पांचों उँगलियाँ कभी एक समान नहीं हो सकती। ठीक इसी भांति सभी एक विषय पर एकमत हों, ऐसा शायद ही कभी हो सकता है। परंतु किसी वस्तु या विषय से असहमति एक बात है, और अपनी कुंठा में उस वस्तु को निरंतर अपमानित करना दूसरी। RRR से कुछ लोगों को जाने किस जन्म का बैर है कि ऑस्कर में पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी उसे घृणा का सामना करना पड़ रहा है।
इस लेख में पढिये कि कैसे एस एस राजामौली की “RRR” के विरुद्ध विद्वेष अभी भी समाप्त नहीं हुआ है, और अंग्रेज़ से लेकर वामपंथी अभी भी इसके पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं।
BBC की कुंठा पुनः हुई जगज़ाहिर
बीबीसी एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार भी गलत कारणों से। इस बार इन्होंने वर्तमान अकादेमी पुरस्कारों के सर्वश्रेष्ठ पलों की एक झलकी सोशल मीडिया के अधिकतम मंचों पर प्रदर्शित की।
तो इसमें क्या समस्या है? समस्या ये है कि इसमें सर्वश्रेष्ठ ओरिजिनल सॉन्ग जीतने के बाद भी RRR का उल्लेख मात्र नहीं है। परंतु BBC तो ब्रिटिश है, हमें इनकी कुंठा से क्या?
आप बस इनके वीडियो ट्वीट पर ध्यान दीजिए :
Must-see moments from the Oscars 2023 https://t.co/Mt7uUayoox https://t.co/YX1x0HGogD
— BBC News (World) (@BBCWorld) March 13, 2023
इसमें लगभग सभी प्रमुख ऑस्कर विजेताओं के वक्तव्य का थोड़ा थोड़ा अंश दिखाया गया, चाहे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हो, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री हो, या सर्वश्रेष्ठ फिल्म। परंतु जब बात आई सर्वश्रेष्ठ ओरिजिनल सॉन्ग की, तो उसमें RRR को छोड़कर उन सभी प्रविष्टियों को दिखाया गया, जो इस श्रेणी में नामांकित हुई, चाहे वह रिहाना का “लिफ्ट मी अप” हो, या फिर लेडी गागा का “होल्ड माई हैंड”।
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अंग्रेज़ पानी पी पीकर RRR को कोसते
परंतु आपको क्या लगता है, ये पहली बार हुआ है? RRR से कुछ लोगों को विशेष चिढ़ है, जिसमें सबसे अग्रणी हैं अंग्रेज़ बुद्धिजीवी। इन्हे आज भी लगता है कि समस्त संसार को इनकी बातें निस्संकोच माननी चाहिए, और जब RRR को संसार में अद्वितीय समर्थन और प्रसिद्धि मिली, तो इनकी छाती पर सांप लोटने लगा। अब ऐसा तो है नहीं कि इससे पूर्व कोई भारतीय फिल्म ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तहलका न मचाया हो। परंतु RRR की भांति अंग्रेज़ों की पोल खोलकर विश्व भर में शायद ही इससे पूर्व किसी भी फिल्म ने ऐसा प्रभुत्व जमाया है।
इस कुंठा का सार्वजनिक प्रदर्शन अनेक बार हुआ है। उदाहरण के लिए जहां विश्व के कोने कोने में RRR को जबरदस्त प्रशंसा एवं स्वीकृति मिली, तो वहीं अंग्रेज़ अलग ही अभियान चला रहे थे : RRR को नीचा दिखाने की।
विश्वास नहीं होता तो RRR पर इस महोदय के बयान पर ध्यान दीजिए।
द स्पेक्टैटर नामक पोर्टल के लिए लिखे अपने हास्यास्पद लेख में कथित इतिहासकार रॉबर्ट टोंब्स बकते हैं, “हमने पिछली कुछ शताब्दियों में दुनिया भर में अहम भूमिका निभाई है, जिससे हमने दोस्तों के साथ-साथ काफी दुश्मन भी कमाए हैं। कई देशों ने खुद की झूठी वीरता की कहानियां गढ़ते हुए हमें खलनायक की भूमिका में दिखाया है”
पर यह नौटंकी यहीं नहीं रुकी। ये आगे कहते हैं, “नेटफ्लिक्स को इस फिल्म को बढ़ावा देने पर शर्म आनी चाहिए। आरआरआर हिंसक हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है, जो भारतीय संस्कृति और राजनीति पर हावी हो रहा है जिसे मौजूदा सरकार ने हवा दी है। उन्होंने कहा, “फिल्म में ब्रिटिश अधिकारियों और सैनिकों को पूरे देश में घूमते और अपराध करते दिखाया गया, जो कि झूठ और सत्य से परे है। आरआरआर इतिहास के बारे में कुछ नहीं बताती, वो केवल सिंथेटिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश करती है।”
The British have long been fair game as film villains. But Netflix's blockbuster RRR takes things too far
✍️ Robert Tombshttps://t.co/xBCGlAYlKi
— Coffee House (@SpecCoffeeHouse) July 19, 2022
अब अगर RRR कृत्रिम भावनाओं को भड़काने का प्रयास कर रहा है तो आप लगभग दो सौ वर्ष तक हमारे मातृभूमि पर क्या कर रहे थे। “सरदार उधम” फिल्म में दिखाए गए कुछ दृश्य उसी जलियांवाला बाग के नरसंहार को दिखाते हैं जिसका आदेश वर्षों पूर्व आपके पुरखों ने दिया था, जिस पर माइकल ओ ड्वायर जैसे दुष्ट को बड़ा गर्व होता था और जिसके लिए आज तक न आपके वंशजों ने, न आपके देश और ना आपकी सरकार ने आधिकारिक तौर पर कभी क्षमा मांगी है।
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अपने वामपंथी भी कम नहीं
परंतु इन अंग्रेजों को भी कहाँ तक सुनाएँ, जब अपने ही देश में कुछ “भूरे साहब” इस फिल्म के असफल होने की प्रार्थना कर रहे थे। स्मरण है वो लेख, जहां RRR की सफलता को “हिन्दू राष्ट्रवाद के बढ़ते खतरे” से जोड़कर देखा जा रहा था?
एक ओर रेसूल पूकुट्टी जैसे लोग थे, जो RRR को केवल इसलिए कोस रहे थे, क्योंकि उसमें पश्चिमी वोक मंडली को प्रसन्न करने योग्य सामग्री नहीं थी, और फिर रत्ना पाठक शाह जैसे लोग भी थे, जिनके लिए RRR ऑस्कर योग्य नहीं थी, क्योंकि वह “रिग्रेसिव थी और भारत को पीछे ले जाती थी”।
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