एक धर्मनिष्ठ हिंदू छात्र का एक धर्म विरोधी प्रोफेसर द्वारा दोहन वो भी लंदन में

अरे पापिनी, ये निर्लज्जता लेकर कहाँ जाओगी?

Karan Kataria controversy: एक सनातनी होना कितना बड़ा अपराध है? इसका पैमाना लगाना कठिन है, परंतु इतना स्पष्ट है कि यदि आप अपनी सनातनी संस्कृति से समझौता करने को तैयार नहीं है, तो आपकी हालत वैसी ही है, जैसे 1930 में यूरोप में यहूदियों कि थी, और आग में पेट्रोल डालने वाली बात ये है कि इस घृणित कार्य में कुछ कुत्सित प्रवृत्ति के भारतवंशी भी सम्मिलित है।

इस लेख में पढिये कि कैसे एक भारतीय छात्र को केवल अपनी सभ्यता के पीछे असीमित शोषण का सामना करना पड़ा, और कैसे इस कार्य में एक कांग्रेस प्रेमी बंगाली प्रोफेसर भी सम्मिलित थी।

Karan Kataria controversy: LSE की वो घटना जो छुपाये न छुपी… .

हाल ही में LSE में एक छात्र करण कटारिया को अकारण ही छात्र परिषद का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया। करण के अनुसार, “दुर्भाग्य से कुछ लोग भारतीय-हिंदू को LSESU का नेतृत्व करता देखने के लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने मेरे चरित्र और मुझे बदनाम करना शुरू कर दिया। साफ दिख रहा था कि वो हमारी उस संस्कृति के खिलाफ हैं जिसके जहन में रखकर हमारा पालन हुआ।”

कटारिया कहते हैं कि छात्रों का समर्थन पाने के बावजूद उन्हें LSE स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेट्री चुनाव से डिसक्वालिफाई कर दिया गया। उन्होंने आगे कहा था, “मुझ पर होमोफोबिक, इस्लामोफोबिक, क्विरफोबिक (Queerphobic) होने का इल्जाम लगा और मुझे हिंदू राष्ट्रवादी कहा गया। मेरे खिलाफ कई शिकायतें हुईं। कई झूठे आरोप लगने के बाद मेरी छवि और मेरे चरित्र पर कीचड़ उछाला गया जबकि मैंने तो हमेशा समाज में सकारात्मक बदलाव और सामाजिक सद्भाव रखने की पैरवी की है।”

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आरोपी है कांग्रेस प्रेमी… ..

जब Karan Kataria controversy की जाँच पड़ताल हुई, तो कुछ ऐसे तथ्य निकलकर सामने आये, जो किसी का भी खून खौलाने पर विवश कर दे। कई मीडिया रिपोर्ट और सोशल मीडिया पोस्ट्स से ये ज्ञात हुआ कि षड्यंत्र के पीछे संस्था में कार्यरत एक अवसरवादी भारतवंशी का ही हाथ था। इनका नाम मुकुलिका बनर्जी है, जो स्वघोषित नास्तिक है, पर राहुल गाँधी की अनन्य उपासक भी।

वो कैसे?

मुकुलिका बनर्जी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस (LSE) में मानव विज्ञान की प्रोफेसर हैं। वह यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया सेंटर की निदेशक भी हैं। मुकुलिका बनर्जी लंबे समय से पश्चिमी देशों की मीडिया में ‘मुस्लिम अंडर अटैक इन इंडिया’ करती रही है।

हिंदू दक्षिणपंथी संगठन आरएसएस के साथ संबंध होने के कारण मुकुलिका बनर्जी करण कटारिया के खिलाफ घृणा अभियान चला रही थीं। इस कारण उन्हें स्टूडेंट यूनियन के चुनाव के अयोग्य कर दिया गया। बनर्जी के इस हस्तक्षेप को पहले ही LSE प्रशासन के संज्ञान में लाया जा चुका है।

तो इसका कांग्रेस प्रेम से क्या संबंध है? मुकुलिका राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भी शामिल हुई थीं। इसके साथ ही उन्होंने राहुल गाँधी की लंदन में मेजबानी भी की थी। जब यात्रा समाप्त हुई तो वह राहुल गाँधी के लंदन दौरे के दौरान कई कार्यक्रमों की व्यवस्था करने में मदद की थीं। उन्होंने राहुल गाँधी की हाउस ऑफ कॉमन्स में कार्यक्रम आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यहीं पर राहुल गाँधी ने ‘भारतीय लोकतंत्र खतरे में’ भाषण दिया था, इसे ‘बचाने’ के लिए विदेशी मदद माँगी थी। इससे पहले भी कई मौकों पर मुकुलिका बनर्जी ने राहुल गाँधी को LSE साउथ एशिया सेंटर को संबोधित करने के लिए अपने कार्यालय का इस्तेमाल किया, जिसकी वह निदेशक हैं।

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“फर्स्ट टाइम?”

Karan Kataria controversy

आप बस इन चित्रों को देखिये :-

Karan Kataria controversy

ये संस्था में एक सुनियोजित अभियान के अंतर्गत मुकुलिका द्वारा फॉरवर्ड किए जा रहे थे। एक व्यक्ति के लिए ऐसी घृणा कि उसके पीछे हर उस व्यक्ति का जीवन बर्बाद करो, जो भारत के लिए तनिक भी स्नेह रखे? क्या देश प्रेम और सनातन संस्कृति का सम्मान करना इतना बड़ा अपराध है?

अगर रश्मि सामंत की दृष्टि से देखें, तो हाँ। इन्हें भी ऑक्सफोर्ड में अपने अध्ययन के समय ऐसे कुत्सित अभियानों का सामना करना पड़ा था।

बता दें कि मार्च 2021 में रश्मि सामंत को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया गया था। हिंदू पहचान और उपनिवेशवाद विरोधी विचारों को लेकर उन्हें लगातार ऑनलाइन निशाना बनाया जा रहा था। यह मामला भारतीय संसद में भी उठा था।

कुछ पुराने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सामंत को निशाना बनाते हुए उन्हें नस्ली और असंवेदनशील बताया गया। इन पोस्टों के जरिए उन्हें नस्लवादी, यहूदी विरोधी, इस्लामोफोबिक, ट्रांसफ़ोबिक बताने की कोशिश की गई। यहाँ तक कि उनके हिंदू होने को लेकर भी निशाना साधा गया। सामंत को 11 फरवरी 2021 को प्रतिष्ठित पद के लिए चुना गया था, लेकिन ऑनलाइन आलोचना और दुर्व्यवहार का सामना करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

आज ये करण कटारिया के साथ हुआ है, कल को ये आपके साथ भी हो सकता है। आखिर मुकुलिका जैसे असमाजिक तत्वों को किस बात की इतनी खुली छूट मिलती है? क्या इस निर्लज्जता का कोई अंत नहीं?

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