाद भी कुछ खास नहीं कर पाए और 38 के स्कोर पर रन आउट हो गए।

जब 49 ओवर पूरे हुए, तब पाकिस्तान मात्र 248 पे 9 रन ही बना पाए, और भारत 39 रन से मैच जीत गया। वो अलग बात है कि भारत सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ पाया, परंतु इस मैच ने परिभाषित किया कि भारतीय क्रिकेट क्या होता है, और इसी मैच से वेंकटेश प्रसाद एक अद्वितीय लीजेंड बन गए।

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