हाँ भई, अकबर हृतिक रोशन कम, नसीरुद्दीन शाह अधिक लगते थे

कर्म ही ऐसे थे....

इतिहास के अलग अलग दृष्टिकोण होते हैं, जैसे सत्य के। अंतर इस बात से पड़ता है कि आप किसके मुख से सुन रहे हो। आपको कभी न कभी मन किया होगा ये जानने का कि कुछ ऐतिहासिक नायक वास्तव में दिखते कैसे थे?

इस विषय को बल दिया है “ताज : Divided by Blood” सीरीज़, जहां अपेक्षाओं के ठीक विपरीत शहंशाह अकबर को एक अधीर, अवसरवादी बादशाह के रूप में दिखाया गया है, और रूप रंग…. ह ह ह।

इस लेख में जानिये कि अकबर का वास्तविक रूप क्या था, और क्यों वे वैसे बिल्कुल नहीं थे, जैसे उन्हे चित्रित किया गया था।

बॉलीवुड का हास्यास्पद चित्रण

बॉलीवुड ने इतिहास का कम ही चित्रण किया है, परंतु जितना भी किया है, उसमें मुगलों के लिए विशेष प्रेम देखने को मिला है। इसमें भी अकबर की ऐसी छाप छोड़ने का प्रयास किया गया है, जैसे ये न होते, तो भारत का अस्तित्व ही न होता ।

बॉलीवुड में अकबर के प्रमुख तौर पर तीन विशिष्ट रूप चित्रित किये गए हैं। एक तो सर्वप्रथम पृथ्वीराज कपूर ने किया, जब 1960 में मुगले आज़म में इन्होंने अकबर की भूमिका आत्मसात की थी।

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परंतु वर्षों बाद एक नया ही रूप देखने को मिला, जब आशुतोष गोवारिकर ने “जोधा अकबर” में ऋतिक रोशन को बतौर अकबर के रूप में पेश किया, और अधिकांश लोगों में ये भ्रम फैल गया कि अकबर कहीं न कहीं ऐसे ही दिखते थे।

अकबरनामा ने खोली पोल

परंतु अकबर का रूप वास्तव में था? इसके बारे में अकबरनामा में विस्तृत उल्लेख मिलता है। अकबरनामा के अंश अनुसार,

“मध्यम लंबाई का व्यक्ति, शायद पाँच फुट सात इंच से कुछ लंबा। ज्यादा बलिष्ठ नहीं, पर अधिक मोटा भी नहीं, ऐसा था अकबर”

यानि आशुतोष गोवारिकर ने जैसा दिखाया, उसका अंश मात्र भी नहीं था अकबर।

सर्वप्रथम, मुगल उज़्बेक थे, और उनके रंग रूप किसी भारतीय से कम ही मिलते थे। ऐसे में ऋतिक रोशन को अकबर के रूप में दिखाना, यानि शाहरुख खान को जॉर्ज वाशिंगटन के रूप में दिखाने बराबर होगा, जबकि सत्य इसके ठीक विपरीत था।

इसके अतिरिक्त मुगलों के जो व्यसन थे, अकबर भी किसी आक्रांता से कम नहीं थे।

एक बलिष्ठ देह के साथ एक सुगठित व्यक्तित्व संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से आता है, और मुगलों का इनसे दूर दूर तक कोई नाता नहीं था, और अभी तो हमने इनके हरम कल्चर और मीना बाजार पर प्रकाश भी नहीं डाला है।

इसके विपरीत ठीक इनके विरोधियों, विशेषकर महाराणा प्रताप के बारे में जितने भी संस्मरण आते हैं, उन सब में एक बात समान है : महाराणा न केवल हृष्ट पुष्ट थे, अपितु उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि कोई भी उन्हे अनदेखा नहीं कर सकता था।

कभी कभी तो ऐसा लगता है कि जिसे महाराणा प्रताप बनाना चाहिए था, उसे सेक्युलरिज़्म के प्रभाव में जानबूझकर अकबर बना दिया।

अकबर कुछ भी था, पर “महान” नहीं….

तो जब अकबर रूपवान नहीं था, और न ही बलिष्ठ, तो फिर वह महान भी नहीं होगा, है न? होता भी कैसे, वह ठहरा अंगूठा छाप।

इसके अतिरिक्त यदि वह इतना ही महान था, तो चित्तौड़ ने उससे विद्रोह क्यों किया, और क्यों महाराणा प्रताप जैसे योद्धा को चाहकर भी अकबर परास्त नहीं कर सका।

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वास्तव में अकबर कैसा था, इसे बताने के लिए अकबरनामा ही पर्याप्त है। अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल ने लिखा था-

”अकबर के आदेशानुसार प्रथम ८००० राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया और बाद में उनका वध कर दिया गया। उनके साथ-साथ विजय के बाद प्रात:काल से दोपहर तक अन्य ४०००० किसानों का भी वध कर दिया गया जिनमें ३००० बच्चे और बूढ़े थे।” (अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज),

चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत १२००० क्षत्राणियों ने मुगलों के हरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जरा कल्पना कीजिए विशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीख-पुकारों के बीच उसमें कूदती १२००० महिलाएं।

तो कुल मिलाकर अकबर चालाक था, अधीर था, परंतु “महान” नहीं था। इसके अलावा रूपवान तो वह बिल्कुल नहीं था, और वह ऋतिक रोशन कम, नसीरुद्दीन शाह जैसा अधिक दिखता था : कुंठा से परिपूर्ण, साफ सफाई से कोई मतलब नहीं।

वैसे भी सुने हैं कि पेचिश के कारण अकबर की मृत्यु हुई थी, और शुद्ध आचरण से रहने वाला व्यक्ति तो ऐसे बिल्कुल नहीं मरता।

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