महागठबंधन से खिसक लिए शरद पवार!

राजनीति में न कुछ स्थाई होता है, न असंभव!

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Nagaland NCP NDPP BJP government : जीवन और राजनीति के साथ एक एक्स फैक्टर यह है, कि वह कभी भी एक नया मोड़ ले सकती है और यहाँ कुछ भी स्थाई नहीं। ऐसा ही कुछ नागालैंड में देखने को मिला है। यहाँ पहले भाजपा ने समर्थित एनडीए गठबंधन ने 52 सीटों पर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया। अब सुनने में आ रहा है कि 7 सीटें जीतने वाली एनसीपी ने भी एनडीए गठबंधन को अपना समर्थन दिया है, यानि अब नागालैंड में विपक्ष का कोई अस्तित्व नहीं।

इस लेख में हम आपको बताएंगे कैसे नागालैंड में एनसीपी का एनडीए को समर्थन देना कोई आम बात नहीं, और कैसे शरद पवार अब महागठबंधन से कन्नी काट रहे हैं। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

हाल ही में पूर्वोत्तर में भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। लाख प्रपंच के बाद भी त्रिपुरा में भाजपा ने बहुमत प्राप्त कर सत्ता बनाए रखा, तो वहीं मेघालय में ऐन समय पर NPP के प्रमुख एवं मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा को समर्थन देकर उन्होंने सत्ता में अपना स्थान सुनिश्चित किया.

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Nagaland NCP NDPP BJP government : एनसीपी का एनडीए को समर्थन

इसी बीच नागालैंड में नीफू रियो [Neiphiu Rio] के नेतृत्व वाले NDPP पार्टी ने भाजपा समर्थित एनडीए गठबंधन को पुनः सत्ता में पहुंचाने में सफलता प्राप्त की। इस गठबंधन ने 60 सीटों में से 52 सीटों पर सफलता प्राप्त की, जिसमें 12 सीटें केवल भाजपा की अकेले की थी।

परंतु अब एक अप्रत्याशित निर्णय में शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानि NCP ने NDPP BJP Nagaland government को अपना पूर्ण समर्थन देने का निर्णय किया है।

वर्तमान में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में नागालैंड में विरोधी पार्टियों में सबसे ज्यादा सीटें एनसीपी के पास आई थीं। इनको कुल 7 सीटें मिली थी। परंतु अब एक अप्रत्याशित निर्णय में एनसीपी के विधायकों ने नागालैंड की सरकार को अपना सम्पूर्ण समर्थन देने का निर्णय किया है।

शरद पवार ने इसपर सफाई देते हुए कल कहा था कि उनका समर्थन एनडीपीपी को है, बीजेपी को नहीं।

आश्चर्यजनक रूप से शरद पवार की हाँ में हाँ मिलाते उद्धव सेना [क्षमा करें, शिवसेना [उद्धव ठाकरे] गुट] के सांसद संजय राऊत ने शरद पवार का अनुमोदन करते हुए कहा,

“वहां मुख्य पार्टी बीजेपी नहीं क्षेत्रीय पार्टी एनडीपीपी है जिसके नेता रियो हमारे साथ संसद में कुछ वक्त तक सांसद थे। उनकी पार्टी को 25 सीटें मिली हैं। उनके साथ गठबंधन की पार्टी बीजेपी को 12 सीटें मिली हैं। इसके बाद तीसरे नंबर की पार्टी एनसीपी रही है जिन्हें 7 सीटें मिली हैं। एनसीपी अकेले नहीं बाकी पार्टियां भी सरकार में शामिल हुई हैं”।

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एनसीपी की ओर से ये स्पष्ट किया गया है कि नागालैंड एक बॉर्डर स्टेट है, जो भौगोलिक एवं सामरिक दृष्टि से संवेदनशील है। यहाँ की परिस्थितियों को देखते हुए कई बार यह कश्मीर से ज्यादा संवेदनशील कहा जा सकता है।

वहां आतंकी हमलों के खतरे बने रहते हैं। वहां सरकार बीजेपी की नहीं है। बीजेपी एनडीपीपी की सहयोगी पार्टी है। बीजेपी विरोधी बाकी पार्टियां भी सरकार में शामिल हुई हैं। इसमें कोई एतराज का सवाल नहीं”।

इसी विषय पर संजय राऊत ने आगे कहा,

“नागालैंड में यह प्रयोग पहली बार नहीं हुआ। इससे पहले भी इस तरह की सरकार बन चुकी है, क्योंकि यह उस राज्य की जरुरत है। जिस तरह की घटनाएं बॉर्डर स्टेट होने की वजह से वहां हुआ करती हैं, इसके लिए जरूरी है कि वहां राजनीतिक संघर्ष या तनाव ना हो। विकास के ध्येय को रखते हुए कुछ अहम कदम उठाए जाएं, यह सोचकर इस तरह के फैसले लिए जाते हैं”।

अब संजय राऊत चाहें जो कहें, परंतु ये कोई संयोग नहीं है कि Nagaland में अचानक से विपक्ष के सिद्धांत को दरकिनार करते हुए NCP ने NDPP BJP government गठबंधन को समर्थन दिया हो।

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जबसे महाविकास अघाड़ी में विघटन हुआ है, तब से शरद पवार और उनकी एनसीपी ऐसे लोगों से दूरी बना रही है, जिनके साथ जुड़ने पर उन्हे भी “टुकड़े टुकड़े गैंग” का समर्थक बताया जाए।

मायावती की भांति इन्होंने भी भारत जोड़ो यात्रा को अपना प्रत्यक्ष समर्थन नहीं दिया, और कांग्रेस के कट्टर सहयोगी कहे जाने के बाद भी उनके लगभग हर गतिविधि से दो हाथ की दूरी बनाए रखी।

भाजपा समर्थित गठबंधन को अप्रत्याशित सहयोग देना कोई संयोग नहीं,

इसके अतिरिक्त शरद पवार ने भी पिछले कुछ समय से भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं, जैसे नितिन गडकरी के साथ अपनी निकटता बढ़ाई है। अब इसके अनेक मायने निकाले जा सकते हैं, परंतु जिस बात को कोई अनदेखा नहीं कर सकता, वह यह है कि शरद पवार अपने आप को राजनीति में बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार है।

कहीं न कहीं उनकी ये मंशा है कि कुछ भी हो, परंतु उनका हाल आगे चलकर अखिलेश यादव, नीतीश कुमार या फिर उद्धव ठाकरे की तरह न हो। न तो वे ममता बनर्जी की तरह केंद्र को ही चुनौती देकर अपनी राह कठिन न करना चाहते हैं, और न ही वे अरविन्द केजरीवाल की भांति अलगाववाद का मार्ग चुनने को तैयार हैं।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि नागालैंड में भाजपा समर्थित गठबंधन को अप्रत्याशित सहयोग देना कोई संयोग नहीं, अपितु एक सोचा समझ प्रयोग है, जिसका उद्देश्य केवल एक है : एनसीपी को राजनीति में अक्षुण्ण रखना।

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