मनीष कश्यप के साथ क्या हो रहा है?

इस रात की कोई सुबह नहीं......

“लोकतंत्र खतरे में है!”

“आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है….”

“लोकतंत्र की हत्या हो रही है!”

विगत कुछ दिनों से आप यही सब कथित समाजसेवियों एवं राजनीतिज्ञों के माध्यम से रिपीट मोड में सुन रहे है। हो भी क्यों न, आखिर उनके आराध्य, राहुल गांधी के विरुद्ध एक भारतीय न्यायालय ने कार्रवाई करने की “हिमाकत” जो की है। परंतु जो कुछ दिनों पूर्व मनीष कश्यप के साथ बिहार में हुआ, जिस कारणवश हुआ, उससे एक प्रश्न तो अवश्य उठता है : ये भेदभाव क्यों?

इस लेख में पढिये मनीष कैसे कश्यप के साथ जो हो रहा है, वह लोकतंत्र का उपहास उड़ाने और लोकतंत्र के आदर्शों को तार तार करने से कम नहीं है। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

मनीष कश्यप है कौन?

सर्वप्रथम प्रश्न तो यही उठेगा, ये मनीष कश्यप है कौन? ये बिहार का एक पत्रकार है, जो सोशल मीडिया और यूट्यूब के माध्यम से बिहार संबंधित समाचार और बिहार की समस्याओं पर चर्चा करते और प्रकाश डालते है। इनको कई Memer “मजाक बना के रखा है” वाले क्लिप के पीछे बढ़िया से जानते होंगे, और ये SachTak News नाम से यूट्यूब चैनल संचालित कर रहे हैं।

इन्हे हाल ही में बिहार पुलिस ने हिरासत में लिया। इनपर आरोप है कि इन्होंने फर्जी खबरों के जरिए सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने एवं अराजकता फैलाने का प्रयास किया, जिसके कारण इनकी संपत्ति भी कुर्क हो सकती है। इतना ही नहीं, मनीष कश्यप को जल्द ही तमिलनाडु पुलिस को सौंपा जा सकता है, जिनके अनुरोध पर ये कार्रवाई की गई है।

परंतु मनीष कश्यप ने ऐसा भी क्या किया, जिसके पीछे बिहार पुलिस हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गई है? उसका दोष केवल इतना था कि जब तमिलनाडु में हिन्दी भाषी, विशेषकर बिहार के निवासियों पर अत्याचार हो रहा था, तो उसने इस पूरे प्रकरण पर बिना लाग लपेट के कवरेज की। यूं समझिए कि मनीष कश्यप ने वही दिखाया, जो तमिलनाडु में घटित हो रहा था।

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क्या तेजस्वी सरकार तानाशाही नहीं?

तो क्या बिहार और बिहारियों के संबंध में कुछ भी दिखाना अपराध है? कम से कम बिहार पुलिस के रवैये से देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है। बिहार पुलिस ने सोशल मीडिया में भ्रामक फोटो, वीडियो शेयर करने के आरोप में यूट्यूबर मनीष कश्यप समेत 4 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है। वहीं, तमिलनाडु पुलिस ने भी अफवाह फैलाने वाले 9 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।

इतना ही नहीं, बिहार पुलिस ने सिलसिलेवार तरीके से ट्वीट कर कहा है कि तमिलनाडु में बिहार के लोगों के साथ हो रही हिंसा को लेकर जानबूझ कर सुनियोजित तरीके से भ्रामक, अफवाह जनक तथा भड़काने वाले फोटो, वीडियो, टेक्स्ट मैसेज इत्यादि शेयर कर जनता के बीच भय का माहौल पैदा किया जा रहा है। इससे कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने की संभावना है।

पुलिस ने कहा है कि उन्होंने 30 वीडियो एवं पोस्ट चिन्हित किये हैं। इसको लेकर बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई ने धारा 153/153 (ए)/153 (बी)/505 (1) (बी)/505(1) (सी)/468/471/120 (बी) आईपीसी एवं आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।

अब IPC की जिन धाराओं के अंतर्गत मनीष कश्यप समेत 4 लोगों पर कार्रवाई की गई है, उनपे ध्यान दीजिए। कुछ धाराएँ तो ऐसी है, जो सीधा सीधा उपद्रव और दंगा फसाद की ओर संकेत देती है। क्या मनीष कश्यप उपद्रवी हैं? क्या उन्होंने बिहार में दंगे भड़काने का प्रयास किया है? जिस बिहार में अग्निवीर योजना को लेकर मचाए गए उपद्रव को लेकर धाराएँ लग सकती थी, उन धाराओं में मनीष कश्यप को हिरासत में लेकर ऐसा पेश किया जा रहा है मानो इनके एक इशारे पर बिहार उपद्रवियों के हवाले कर दिया जाता।

अब स्वयं अपने आप से पूछिए : क्या ये तेजस्वी सरकार की तानाशाही नहीं है? [मुख्यमंत्री भले नीतीश हो, पर प्रशासन तो….] क्या ये लोकतंत्र को खतरे में नहीं डालता? मानिए, कल को आपको किसी व्यक्ति के चुटकुले पसंद नहीं आए, तो आप क्या करोगे? या तो उससे बात नहीं करोगे, या फिर सीधा कहोगे : भाई पकाओ मत। आप उस व्यक्ति के खराब जोक्स के लिए उसे फांसी पर तो नहीं लटका दोगे, हैं न? परंतु बिहार में यही हो रहा है।

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यहाँ पर कुछ विशेष प्राणी ऐसी दलील देंगे कि मोदी सरकार भी तो यही कर रही है, उन्होंने कौन सा लोकतंत्र का उद्धार किया है। अपराध सिद्ध होने पर कार्रवाई होना, और केवल आरोप की आधार पर दंडात्मक कार्रवाई में आकाश पाताल का अंतर होता है।

आप खुद देख लीजिये अधिकतम लोगों पे जो भी कार्रवाई हो रही है, वह या तो आरोप सिद्ध होने पर, या फिर कोर्ट के द्वारा निर्णय देने के बाद ही हो रही है।

ज्यादा कुछ नहीं, केवल राहुल गांधी के वर्तमान केस पर ध्यान देते हैं। जब वे दोषी सिद्ध हुए, तभी तो कार्रवाई हुई.

क्या नरेंद्र मोदी ने ये मन बनाया कि चलो, आज राहुल गांधी को प्रताड़ित करते हैं, और सूरत के न्यायालय को आदेश दे दिया गया कि उसे इन धाराओं में फंसा दो?

परन्तु बिहार में खास कर मनीष कश्यप के प्रकरन को देख् के यहि लग रह है की यहाँ न मुकदमा न सुनवाई, सीधा कार्रवाई, जिसके विरुद्ध अपील के भी द्वारा लगभग बंद ही हैं। क्या ये ब्रिटिश राज का स्मरण नहीं कराता? ये तो कुछ भी नहीं है, कुछ लोग ये दावा कर कि मनीष कश्यप का असली नाम “त्रिपुरारी तिवारी” है, और अब बिहार के राजनेता इसे जातिवादी का एंगल देने में लगे हैं। सत्ता के लिए और कितना नीचा गिरोगे तेजस्वी?

कहाँ जाएगा बिहार?

चलिए, हम मान लेते हैं कि बिहार पुलिस ठीक बोल रहे हैं, मनीष कश्यप ने अफवाह फैलाई और लोगों को भ्रमित किया। ये भी मान लेते हैं कि कुछ दिक्कत नहीं है, बिहार में सब ठीक है, तो फिर इस राज्य से पलायन ही क्यों हुआ? ऐसा क्या है अन्य राज्यों में जो बिहार में नहीं है? क्या ये पलायन दो तीन दिन पुरानी समस्या है?

जी नही!

जबसे 1989 में बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ है, एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब बिहार के निवासी को लगा हो कि बिहार पे उन्हे गर्व है। धर्म, जात पात, आप जो विषय बोलिए, उसी के नाम पर उन्हे बाता गया और विकास और प्रगति का तो मानिये चिथरा ही साफ़् कर दिया । स्थिति तो यह हो गई कि आज छतीसगढ़ और ओड़ीशा तक मूलभूत संरचना में बिहार से मीलों आगे हैं, और ये कोई मज़ाक का विषय नहीं है। एक समय में वैश्विक गतिबिधि तय करने वाला बिहार आज उपहास का प्रतीक हो गया हैं और इसका दोषी बिहार के सत्ताधारी पिसाच ही हैं जिनकी न कोइ आत्मा है न ही कोइ विचार.

हम पुछ्ते है क्या इन सब विषयों पर चर्चा करना भी पाप है? क्या मनीष कश्यप द्वारा ये बताना कि बिहार के प्रवासी तमिलनाडु में ठीक से नहीं रह पा रहे हैं, सब बकवास है? कुछ भी सच नहीं है? ये तो वही बात हो गई भैया कि 1947 में भारत का विभाजन हुआ, और लोग कहते हों कि कुछ भी नहीं हुआ, सब बधिया है!

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नितिश बाबु और पिछड़ों के पोस्टर बॉय के सपूत माननीय तेजस्वी जी  सब ठीक नहीं है, और शुत्तुरमुर्ग की भांति रेत में सिर धँसाने से सत्य नहीं परिवर्तित हो जाएगा।

इस समय देश का अधिकतम ध्यान राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने और उसके पीछे लिबरल मंडली के करुण क्रंदन पर केंद्रित है। परंतु जो कुछ बिहार में घटित हो रहा है, और मनीष कश्यप पे कार्रवाई के नाम पर जो कुछ भी बिहार सरकार कर रही है, वो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत तो नहीं ही है, और बिहार के लिए तो बिल्कुल नहीं!

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