कहीं Roy Bucher पेपर्स नेहरू की पोल न खोल दे

नेहरू: ये दुख काहे खत्म नही होता !

Roy Bucher

Roy Bucher: सोशल मीडिया ने इतना तो सुनिश्चित कर दिया है कि भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लोग पहले की भांति सम्मान की दृष्टि से शायद ही देख पाएँ। पिछले कई वर्षों में ऐसे ऐसे तथ्य निकलकर सामने आए हैं, जिससे ये सिद्ध होता है कि जवाहरलाल नेहरू कुछ भी थे, परंतु एक कुशल प्रशासक तो बिल्कुल नहीं थे।

इस लेख में पढिये  कैसे भारत के एक पूर्व सैन्य प्रमुख से संबंधित दस्तावेज़ों के सार्वजनिक होने पर भारतीय खेमे में हलचल मची हुई है, और कैसे यह जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

Roy Bucher से संबंधित दस्तावेज़ से मची भारतीय खेमे में हलचल 

जवाहरलाल नेहरू पुनः सुर्खियों में है, इस बार एक ब्रिटिश सैन्य अफसर के कारण। असल में ब्रिटेन में कुछ समय पूर्व ही जनरल फ्रांसिस रॉबर्ट बूचर से संबंधित कुछ दस्तावेज़ सार्वजनिक हुए हैं। इन्हे ब्रिटेन के नेशनल आर्मी म्यूजियम में रखा गया है और कुछ सूत्रों के अनुसार भारत नहीं चाहता कि ये समस्त दस्तावेज़ सार्वजनिक हो।

परंतु ऐसा क्यों? जनरल Roy Bucher स्वतंत्र भारत के सर्वप्रथम सैन्य प्रमुख थे, जिन्होंने 1949 तक भारत को अपनी सेवाएँ दी थी।

तो समस्या क्या है? असल में जनरल बूचर से संबंधित कुछ दस्तावेज़ कुछ समय पूर्व सार्वजनिक हुए थे, जिसमें जवाहरलाल नेहरू और कश्मीर के विषय विषय पर कुछ अनसुने तथ्य सामने आए।

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उक्त दस्तावेज़ों के अनुसार जनरल Roy Bucher नहीं चाहते थे कि भारतीय सैनिक कश्मीर के लिए एक लंबी लड़ाई लड़े  और उन्हें भारतीय सैनिकों की क्षमताओं पर भी संदेह था। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू पर दबाव बनाया कि इस विषय को अंतरराष्ट्रीय बनाएँ, और इसी के कुछ समय बाद कश्मीर के मुद्दे को यूएन तक ले जाया गया।

Roy Bucher की एक नहीं सुनते थे सरदार पटेल

परंतु जनरल बूचर का ये प्रथम प्रयास नहीं था। हैदराबाद पर भी उसने ऐसा ही रुख अपनाया था। यहाँ तक कि जवाहरलाल नेहरू की भांति वो भी नहीं चाहते था कि भारतीय सेना हैदराबाद को मुक्त कराने में सक्रिय भूमिका निभाए।

जब नेहरू विदेशी दौरे पर निकल पड़े, तो सरदार पटेल ने सही अवसर देखते हुए “ऑपरेशन पोलो” की घोषणा की। जनरल Roy Bucher इसके धुर विरोधी थे, और उसने यहाँ तक कह दिया कि हैदराबाद की ओर एक भी कदम बढ़ाने पर बॉम्बे और अहमदाबाद पर हवाई हमले का खतरा बढ़ जाएगा। इसपर सरदार पटेल ने उसकी ‘चिंता’ को हंसी में उड़ाते हुए कहा कि जब ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध को झेल सकती है, तो फिर बॉम्बे और अहमदाबाद ऐसे झटकों को कैसे नहीं सह सकती?

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परंतु Gen Roy Bucher तब भी नहीं माने। उसने यहाँ तक प्रश्न उठाया कि क्या भारतीय सैनिक हैदराबाद जैसे मोर्चे पर लंबे समय तक युद्ध कर भी सकते हैं? इसपर सरदार पटेल ने हँसते हुए कहा, “आपको क्या लगता है, वो लोग एक हफ्ता भी टिक पाएंगे?”

ये बात शायद 12 सितंबर 1948 के आसपास बोली गई थी, और अगले ही दिन हैदराबाद को निज़ाम शाही, रजाकारों एवं कम्युनिस्टों के गठजोड़ से मुक्त कराने हेतु “ऑपरेशन पोलो” लॉन्च हुआ। सरदार पटेल के शब्दों को भारतीय थलसेना ने अनसुना नहीं जाने दिया, और मेजर जनरल जयंतो नाथ चौधुरी के नेतृत्व में भारतीय थलसेना ने हैदराबादी गुंडों को पटक पटक कर धोया। यहाँ तक कि एक हफ्ता पूर्ण होने से पूर्व ही 17 सितंबर 1948 को अनंत चतुर्दशी यानि गणपति विसर्जन के शुभ अवसर पर भारतीय सेना के समक्ष हैदराबाद की निज़ामशाही को आत्मसमर्पण के लिए विवश होना पड़ा।

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तो प्रश्न ये उठता है कि जब सरदार पटेल ने Gen Roy Bucher की एक न सुनके हैदराबाद को स्वतंत्र कराकर ही दम लिया, तो फिर कैसे नेहरू कश्मीर पर झुक गए? क्या वे इतने भीरु थे कि जनरल बूचर की बकवास के सामने उन्होंने हार मान ली, या फिर एक अंतरराष्ट्रीय लीडर बनने की चाह कुछ ज़्यादा ही उन्हे खा रही थी।

दोनों ही संभावनाएँ संभव है, और यदि जनरल रॉय बूचर से संबंधित दस्तावेज़ों में तनिक भी सच्चाई है, तो जवाहरलाल नेहरू की छवि पुनः संदेह के घेरे में आ जाएगी।

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