जितना मिलता है, उससे अधिक डिज़र्व करती हैं यामी गौतम

इस अनमोल रत्न को बॉलीवुड नहीं खो सकता...

भारतीय सिनेमा, विशेषकर बॉलीवुड में अभिनेत्रियों के लिए कोई विशेष स्कोप नहीं होता। स्टार बनने के लिए कुछ विशिष्ट पैरामीटर होते हैं। या तो आप आलिया भट्ट या दीपिका पादुकोण की भांति “ग्लैमर डॉल” बन जाओ, या फिर स्वरा भास्कर या तापसी पन्नू की भांति अपने अपने एजेंडे की ध्वजवाहक बन जाओ। इसके अलावा कोई अगर एक सशक्त अभिनेत्री बनने का प्रयास करे, तो उसके लिए कम ही जगह होती है। परंतु यामी गौतम को इन सब से कोई वास्ता नहीं।

इस लेख में पढिये बॉलीवुड की सबसे अनकन्वेशनल स्टार यामी गौतम के बारे में , और कैसे इन्होंने बॉलीवुड के मापदंडों को साइड में रखकर अपने लिए अलग स्थान बनाया।

आईएएस बनने के स्वप्न से सिल्वर स्क्रीन तक

हाल ही में यामी गौतम स्टारर “चोर निकल कर भागा” नामक थ्रिलर नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित हुई। इस फिल्म को लेकर बहुत अधिक हाइप नहीं थी, परंतु इस फिल्म के चित्रण, और इसके अनोखे ट्विस्टस ने दर्शकों के बीच अपनी अलग जगह बनाई।

कई लोगों ने यामी गौतम को इस फिल्म का एक्स फैक्टर बताया, और उनकी भूमिका के लिए उनकी प्रशंसा भी की, पर क्या आपको पता है कि यामी के लिए उनका प्रथम विकल्प अभिनय बिल्कुल नहीं था?

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में जन्मी, एवं चंडीगढ़ में पली बढ़ी यामी गौतम एक फिल्मी परिवार से नाता रखती हैं। इनके पिता मुकेश गौतम पंजाबी फिल्म उद्योग में सफल भी रहे, और उसके बाद भी यामी गौतम चाहती थी कि वे आईएएस बने।

वे इसके पीछे विधि यानि लॉ के अध्ययन में भी जुट गई, परंतु परिस्थितियाँ थी कि इनका भाग्य, यामी के कदम स्वत: ही फिल्म उद्योग की ओर मुड़ गए।

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“विकी डोनर” से भरी उड़ान 

यामी गौतम ने अपना करियर विज्ञापनों से प्रारंभ, और वे “फेयर एंड लवली” की आइकन ही बन गई। परंतु इसी बीच इन्होंने टीवी उद्योग में भी अपना भाग्य आजमाया, और “चाँद के पार चलो”, “राजकुमार आर्यन”, “ये प्यार न होगा कम” जैसे शो में भी काम किया।

इसी बीच इन्हे पंजाबी से लेकर तमिल, तेलुगु उद्योग तक से ऑफर मिलने लगे, और इन्होंने लगभग हर उद्योग में अपना भाग्य आजमाया।

परंतु यामी को प्रसिद्धि मिली शूजीत सरकार की फिल्म “विकी डोनर” से, जहां उनके साथ आयुष्मान खुराना ने भी अपना फिल्मी डेब्यू किया।

शूजीत इससे पूर्व दो ही फिल्में बनाए थे, और ये फिल्म एक प्रकार से उनके करियर को बना या बिगाड़ सकती थी। परंतु एक संवेदनशील विषय पर जिस प्रकार से शूजीत ने इस फिल्म को रचा, उसे दर्शकों ने इतना सराहा कि ये एक स्लीपर हिट सिद्ध हुई, और आयुष्मान एवं यामी, दोनों का ही करियर उड़ान भरने लगा।

न सम्मान का मोह न अपमान का भय….

अब यामी गौतम को प्रारंभ में टाइपकास्ट किया जाने लगा, और “बदलापुर” को छोड़कर उन्हे कहीं सफलता नहीं मिली। परंतु 2017 में उनके करियर ने एक अलग ही मोड़ लिया, जब संजय गुप्ता की “काबिल” फिल्म में इन्हे हृतिक रोशन के साथ काम करने का अवसर मिला।

यामी ने इस अवसर को दोनों हाथों से लपका और एक नेत्रहीन युगल की जोड़ी को हृतिक रोशन और यामी गौतम दोनों ने ऐसे निभाया, जिसे सदियोन याद किया जायेगा.

परंतु यामी रुकी नहीं। अन्य अभिनेत्रियाँ या तो फेमिनिज़्म का राग अलापती हैं, या फिर बराबर के भुगतान का रोना रोती है। परंतु बिना कोई ढिंढोरा पीटे, और बिना अपने संस्कृति से समझौता किये यामी गौतम ने हिन्दी फिल्म उद्योग में अपनी पैठ जमाना शुरू कर दी।

इसका प्रारंभ हुआ बहुचर्चित फिल्म “उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक” से। इस फिल्म की जान और शान दोनों विकी कौशल थे, और उनके अलावा कुछ हद तक मोहित रैना और परेश रावल की भूमिकाओं को सराहा गया।

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ऐसे में अगर यामी गौतम ने अपने छोटे पर महत्वपूर्ण भूमिका से अपनी पहचान बनाई, तो कुछ तो बात अवश्य रही होंगी। यही बात 2022 में “अ थर्सडे” एवं “दस्वी” में भी दिखी, जहां यामी ने अपने सशक्त अभिनय से अपनी अलग पहचान बनाई।

इसके अतिरिक्त यामी गौतम ने अपने प्रयोग की रीति जारी रखी। न वे दीपिका पादुकोण की भांति अपनी संस्कृति का उपहास उड़ाने में विश्वास रखती हैं, और न ही वे कंगना रनौत की भांति अर्थ का अनर्थ करने में विशेषज्ञ है। स्वयं इनके शब्दों में, “मुझे फर्जी PR करना नहीं आता। मेरा काम मेरे लिए बोलता है!”

ऐसे रत्नों को बॉलीवुड को भूलके भी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहिए।

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