Kathua case के 5 वर्ष: कैसे दक्षिणपंथियों ने एक वैश्विक हिन्दू विरोधी अभियान की धज्जियां उड़ाई

कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा!

जॉर्ज ऑरवेल एक समय खूब कहे थे, “झूठ और विश्वासघात के युग में, सच बोलना ही सबसे बड़ा क्रांतिकारी कदम है!”

Kathua case: हाल ही में शिक्षाविद एवं लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर के पीछे लिबरल गिरोह हाथ धोके पीछे पड़ गया। वो क्यों? क्योंकि उन्होंने वह किया जिसका साहस किसी में न था : कठुआ कांड का सच जानना अथवा उसका अन्वेषण करना। Kathua case के माध्यम से सनातन धर्म को कलंकित करने हेतु एक वैश्विक अभियान की नींव रखी गई, उसने अनजाने में एक ऐसे अभियान को जन्म दिया, जिसने भारतीय राजनीति की नींव हिला दी।

इस लेख में पढिये कि कैसे कठुआ केस (Kathua case) आज भी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व रखता है।

Kathua case क्या है?

जनवरी 2018 की एक कड़कती हुई सुबह को रसाना ग्राम से एक नाबालिग लड़की [जो बकरवाल समुदाय से संबंध रखती थी], अचानक से गायब हो जाती है। कहने को प्रारम्भिक सूत्रों के अनुसार लड़की को एक SPO और एक पूर्व पटवारी अफसर ने उठा लिया था, जिन्होंने बाबा कालीवीर देवस्थान [जिसे वामपंथियों ने जानबूझकर देविस्थान बोला] के प्रांगण में उसे बंद रखा, उसका कई दिनों तक यौन शोषण किया, और एक दिन उसकी जघन्यतम हत्या कर दी।

इस थ्योरी के जनक थे तालिब हुसैन, जिसके पीडीपी पार्टी से गहरे संबंध थे, और अधिवक्ता दीपिका थुस्सू राजावत, जिन्हे समाजसेवा की खुजली मची रहती थी। अब इनके दलीलों के आधार पर जम्मू एवं कश्मीर की पुलिस ने जांच पड़ताल प्रारंभ की। परंतु जब परिणाम तत्कालीन सीएम महबूबा मुफ्ती के एजेंडावाद के पक्ष में नहीं आया, तो उन्होंने जांच कर रहे कुछ अफसरों पर ही मुकदमा ठोंक दिया, कि ये अपराधी की सहायता कर रहे थे, और उनका स्थान महबूबा के अघोषित अनुचरों ने लिया।

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एजेंडा ऊंचा रहे हमारा

जैसे ही स्थानीय नागरिकों, विशेषकर डोगरा समुदाय को इसकी भनक लगी, उन्होंने व्यापक विरोध प्रदर्शन प्रारंभ कर दिए, और एक स्वतंत्र सीबीआई जांच की मांग करने लगे। परंतु एजेंडावादी तो एक कदम आगे थे।

अब उन्होंने झूठ फैलाया कि यह दुष्कर्म एक हिन्दू मंदिर में हुआ। फिर क्या था, टुकड़े टुकड़े गैंग का लगभग हर सदस्य, चाहे राजनीति हो या फिर बॉलीवुड, सबने एक सुर में सनातन धर्म और उसके अनुयाइयों को अपशब्द सुनाना प्रारंभ किया। प्लेकार्ड के नाम पर जो गंध मचाई गई थी, उसे कैसे कोई सनातनी भूल सकता है?

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न भूलें, न क्षमा करें!

परंतु पूर्व की घटनाओं की तुलना में पीड़ित हिंदुओं के हाथ वही अस्त्र लगा, जिसके बल पर इन वामपंथियों ने हमें अपमानित करने का प्रयास किया : सोशल मीडिया। समूचा इंटरनेट विरोध प्रदर्शनों और इस घटना के प्रमुख आरोपियों पर अपर्याप्त सबूतों के आधार पर हो रही झूठी कार्रवाई के विरुद्ध मोर्चा बनाने में जुट गया। जिस नाबालिग को सब मुख्य आरोपी बनाने पर तुले थे, ताकि उनके आका प्रसन्न हो, उसके पक्ष में खोजकर खोजकर वो साक्ष्य लाए गए, जिनपे या तो स्थानीय पुलिस ने ध्यान नहीं दिया, या फिर जानबूझकर छुपाया गया। अंत में स्थानीय कोर्ट को भी इन साक्ष्यों को मानना पड़ा, और उक्त नाबालिग को छोड़ना पड़ा।

Kathua case ने किसी पार्टी को नहीं छोड़ा। चूंकि भाजपा पीडीपी की सहयोगी पार्टी, इसलिए उसे भी मूकदर्शक होने का आरोपी बनाया गया, और प्रशासन के दो मंत्रियों के द्वारा मोर्चा संभालने के बाद भी वे जनता में उनके प्रति आक्रोश को कम नहीं कर पाए। परंतु इन सबमें एक अच्छी बात भी हुई। जिस समुदाय की आड़ में बुद्धिजीवी सनातनियों को बदनाम कर रहे थे, उसी बकरवाल समुदाय समेत अन्य स्थानीय समुदायों की जमीन हड़पने के लिए रोशनी एक्ट के दुरुपयोग को उजागर किया गया। परिणामस्वरूप सत्ता भी गई, और अगले ही वर्ष इस पूरे प्रकरण के कारण देश को कलंकित करने वाला अनुच्छेद 370 भी हटाया गया।

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