Sam Bahadur Movie: कुछ लोगों के लिए उनकी फिल्में अग्निपरीक्षा से कम नहीं होती। किसी को नये रिकॉर्ड बनाने होते हैं, तो किसी को अपने करियर में एक नया आयाम पेश करना होता है। परंतु कुछ फिल्में उन रचनाकारों के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन जाता है, जैसे मेघना गुलज़ार के लिए “सैम बहादुर” इस समय हो चुका है।
इस लेख में पढिये कि कैसे मेघना गुलज़ार के लिए “सैम बहादुर” (Sam Bahadur Movie) का हर मामले में सफल होना अवश्यंभावी है।
Sam Bahadur Movie से दांव पर लगी मेघना की प्रतिष्ठा
पिछले कई वर्षों से भारत के इतिहास को एक नये सिरे से पेश किया जा रहा है। उद्योग कोई हो, भाषा कोई हो, पर सब में लगभग एक बात समान है : अब भारत के असली नायकों को उनका उचित सम्मान दिया जाएगा। इसी कड़ी में खबर आई है कि बहुप्रतीक्षित बायोपिक “सैम बहादुर” की शूटिंग सम्पूर्ण हो चुकी है।
Sam Bahadur Movie का निर्देशन मेघना गुलज़ार ने किया है और ये RSVP मूवीज़ के अंतर्गत आएगी। इस फिल्म में शीर्षक भूमिका में विकी कौशल है, जो भारत के सबसे यशस्वी कलावंत में से एक है और वो फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का चित्रण करेंगे। इसके अतिरिक्त सान्या मल्होत्रा उनकी पत्नी सिलू की भूमिका में होंगी, जबकि फातिमा सना शेख पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सिल्वर स्क्रीन पर चित्रित करते हुए दिखाई देंगी।
Sam Bahadur Movie के भारतीय सेना में युवावस्था से लेकर 1971 के युद्ध में उनकी भूमिका को चित्रित करेंगी, और 1 दिसंबर 2023 को सिनेमाघरों में इसका प्रदर्शित होना तय है। ऐसे में मेघना गुलज़ार को केवल इस धाकड़ सैनिक की विरासत के साथ न्याय ही नहीं करना है, अपितु ये भी सुनिश्चित करना है कि उनकी छवि को एजेंडावाद की बलि न चढ़ाई जाए।
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“राज़ी” और “छपाक” ने गिराई प्रतिष्ठा
परंतु एजेंडावाद की चिंता क्यों, और किसलिए? मेघना गुलज़ार कहने को बुरी फिलममेकर नहीं है। 2015 में प्रदर्शित “तलवार” फिल्म से इन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी। परंतु “राज़ी” और “छपाक” से बतौर फिल्ममेकर इनकी क्षमताओं पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लग चुका है।
“राज़ी” 1971 के भारत पाक युद्ध पर आधारित थी, और वह “कॉलिंग सहमत” नामक पुस्तक से प्रेरित थी। ये फिल्म वित्तीय रूप से मेघना के लिए सफल सिद्ध हुई, और प्रमुख भूमिका निभाने वाली आलिया भट्ट के लिए ये एक महत्वपूर्ण रोल था, जिसमें वे सफल भी रही। परंतु तथ्यों पर ये फिल्म मात खा गई, और इस फिल्म पर वामपंथी एजेंडा को बढ़ावा देने एवं पाकिस्तान को सकारात्मक दृष्टिकोण में दिखाने का आरोप लगा।
ये हम नहीं कह रहे, ये आरोप “कॉलिंग सहमत” के लेखक एवं भारतीय नौसेना के पूर्व अफसर, हरिन्दर सिक्का ने कहा था।
2020 में एक सनसनीखेज साक्षात्कार में इन्होंने उजागर किया कि अगर राज़ी को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल भी जाता, तो भी वे इसे नहीं स्वीकारते। ऐसा इसलिए क्योंकि ये फिल्म उनकी मूल पुस्तक से बिल्कुल विपरीत थी, और मूल पुस्तक के ठीक विपरीत सहमत को अपने कार्य पर ग्लानि हो रही थी।
और “छपाक” को कैसे भूल सकते हैं? ये वो फिल्म थी, जो केवल अपने मूल अभिनेत्री के एजेंडावाद के पीछे फ्लॉप हो गई थी। “राज़ी” के मुकाबले ये फिल्म उतनी बुरी नहीं थी, परंतु जिस तरह से बात का बतंगड़ बनाया, और CAA के विरोध के नाम पर दीपिका पादुकोण ने जो JNU यात्रा की, उसने इस फिल्म का सत्यानाश करके ही छोड़ा।
रही सही कसर अजय देवगन ने पूरी कर दी, जिन्होंने उसी दिन या 10 जनवरी 2020 को सूबेदार तानाजी मालुसरे के शौर्य पर आधारित “तान्हाजी : द अनसंग वॉरियर” सिनेमाघरों में प्रदर्शित की है।
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असफलता विकल्प नहीं
ऐसे में मेघना गुलज़ार के लिए असफलता ऑप्शन ही नहीं है, और केवल Sam Bahadur Movie को हिट कराने से काम नहीं चलेगा। “सैम बहादुर” यानि सैम मानेकशॉ ने ऐसे ऐसे कारनामे किये हैं कि उनपर तो पूरी एक वेब सीरीज़ बनाई जा सकती है।
परंतु अगर इसे एक फिल्म का रूप दे रहे हैं, तो कम से कम सैम मानेकशॉ के व्यक्तित्व को कड़क और दमदार बनाना पड़ेगा। एक अच्छा और सच्चा फिल्मकार वही है जो निजी जीवन में जैसा भी हो, परंतु अपनी विचारधारा अपने फिल्मों में न थोपे। अभय पन्नू का भारतीयता से कोई विशेष नाता नहीं, पर उन्होंने “रॉकेट बॉय्ज़” जैसी रोचक वेब सीरीज़ बनाई है। तो मेघना गुलज़ार के लिए “Sam Bahadur Movie” के व्यक्तित्व के साथ न्याय करना कौन सा असंभव काम है?