न जाने भारत में कितने ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति हुए हैं। जिनकी इतिहास में घनघोर उपेक्षा हुई है। जिनके हिमालय सदृश व्यक्तित्व और योगदान को राई समान प्रस्तुत किया गया है। उन्हें चंद पृष्ठों और चंद शब्दों में समेट दिया गया। भारत में कुछ व्यक्तित्व हुए हैं जिन्हें भारत में वो सम्मान नही मिला जो विदेशी धरती पर उन्हें मिला। ऐसे एक श्रेष्ठ व्यक्ति्व हुए पांडुरंग सदाशिव खानखोजे, पाण्डुरंग खानखोजे भारतीय स्वतंत्रता के वो नायक हैं, जिनकी पहचान मेक्सिको में हरित क्रांति के जनक के तौर पर है।
महाराष्ट्र के वर्धा में जन्मे थे पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे
पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे का जन्म 7 नवम्बर 1883 को महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ था। पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे ने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा वर्धा में ही प्राप्त की। पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे महान स्वतंत्रता सेनानी बालगंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी विचारों से काफी प्रभावित थे। पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे 1900 के करीब संयुक्त राष्ट्र अमेरिका चले गए। जहां उन्होंने वाशिंगटन स्टेट कॉलेज में प्रवेश लिया। यहां से 1913 में उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की। पाण्डुरंग खानखोजे की पहचान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, कृषि वैज्ञानिक और इतिहासकार के तौर पर होती है। भारत के जिन क्रान्तिकारियों ने विदेशों भूमि से भारत की स्वतंत्रता की ज्योत को जलाया, उनमें पाण्डुरंग खानखोजे का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जायेगा। खानखोजे महान देशभक्त थे।
गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक नाम थे खानखोजे
बताया जाता है कि ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए गठित गदर पार्टी के संस्थापकों में एक नाम पाण्डुरंग खानखोजे का भी था। कैलिफोर्निया की माउंट तमालपाइस सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान खानखोजे की मुलाकात मेक्सिको के कई लोगों से हुई। मेक्सिकन नागरिकों ने 1910 की क्रांति में तानाशाही शासन को उखाड़ फेंका था, जिससे खानखोजे बहुत प्रभावित थे।
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अमेरिका में प्रवास के समय पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे ने वहां के खेतों में काम करने वाले भारतीयों से जाकर भेट करके स्वतंत्रता संग्राम के अपने विचार पर उनसे बातचीत करते थे। इस दौरान मेक्सिकन नागरिकों से भी उनका मुलाकात होती थी। पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे ने अप्रवासी भारतीयों के जरिए भारत में अंग्रेजों हुकूमत पर हमले की रणनीति तैयार की थी, जो प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो जाने के चलते सफल नही हो पाई थी। जिसके उपरांत पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे ने पेरिस में भीकाजी कामा और रूस में ब्लादिमीर लेनिन समेत कई नेताओं से भेंट की और भारत की आजादी के लिए समर्थन मांगा। इसके निर्वासन के खतरे के चलते उन्होंने मेक्सिको में शरण ली। जहां उन्हें राष्ट्रीय कृषि विद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई। जिसके उन्होंने मक्का, गेहूं, दाल और रबर पर कई शोध किए। साथ ही उन्होंने ठंड और सूखा प्रतिरोधी कृषि उपज की किस्मों का विकास किया। मेक्सिको में उन्होंने किसानों के लिए मुफ्त कृषि विद्यालय की शुरूआत की थी। उनके ये प्रयास मेक्सिकों में हरित क्रांति की वजह बने। यही कारण है कि मेक्सिको में पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे को हरित क्रांति के जनक के रुप जाना जाता है।
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