पाकिस्तान और भारतीय फिल्म उद्योग में एक अजब नाता है। हो भी क्यों न, विभाजन से पूर्व देश का अधिकांश फिल्म उद्योग अविभाजित पंजाब एवं बंगाल में जो स्थित था। परंतु आज जो नाता है दोनों में, उसे समझना काफी कठिन है, खासकर तब जब बात यूसुफ खान की हो, जिन्हे हम सब “ट्रैजडी किंग” दिलीप कुमार के नाम से बेहतर जानते हैं।
दिलीप कुमार को भला कौन नहीं जानता। कभी पेशावर की गलियों से बॉम्बे [अब मुंबई] में स्थित मायानगरी का सफर तय करने वाले दिलीप कुमार का नाम आज भी इंडस्ट्री में बड़े सम्मान से लिया जाता है।
एक समय था, जब इनका, राज कपूर और देव आनंद जैसे कलाकारों का सिक्का पूरे इंडस्ट्री पर चलता था। दिलीप कुमार बड़े ही धाकड़ स्वभाव के थे, और कभी कभी तो सत्ता पक्ष, यानि नेहरू गांधी परिवार से ‘राष्ट्रहित’ में अपना विरोध जताने से भी नहीं चूकते थे।
परंतु कुछ बातें ऐसे भी हैं, जो आज भी रहस्य के घेरे में है। जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध ज़ोरों पर था, तब एक बार एक खबर उड़ी थी कि एक महत्वपूर्ण हस्ती के घर में जासूसी उपकरण पाए गए हैं, और ये व्यक्ति पाकिस्तान को काफी जानकारियाँ भी पहुंचाते थे।
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पुलिस एक बार दिलीप कुमार के घर भी पूछताछ के संबंध में पहुंची थी
इसी संबंध में कलकत्ता पुलिस एक बार दिलीप कुमार के घर भी पूछताछ के संबंध में पहुंची थी।
असल में 60 के दशक में एक बार दिलीप कुमार पर पाकिस्तानी जासूस होने का आशंका जताया गया था।
हुआ कुछ ऐसा था कि कोलकाता पुलिस ने एक पाकिस्तानी जासूस को गिरफ्तार किया था। उसकी डायरी में दिलीप कुमार सहित बहुत से बड़े लोगों के नाम थे। मामले की अन्वीक्षण हेतु कोलकाता पुलिस ने सोच-विमर्श करने के बाद दिलीप कुमार के घर पर छापा डाल दिया था।
छापेमारी के बाद दिलीप कुमार के घर में कुछ भी संदिग्ध वस्तु नहीं मिलने का दावा तो किया गया था, परंतु छापेमारी के बाद दिलीप कुमार के बारे में बहुत सी अफवाहें चलने लगी थीं।
अफवाहों में यहां तक कहा जाता था कि दिलीप कुमार के घर के फर्श के नीचे से रेडियो ट्रांसमीटर बरामद हुआ है और वह फिल्म इंडस्ट्री में पाकिस्तान के मुसलमान जासूसों के सरगना हैं।
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पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-इम्तियाज से नवाजा
अब ये बात कितनी सत्य है, और कितनी झूठ, ये तो समय के गर्भ में ही छुपा है। परंतु कुछ घटनाएँ ऐसी भी थी, जो इन आशंकाओं को और बल भी देती थी।
उदाहरण के लिए जब पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-इम्तियाज से नवाजा तो उन्होंने इस सम्मान को लेने से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सलाह भी ली थी और तद्पश्चात 1998 में दिलीप कुमार पाकिस्तान इस अवॉर्ड को लेने गए थे और साथ में सुनील दत्त को लेकर गए थे।
ऐसा इसलिए क्योंकि सुनील दत्त का जन्म भी अविभाजित पाकिस्तान में ही हुआ था। ऐसे में कारगिल युद्ध के समय कुछ लोगों ने दिलीप कुमार से पाकिस्तान के सम्मान को लौटाने की बात कही थी मगर दिलीप कुमार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था।
इसके अतिरिक्त पाकिस्तानी नेताओं, जैसे क्रिकेटर [और फिर प्रधानमंत्री] इमरान खान के साथ भी दिलीप कुमार के अच्छे खासे संबंध थे।
पूर्व में पाकिस्तान के विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने इस बात को स्पष्ट किया कि कैसे दिलीप कुमार का कुछ महत्वपूर्ण मिशन के नाम पर पाकिस्तान भी आना जाना लगा रहता था।
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इतना ही नहीं, वे उस वक्त अधिक सक्रिय थे जब ज़िया उल हक का शासन प्रारंभ ही हुआ था, और ये भी एक तथ्य है कि मोरारजी देसाई की भांति एक समय दिलीप कुमार को भी पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान, निशान ए पाकिस्तान से पुरस्कृत करने का प्रस्ताव भी दिया गया था, जिसे बाद में उन्होंने ठुकरा दिया।
क्या यह सब केवल संयोग मात्र ही था? क्या दिलीप कुमार वास्तव में पाकिस्तानी जासूस नहीं थे? इन प्रश्नों के उत्तर या तो पाकिस्तान में छुपे हैं, या फिर दिलीप कुमार के पास हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं है।
Sources:
Neither a Hawk nor a Dove by Khurshid Mahmud Kasuri
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