आनंद मोहन के सहारे नीतीश बाबू

बिहार में स्वागत है

बिहार में सच में बाहर है। यहाँ सब कुछ है, बस शासन नहीं है। सब कुछ शांतिपूर्वक तरीके से यहाँ होता है, इतना कि विगत एक वर्ष में 2000 से भी ज़्यादा लोग नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के आकांक्षाओं की बलि चढ़ चुके हैं, और अब अपने चुनावी लाभ हेतु नीतीश बाबू दुर्दांत अपराधियों को भी छुड़वाने को तैयार है।

आनंद मोहन को अभयदान

हाल ही में बिहार के कुख्यात अपराधी आनंद मोहन की रिहाई का आदेश आ चुका है। बिहार के जेल मैनुअल में संशोधन करते हुए वर्तमान प्रशासन ने कभी पूर्व सांसद रहे इस बाहुबली को छुड़वाया है, जिससे पूरे बिहार में हड़कंप मचा हुआ है।
परंतु आनंद मोहन है किस चिड़िया का नाम? जब 90 के दशक में बिहार अपराध का पर्याय था, और जंगल राज की कोंपलें प्रस्फुटित होने लगी थी, तब आनंद मोहन उन डेढ़ शाणों में से एक था, जिसे बिहार का सर्वशक्तिशाली दद्दा बनना था। परंतु भाईसाब अकेले न थे, मोहम्मद शहाबुद्दीन, सूरजभान सिंह, छुट्टन शुक्ला जैसे गुंडे भी इस प्रतिस्पर्धा में लगे हुए थे।

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तो आनंद मोहन अलग कैसे बने? इसके लिए समय का चक्र 1994 की ओर घुमाना पड़ा था, जब कड़ाके की ठंड में बिहार का राजनीतिक तापमान अपने उच्चतम स्तर पर था। कारण था बाहुबली छुट्टन शुक्ला की हत्या, जो केसरिया क्षेत्र से राजनीति में अपना भाग्य आजमाने चले थे।
छुट्टन क्या गया, मानो बिहार में भूचाल आ गया। मुज़फ्फ़रपुर में जगह जगह विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें आनंद मोहन अग्रणी थे। छुट्टन की शवयात्रा मुज़फ्फ़रपुर से निकलकर उसके ग्राम वैशाली पहुँचने वाली थी, जब हाइवे पर इनका सामना जी कृष्नैय्या से हुआ, जो उस समय हाजीपुर से गोपालगंज लौट रहे थे।

जी कृष्नैय्या पर आव देखा न ताव, भीड़ ने धावा बोल दिया था। वे चीख चीख कर अनुनय विनय करते रहे कि वे गोपालगंज के जिलाधिकारी हैं, मुज़फ्फ़रपुर के नहीं। परंतु सब निष्फल रहा, और आगबबूला भीड़ ने जी कृष्नैय्या को पीट पीटकर मार डाला। आनंद मोहन अविलंब अपनी बीवी समेत पतली गली से खिसक लिए, परंतु हाजीपुर से शीघ्र ही हिरासत में लिए गए।

नीतीश की अचूक ‘इंजीनियरिंग’

वर्षों तक आनंद मोहन सलाखों के पीछे रहा। किसी ने इन्हे विशेष भाव नहीं दिया, परंतु इन्हे तनिक भी अंतर नहीं पड़ा। पूर्ववर्ती नेताओं की भांति वे जेल से चुनाव लड़ते रहे, और आज भी बिहार में वे राजपूत समुदाय के प्रमुख प्रतिनिधि माने जाते थे।

तो फिर “सुशासन बाबू” इनके प्रताप से अब कैसे परिचित हुए? मूल रूप से नीतीश कुमार सवर्णों के प्रति अधिक आकृष्ट नहीं हुए थे। जब केंद्र ने इनकी एक न सुनी, तो नीतीश कुमार, जो बचपन से समाज के एकमेव ठेकेदार बनना चाहते थे, बिहार में अघोषित रूप से जातिगत जनगणना कराने लगे।
परंतु जब इन्हे ज्ञात हुआ कि राजपूत समुदाय अपने आप में काफी प्रभावी है, और इनका वोट शेयर 7 प्रतिशत के आसपास है, तो नीतीश पुनः सोशल इंजीनियरिंग पर उतर आए। इसी का परिणाम था कि हाल ही में आनंद मोहन समेत 27 अपराधियों को अभयदान दिया गया।

और कितना सहेगा बिहार?

इसमें कोई दो राय नहीं कि नीतीश और तेजस्वी के दोहरे नेतृत्व में बिहार की हालत बाद से बदतर हो चुकी है। अब इसी कुशासन में कुलांचे मारते हुए आनंद मोहन समेत 27 अपराधियों के अभयदान के लिए बिहार के जेल मैनुअल में संशोधन किया गया। जिस राज्य में अपराध अपने चरमोत्कर्ष पे हो, वहाँ 27 अपराधियों को खुलेआम छोड़ना कोई शुभ संकेत तो बिल्कुल है।

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नीतीश को देखकर कभी कभी केजरीवाल और ममता बनर्जी भी सयाने लगते हैं। जब भी आप सोचें कि ये व्यक्ति इससे नीचे नहीं गिर सकता, ये इसे चुनौती के रूप में ले लेता है कि अब तो इससे भी नीचे गिरना है। बिहार जाए भाड़ में, परंतु इन्हे सत्ता में बने रहना है, चाहे कुछ भी करना पड़े!

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